Saturday, November 5, 2022

मच्छरदानी (मैथिली कथा) - मेनका मल्लिक

कथा

मच्छरदानी

मेनका मल्लिक
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घर मे पैसतहि मीनू हाथक बेग टेबुल पर राखलकि आ तरकारीक झोड़ा भनसाघरमे। फ्रीज स' पानिक बोतल लेलकि आ सोफा पर बैसलि। बोतलक बहरिया सतह पर अभरल पानि के तरहत्थी स' पोछलकि आ ओही तरहत्थी स' अपन कपार, कनपट्टी, दुनू आंखि आ गाल हंसोथैत कंठ धरि ल' गेलि। तखन सोह भेलै जे आफिस स' एलाक बाद मुंह-हाथ नहि धोलकि अछि। ओ उठ' चाहलकि, मुदा आसकति लगलै। थकान स' सौंसे देह टुटै छलै जेना। ओ आंखि मुनि लेलकि।
       घरबला चौकी पर गेरुआ स' पीठ ओंगठौने टी वी देखि रहल छलै। मीनू के घर मे पैसतहि ओ टी वीक आवाज कम क' देने छलै। सभ दिन एहिना होइ छै। पत्नी दिस तकैत बजलै, "आबि गेल'। आइ टाइमे पर...।"
       मीनू किछु जवाब नहि देलकि। उन्टे प्रश्ने पुछलकि, "सोनाली कत' गेलै?"
       "से, हमरा पूछि क' गेल' हय। मेट्रिक पास करिते पांखि भ' गेलै छौंड़ी के। आखिर बेटी ककर छै, तोरे ने? पुछलियै त' बोललै जे सहेली लग जाइ छी। बस, एतबे। आब हम की पुछितियै- कोन सहेली? केहन सहेली? आ पुछबे करितियै त' हमरा कहैत? तखन..."
       मीनू चुप भ' गेलि। ई कोनो एक दिनक नहि, सभ दिनक सोहाग-भाग छै। सभटा सुनबाक आदति भ' गेल छै ओकरा। मुदा, बेटीक बात कहियोकाल होइ। ओकरा रहल नहि गेलै, "से, बाप सन रहितियै तखन ने। घर आ बाहर, दुनूठाम सिपहिये सन बनल रहने...।"
       मीनू चुप भ' गेलि। सोचलकि, पूरा कहतै त' बमक' लगतै घरबला। कह' लगतै जे खबरदार! सिपहिया नहि कह हमरा। परमोसन लेने रहितियै त' दरोगा भेल रहितियै। मुदा किए लियै परमोसन ? परमोसन लेने बदली होइतै आ परिवार छुटि जैतै। कत्ते चाही? बहु कमाइते छै। ओना अहू पोस्ट मे बदली के सुन-गुन होइ छै। जोगार धरा लै छियै। बहु के छोड़ि क' कत्त' जेबै? एतेक बाजि ओकर घरबला मुस्कियाइत रहै छै, मुदा ओकर मुस्की मीनू के अंगोर सन लगै छै।
       बेटी के दुलार चाही। मायक दुलार। बापक दुलार। ई बात ओकर घरबलाक दिमाग मे नहि अबै छै। ओकरा ताहि सभ स' कोनो मतलब नहि छै। ड्यूटी स' एतै आ टी वी लग बैसि रहतै। कात मे जग भरि पानि, गिलास आ चुनौटी राखि लेतै। आर कोनो बेगरता हेतै, त' अढ़बैत रहतै। बस एतबे टा दुनिया। मीनू के अएलाक बाद जे कहैत रहै छै, से ओहू दिन कहलकै, "थक्कल लगै छहक। चाह नहि पीबहक? हमरो बड़ी देर भ' गेल। सोनलिया के कहलियै, मुदा...।
       मीनू बाजलि, " तं बना क' लाउ ने।"
       "इह। हम बनबियै?" घरबला बजलै, "हमरा बनाब' के रहितै त' बनौने ने रहितियै।"
       मीनू बेसी नहि सुनलकि। उठलि। दू कप चाह आ एकटा प्लेट मे बिस्कुट आनलक। घरबला के चाह देलक। अपने चाह आ बिस्कुट लेलकि। ओकरा बिस्कुट नहि दैत अछि। चाहक संग बिस्कुट पसिन नहि छै ओकरा। एकबेर देने रहै त' नहि खेलकै। कहलकै जे चाहक संग बिस्कुट खेने चाहक इज्जति उतरि जाइ छै। मीनू सोचलकि जे एहन उनटल दिमाग बला के की कहल जाय? तहिया स' अगबे चाह देब' लागलि
