Tuesday, August 22, 2023

रखबार (मैथिली कथा) : प्रदीप बिहारी

कथा

रखबार
प्रदीप बिहारी

दुनू भाय-बहिन घरमे एकटा महिलाकें पैसैत देखि हतप्रभ भ' गेल। एक-दोसराकें प्रश्न-दृष्टिएं ताक' लागल। दुनूक माय ओहि महिलासं गप कर' लागलि आ ओही क्रममे दुनू भाय-बहिनक परिचय करौलकि- "यैह दुनू छै। जेठकी- स्वीटी आ छोटका- प्रफुल्ल। काज तं बुझले छह। ध्यान देबाक छै जे बच्चा सभ के कोनो कष्ट नहि होइक। दुनू स्कूल तं संगहि जाइए, मुदा स्कूल सं अयबाक समय अलग-अलग छै। स्कूलक वैन अपार्टमेंटक गेट धरि पहुंचा दै छै। ओत' सं आन' पड़तह। तें समय सं पाच मिनट पहिने गेट पर तैनात रहब जरूरी । तोहर नाम की छह?"
          "सुलेखा।" आगन्तुक महिला उतारा देलकि। उताराक बाद दुनू नेना दिस ताकलकि। अखियासलकि- जेठकी माने स्वीटी सात बरखक हेतै आ छोटका माने प्रफुल्ल चारि बरखक। ओ दुनू बच्चाकें 'गुड मॉर्निंग' कहलकि, मुदा दुनू उतारा नहि देलक। मायकें कोनादन लगलैक। एना तं कहियो ने करै छल दुनू। माय अपन दुनू संतानकें कहलकि, "आइ सं यैह आन्टी तोरा दुनूक संग दिन भरि रहथुन।"
          स्वीटीकें कोनादन लगलैक। मायसं पुछलकि, "आन्टी?"
         माय किछु बजितय, ताहिसं पहिने प्रफुल्ल बाजि उठल, "आन्टी जैसी तो नहीं लगती है। दादी लगती है। पर...।"
         माय, बेटा दिस तकलकि। 
         प्रफुल्ल बाजल, "पहली आन्टी की तरह स्मार्ट नहीं हैं।"
         मायकें हंसी लागि गेलै। सोचलकि- छौंड़ा बाज'मे पकठोस छै। एखनेसं वयस्क सन गप करैत रहै छै। मुंहें पर कहि दैत छै सभ कथू। ड'ए-भ'र नहि छै। हरिबोलबा छै छौंड़ा। बजन्ता सेहो। दुनू प्राणी सांझखन आफिससं झूर-झमान भेल अबैत अछि तं छौंड़ा दिन भरिक खिस्सा कहैत छैक। से, एहि तरहें कहैत छै जे दुनू प्राणीकें हंसी लाग' लगैत छै। आफिसक तनाओ कने कम भ' जाइत छै।
          मायकें ई बात नीक लगैत छैक। ओ एहि बातसं प्रसन्न होइत रहैत अछि। तखनहुं भेल छलि। ओ सुलेखाकें कहलकि, "कने बेसी बजै छै ई। तें एकर बात के बेजाय नहि मानह।"
         "नहि, नहि। धियापुता त' चंचल होइते छै। चंचल होमको चाही।" सुलेखा बाजलि, "स्वीटी दैया जानू कम बजै छिकथिन।"
          स्वीटीकें चुप देखि बाजल छलि सुलेखा।
          "हं, ई कने स्थिर छै। शान्त स्वभावक।‌ बजितो छै स्थिरे सं। मुदा, एकर डिमांड जं पूरा नहि होइत छै, तं घरे माथ पर उठा लैत छै। तामस नाके पर रहै छै एकरा।"
          "बेस, हमे सब सम्हारि लेबै।" सुलेखा बाजलि। सुलेखाक मोनमे उचरलैक जे कलियुगहा बच्चा छै, जेहन ओ देखलकि अछि, तेहने हेतै ने। एहिसं बेसियो भ' सकै छै। मुदा, ओ नहि बाजलि। कोना बजितय? ओहि घरमे नौरी बनि क' आयल छलि। बयस भने जे होउक, ओहदाक अनुसारे ने रह' पड़तै।
           गृहस्वामिनी माने डौली सुलेखाकें काज बुझाब' लागलि। पहिने भानसघरक सर-समान। तखन स्वीटीक कोठरी। ओकर वार्ड्रोव। स्कूलक ड्रेस। घरक कपड़ा। प्रफुल्लक कपड़ा सभ। 
           स्वीटी सोचि रहल छलि। चारि मासमे ई तेसर छै। पहिल तं पनरहियो ने रहलै। छोड़ि देलकै। जानि नहि की भेलै? मम्मी आ पापा तं किछु ने कहलखिन। जं कहनहुं हेथिन तं, ओकरा नहि बुझल छै।
           दोसर किछु दिन टिकलै। आरती आन्टी रहै ओ।  दुनू भाइ-बहिनकें बड़ मानै। स्कूलसं अबितहिं प्रफुल्लक ड्रेस बदलि दैक। स्वीटी अपन ड्रेस अपनहि बदलि लैत अछि। अपन काज अपने क' लैत अछि। आरती आन्टी खेनाइ ल' क' हाजिर। प्रफुल्लकें खेला-खेला क' खुआबै। मोबाइल द' दै। ओ देखय आ आरती आन्टीक हाथसं खाय। जेना अपन दादी खुआबै छथिन, तहिना खुआबै। एकहक क'र द' कहै- ई सुग्गा, ई मेना, ई परबा...। कखनो क' ओ डांटबो करै। हं, आरती आन्टी जखन प्रफुल्लकें मोबाइल द' क' खुआबै, तं हमरा टी वी पर रील आ आन मनपसन्द चीज देख' के सुविधा भेटि जाय। मुदा, ओहो चलि गेलै। आब ई तेसर...।
          दादीक स्मरण होइतहिं ओ मायसं पुछलकि, "मम्मी। आज दादी और दादू भी आ रहे है? कबतक आएंगे?"
          डौली ओकर जिज्ञासा शान्त कयलकि, "दो बजे तक।" आ तखनहि किछु मोन पड़लै।
          स्वीटीक मुंहसं बाबी आ बाबाक अयबाक गप सुनि सुलेखा डौलीसं पुछलकि, "मैडम! अपने के सासु-ससुर आबि रहलखिन हन। हिएं रहै छिकथिन?"
          "आबि रहल छथिन। आरती के हटला के बाद हमरा एकदिन छुट्टी मे रह' पड़ल। मम्मी जी के काल्हि खबरि केलियनि, तं कहलखिन जे आबि रहल छी।‌ एहि बीच काल्हि तोरा सं गप फाइनल भ' गेलै। हं, आइ दू बजे धरि आबि जेथिन। ड्राइवर स्टेशन सं ल' अनतनि। दिन के खेनाइ हुनको सभ लेल बनतै।"
          वैभव कोठरीसं बहरायल आ स्वीटीकें कहलक, "बेटी, तैयार नहीं हुई? स्कूल का टाइम हो रहा है। जल्दी करो।" ओ प्रफुल्लकें तैयार कर'मे लागि गेल। स्वीटी सेहो तैयार होमय लागलि।
          सुलेखाक पहिल दिन छलैक, तें डौली सेहो भानसघरमे छलि। बच्चा सभक टिफिन तैयार भ' रहल छलैक। सुलेखा पुछलकि, "आरती किए छोड़लकै काज?"
          "अरे, छोड़लकै कहां, हम सभ हटा देलियै।"
          "बोलब करै छै जे छोड़ि देलियै हन।"
          "झूठे । काज तं बढ़िया करै। घरो-दुआर नीक जकां राखै। मुदा, बजै बड़। हम सभ अपन घरोक कोनो गप करियै कि बीचमे टोकि दै। दोसर ई जे परसू प्रफुल्लकें स्कूलसं आब' काल ओ अपार्टमेन्ट के गेट पर नहि रहै। गार्ड ओकरा रखने रहलै। ओकर पापा के फोन केलकै। हम दुनू गोटे अयलियै, तं ओकरा घर अनलियै। ओ पैंतालिस मिनट लेट अयलैक।‌ पुछलियै तं बात बनाब' लागल। कहांदन निन्न नहि टुटलै। बुझहक, बारह बजे दिनमे कतौ लोक सुतै छै। मना क' देलियै। काल्हि सं नहि आ।"
         सुलेखा चुपचाप काज करैत छलि। डौली फेर बाजलि, "तोरो कहै छियह। ठीक बारह बीसमे स्कूलक वैन प्रफुल्लकें ल' क' अपार्टमेन्टक गेट पर आबि जाइ छै। तें ठीक सवा बारह बजे गेट पर उपस्थित रह' पड़तह। एहिमे कोनो आलस नहि। इफ-बट नहि। तेसर एकटा आर कारण रहै जे हटेलियै। घरक कैमरा सभ बरोबरि बन्द क' दैक। हम सभ मोबाइल पर देखियै, तं कैमरा औफ। ओना हमरा सभ के समये ने रहैए मुदा मम्मी जी बरोबरि देखैत रहै छथिन। हुनका जहां कैमरा औफ देखाइ छनि, कि हमरा दुनू के फोनियाब' लगै छथिन।"
           लगैक जे डौली ऑफिस मे अपन अधीनस्थ कर्मचारीकें काज बुझाइयो रहल अछि आ डांटियो रहल अछि।
          सुलेखा चुपचाप सुनि रहल छलि।
          संक्षेपमे दिन भरिक चर्या सुलेखाकें बुझा क' डौली अपन कोठरीमे चलि गेलि आ लैपटॉप खोलि लेलकि। 
          सुलेखा कोल्हुमे बह' लागलि।
          