       चाह पीलाक बाद जेना आन दिन होइ छै, तहिना घरक कोल्हुमे अपन कान्ह लगा देलकि।
ओकरा पिता मोन पड़लखिन। बियाहक समय पिता कहने रहथिन जे तोरा बेटे सन पोसलिय' ह'।  तों पढ़ल-लिखल छहक बेटी। एम ए पास। नोकरी करै छहक। बर तोरा लायक नहि छह, से हम मानै छिय'। मुदा, हम की करिय'? अपना सभ मे तोरा जुगलक बर कठिन छै। सिपाहिए छै, त' की भेलै? हमरा भरोस छै जे तों ओकरा अपना लायक बना लेबहक। परमोसन हेबे करतै। बनि जेत' तोरा लाइक।
       मुदा, मीनू किछु ने बाजलि। बुझयलै- बाबू ओकर बियाह नहि कयलखिन, अपन माथक बोझा उतारि क' ओकरा माथ पर एकटा बोझा राखि देलखिन। मुदा, असल बात नहि कहलखिन। वाह रे कन्यादान। तकर बाद मीनू मशीन बनि गेलि। आफिस मे, घर मे आ पलंग पर। घरबलाक संग दूटा बेटा आ एकटा बेटीक सेवा मे लिप्त। दुनू बेटा इंजिनियरिंगक पढ़ाइ लेल बाहर छै। 
       लोक कहै छै- बड़ सुखी अछि ओ।
       एकदिन घरबला कहलकै, "आफिस मे तोरा बारे मे किदन-किदन सुनै छिय'।"
       "की सुनै छियै?"
       "कहांदन बड़ करगर छहक। ककरो गुदानिते ने छहक। लोक कहै छ' जे सिपाही छै घरबला आ मुंहक जोरगर छहक तों।"
       "आर किछ?"
       घरबला चुप भ' गेलै।
       मीनू के मोन पड़लै। जहिया ओकरा नोकरी भेल रहै, ताहि समय कम्मे महिला नोकरी मे अबै। खास क' छोट-छोट शहरक आफिस सभ मे। तेहन महिला सभ अपन गाम, शहरक मोहल्ला सं ल' क' हाट-बजार आ आफिस धरि आकर्षणक वस्तु होअय। ओकरा डेगडेगे आंखिक प्रहार सह' पड़ै। मीनूक संग सेहो तहिना भेल रहै। आफिसक सहकर्मी सं हाकिम धरिक लेल ओ अजगुत भ' गेल रहय। आ सबहक आंखि-बोलक प्रहार ओकरा बेध' लागल रहै। एहि प्रहार सभ स' बच' लेल ओ एकटा उपाय सोचलकि। ओ अपन स्वभावक बहरिया आवरण पर कठोर होयबाक लेप लगौलकि। जोर-जोर स' बाजब, ठाहिं-पठाहिं जवाब देब, ककरो अपन ल'ग-पास मे अभर' नहि देब ओकर स्वभाव भ' गेलै। आ ओकर एहि रूप के लोक मनसब्बरि कह' लगलै। फरदबाल कह' लगलै।
       मुदा, ताहि स' नहूं-नहूं ओ एकसरुआ होम' लागलि। घरो एकसरि, बाहरो एकसरि। ओकरा लगलै जे ओकर मूल परिचिति हेरा रहल छै।
       एम्हर आफिसक एकटा सहकर्मी, सुबोधक प्रति ओकर आकर्षण बढ़' लागल छलै। सुबोध बदली भ' क' आयल छल। ककरो स' बिना काजक गप नहि करय। काजोक गप बान्हले-छान्हल। सुबोधक ई गुण मीनू के नीक लाग' लगलै। एकदिन टिफिन बेरमे वैह सुबोधक केबिन मे गेलि। गप्पे-गप्पमे सुबोध कहने रहै, "आफिस मे अहांक छवि बदमासि बला अछि। मुदा, हमरा लगैए जे लोक अहांक मोन के देखबाक प्रयास नहि केलक अछि।"
       मीनू चुप भ' गेलि। कने कालक बाद बाजलि, "अहांक कनियां बड़ भाग्यशाली छथि।"
       सुबोध बाजल, "हमर बातक आ अहांक बातक कोन तारतम्य?"