बाबी-बाबाकें देखितहिं दुनू बच्चाकें बुझाइक जेना सगर जहान भेटि गेल होइक। जेना मेलामे हेरायल संगीकें एक-दोसरासं भेंट होइत छै, तहिना प्रफुल्ल बाबीक करेजसं सटल। 
           बाबीक मुंहसं बहरयलनि, "कोना छह बाबू?"
           नीक वा बेजाय तं नहि बाजल मुदा बाजल, "दादी, तुम आ गई। अब मजा आ जाएगा।"
           प्रफुल्ल बाबीक आलिंगनसं फराक होइत बाबा दिस लपकल, "हाइ फ्रेंड! हाउ आर यू?"
           बाबा ओकरा करेजमे साटलनि। बजलाह, "फाइन।"
           बाबा-पोतामे दोस्ती छैक। एक-दोसराक सम्बोधन 'फ्रेंड' छैक। पोताकें जखने केओ पुछैत छलैक जे  दादाक फ्रेंड के? तं ओ झटसं उतारा दैत छल- पोता। आब जे केओ ई प्रश्न पुछैत छैक, तं कहैए- प्रफुल्ल। एकदिन बाबी पुछलखिन जे आब नाम किएक कहै छी? भने पोता कहैत रही। ताहि पर बाजल - 'पोता तो अकेले हैं न। इसीलिए नाम कहते हैं।'
           से ठीके। बूढ़ाकें दू टा बेटा, तीनटा पोती आ एकटा पोता छनि। दुनूकें दू-दू टा संतान। इहो पोता जे भेलनि तकर खिस्सा छैक। बूढ़ी बरोबरि डौलीकें कहथिन, "स्वीटी कें एकटा आर भाय वा बहिन होमक चाही। एसगर..."
           कि बिच्चहिंमे पुतौहु गपकें लोकि लेलकनि, "हमरा दुनूक व्यस्तता देखिते छी। दू-दू साल पर बदली। कोना निमेरा हेतै? तें दोसरक प्लान नहि करै छी। एकटा छै, वैह बहुत भेलै। ओ तं हमर विभागक सुविधे एहन छैक जे दुनू प्राणीक बदली एक शहरमे भ' जाइ छै। नहि तं, इहो एकटा..."
           बूढ़ीकें मोन पड़लनि। पछिला बरख डौली अपन प्रोमोसन नहि लेलनि। दुनू चीफ मैनेजर भ' जइतय तं ई सुविधा नहि भेटितैक। तथापि ओ बजलीह, "से तं ठीक। तैयो, हम कहलहुं। अहां सभ सोचब।"
   ‌‌        से ओ दुनू दोसर बच्चाक 'प्लान' तखन बनौलक, जखन डौलीक नैहरक शहरमे दुनूक बदली भेलैक। आ जन्म भेलैक प्रफुल्लक।