       "से हम नहि बूझै छी। हमरा मोन मे आयल, से कहलौं।' मीनू बाजलि।
       आ तकर बाद स' आफिस मे जलखै दुनू एक्कहि ठाम कर' लागल आ दुख-सुख बतिआय लागल। आफिसक लोकक लेल ई दोसर अचरज रहै। किछ गोटे कह' स' बाज नहि अयलै - "की मीनू मैडम? जे लबारी मे नहि, से बुढ़ारी मे...।"
       तकर बाद स' मीनू के आफिस स' आब' मे कने अबेर भ' जाइ। सुबोध के सेहो। काजक समय समाप्त भेलाक बाद दुनू आफिस मे बेसी बेर धरि गपसप कर' लागय। ताहि कारणें घर पर ओकर घरबलाक तामस सिरिंग चढ़ल जाइ। दुनू मे कहासुनी सेहो भ' जाइ।
       प्राय: तीन-चारि मासक बाद आफिसक प्रधानक बदली भ' गेलनि। नव प्रधान अयलाह। मुसलमान छलाह। सभक परिचय भेलनि। 
       दोसर दिन मीनू के प्रधान बजौलनि। पुछलनि, "अहां समस्तीपुर मे कहियो रही?"
       "हं, हमर पहिल पोस्टिंग ओत्तहि छल। अहां किनसाइत वैह तौफीक सर तं ने छी जे ओत' प्रोबेसन मे आयल रही।" मीनू पुछलकि।
       "हं, मुदा चिन्ह' मे अहां के देरी भेल।"
       "अहांक चेहरा बहुत बदलि गेल अछि।" मीनू बाजलि, "काल्हि जखन अहां के देखलौं, त' हमरा बुझायल। राति भरि हम ठेकनबैत रहलौं जे किनसाइत अहीं छी।"
       "चेहरा बदलल अछि, मोन नहि। एखनो हम अहांक वैह..." तौफीक सर सम्हरलाह, "सोचल नहि भ' पबै छै। खैर, कोनो बात नहि। हमरा दुनूक अपन-अपन परिवार अछि आ से महत्वपूर्ण अछि। एकटा आग्रह।"
       मीनू चुप। कतौ हेरायलि।
       "सुनि रहल छी?"
       "जी।"
       "आफिस मे अपना दुनू गोटे अपन-अपन अतीत बिसरि क' काज करी, से आग्रह।" तौफीक साहेब बजलाह।
       "प्रयास करब जे बिसरि सकी।" मीनू बाजलि, "मुदा, एते धरि अवश्य जे अहांक मर्यादा के बचा क' राखब।"
       तौफीक साहेब चुप।
       मुदा मीनू एतबे बाज' मे घामे-पसेने नहा गेल छलि। ओ प्रधानक चेम्बर स' बहरा गेलि।
       सुबोध लग आबि ओ अपन ओहि अतीत के उझीलि देलकि। ताबत सुबोध ओकरा लेल एहन मित्र भ' गेल छलै जकरा प्रति ओ विश्वस्त छलि। समस्तीपुरक अपन पोस्टिंगक बारे मे कहलकि। ओत' स' बदलीक कारण कहलकि।
       तौफीक आ मीनू, दुनूक पहिल पोस्टिंग छल समस्तीपुरक आफिस। दुनू नव-नौतार। दुनू एक-दोसराक ध्यान राख' लागल। दुनूक मोन मिल' लगलै। दुनू एक-दोसराक संग कतेको-कतेको सपना देख' लागल। आ नहूं-नहूं दुनूक सपना आफिस सं ल' क' बाहर धरि पसर' लगलै। तहिया शांत-चित्त स्वभावक छलि मीनू। दुनूक सपना बाटे-घाटे गन्हाय लगलै। गुलंजर उठ' लगलै। आफिस स' बहराय त' सुनय- लैला ओ लैला...।
       बिन कोनो परबाहिक ई दुनू तरे-तर तय कयलक जे दुनू वयस्क अछि, कोर्ट मैरेज क' लेत‌। रहत मुदा एक-दोसराक भ' क'।
       मुदा, आफिस आ समाजक लोक के मीनू आ तौफीकक सम्बन्ध सोहइतै कोना? मीनूक पिता के चेतौनी देलक जे एकर बियाह तुरंत कोनो दोसर ठाम क' देल जाइ। सभ मिलि दुनूक बदली करौलक। दुनू दू दिशा मे चलि गेल। दुनूक बीच मे बान्ह बन्हा गेलै। आइ सन मोबाइलक जमाना नहि रहै आ ने टलीफोने सभठाम सहज रहै।
       नवका आफिस के प्रधान आ संगठनक किछ लोक के मीनूक बदलीक कारण बुझा गेलै। ओ सभ दोसरे माने लगेलक। ओ सभ मीनू के अजमाब' चाहलक, मुदा अपने सनक मुंह भ' गेलै।
       असल बात यैह रहै, जकर कारणें मीनूक पिता झट स' ओकर बियाह क' देलनि। पहिने एहिनो होइ। माय-बाप सोचैत अछि जे समयक संग सभ ठीक भ' जेतै। समयक संग माय-बाप बुझितो यैह छै जे ठीक भ' गेलै, मुदा...।
       "मुदा, माय-बाप के ई अंतो धरि नहि बुझाइ छै जे बेठीक‌ की रहलै।" सुबोध बाजल।
       "तौफीक सर के अयलाक बाद सहजतापूर्वक काज कोना क' सकबै, सैह सोचि-सोचि....।"
       "जेना ओ कहलनि।" सुबोध बाजल, "जेना रहै छी। दुनू गोटे अपन-अपन मर्यादाक रक्षा करैत रहू।"
       तकर बाद मीनू के आफिस स' घूर' मे देरी भ' जाइ। पहिने स' कने बेसी। तौफीक सर, सुबोध आ मीनू। तीनू कोनो-ने-कोनो बहन्ने काज समाप्त भेलाक बाद गपसप मे लागि जाय। हुलसि जाय तीनू।
      घर घुरलाक बाद घरबलाक व्यवहार मीनू के झरका दै आ टंटा शुरू भ' जाइ। टंटाक ग्राफ बढ़' लगलै। कतेको राति एहन होइ जे टंटा समाप्त कर' लेल सोनाली दुनू भाय के वीडियो कौल करय आ देखाब' लागय। वीडियो पर बेटा दुनू के देखैत मीनू चुप भ' जाय। घरबला मुदा बमकैते रहय।
       एक राति रुसि रहलै घरबला। मीनू सोनाली के कहलकै जे खाइ ले' कहै ओकरा। दुनू परानी मे दू दिन स' बाजा-भुक्की नहि रहै। सोनाली बाप के खाइ ले' कह' नहि गेलि, त' मीनू स्वयं जाय लागलि। सोनाली ओकरा पकड़ि लेलकै, "छोड़ि दहुन मम्मी। ठेहिअयता त' अपने खयता। नब-नब ड्रामा शुरू केलनिहें।"
       "नहि बेटी, घर मे सब खेतै आ एकटा भुक्खल रहयै, से हेतै? हमहीं कह' जाइ छियै।"
       "एकदिन कहबिही त' सब दिन अहिना करथुन। हमर बात मानि ले मम्मी। कखनो अपनो मान धर। अपनो ले' जी।" सोनाली बाजलि।
       मीनू बाजलि, "बेटी! तों हमर बांहि पूर' जोग भ' गेलें। बी ए पास करबें एहि साल। तों अपना अनुसारें ठीके सोचै छें। मुदा, हम हुनकर कनियां छियै ने। जाइ छियै। दू दिन स' बाजा-भुक्की नहि छै, तकरे कान्हि छै।"
      मुदा सोनाली ओकरा नहि जाय देलकै। अपने पिता लग गेलि‌‌। पिता कें मायक बारे मे कहलकै जे अहां नहि खेबै तं मम्मीयो नहि खायत। आ, अहां दुनू नहि खेबै त' हम केना खेबै। अहां चाहै छी जे घर मे सब भूखल रहय? अन्न बेरबाद होअय? भैया सब ई नब बात सुनता त' की कहता?
      बेटीक एहने-एहने बात पर पिता मानलकै आ भोजनक बाद स्थिति सामान्य सन बुझयलै।
      सोनाली सुनलकि- पिता अपन पलंग पर कीदन-कहांदन  बड़बड़ाइते छलै।
       मीनू बैसल छलि। सोनाली दोसर घर स' बहरयलै आ माय के कहलकै, "मम्मी ओहि घरक पलंग पर मच्छरदानी टांगि देलियौए। सूति रह।"
       मीनू बाजलि, "हम टांगि लितहुं ने। तों अपन कोठरी मे सूत ग'।"
       "आब तोहर मच्छरदानी हमहीं टांगि देल करबौ। चल।" सोनाली मीनूक बांहि पकड़ि क' उठयबाक प्रयास कर' लागलि।
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