बाबाक नजरि घड़ी पर गेलनि। बीस मिनटक बाद स्वीटीक स्कूल वैन औतैक। पोताकें कहलनि, "खाना खा लिए।"
             पोतासं पहिने सुलेखा बाजलि, "स्कूल स' अएला के बाद दूध पिलखिन हन। बोललखिन जे खेनाइ दादी के हाथे खेबै।"
            बूढ़ी बजलीह, "परसि दहक।"
            बूढ़ा दिस तकैत सुलेखा बाजलि, "हिनको खाना परसि देबनि?"
            "एखनि नहि। स्वीटी आबि जायत तखन..."
            सुलेखा प्रफुल्लक भोजन आनि क' देलकि। बाबी पोताकें खुआब' लागलि। मुदा, पोता छिड़िया लागल। एखनि नहि खायत। टी वी चलैत रहैक। ओ 'स्पाइडर मैन'क करतूत सभ देखि रहल छल से समाप्त नहि भेल छलैक। समाप्त भेलाक बाद खायत। बाबी परबोधैत छलीह। बाबा-बाबीकें बुझल छनि जे टी वी बन्न करताह तं आर छिड़िया जायत। चिचिअएबो करत- टी वी खोलो।
             सुलेखा बाजलि, "बाबू! टी वी बन्द कर दें। खाकर देखिएगा। तब तक मोबाइल देखकर खा लिजिए।"
             प्रफुल्ल शान्त भेल। सुलेखा टी वी बन्न क' देलकि आ मोबाइल प्रफुल्लक हाथमे थम्हा देलकि। मोबाइल देखितहिं बच्चा खाय लागल। बाबी खुआब' लगलखिन। हुनका किछु बजबाक अवसर नहि देलकनि पोता। 
            बाबा सुलेखाकें कहलनि, "ई कोन बानि छै? एकरे कहै छै तार पर सं खसि क' खजूर पर आयब।"
            बाबीकें रहल नहि गेलनि। पतिक गप काटलनि, "तार पर सं खसब नहि भेलै ई। खजूर बाटे तार पर चढ़ब भेलै।"
            सुलेखा माथ निचां कयने बाजलि, "ई आदति त' पहिले स' होतनि ने।"


संध्याकाल करीब साढ़े सात बजे सुलेखा बूढ़ीकें कहलकि, "अपने आर छेबे करथिन, त' हमे घ'र जइयै? राति के खाना बना देलियनि हन।"
            "गप की भेलह-ए?"
            "गप होलै हन जे जा तक साहेब या मैडम नहि आइ जैथिन, ता तक हमरा रहय के छिकै। आइ अपने आर छिकियै, तें सोचलियै जे...। काल्हि भोरे साढ़े छौ बजे आइ जेबै।"
            "बेस जाह।"

रातिक आठ बजे वैभव आयल। अबितहिं माय-बाबूकें गोड़ लागि बेटाकें कोरामे ल' दुलार कयलक। तकर कनिए काल बाद डौली आयलि। घर भरल-भरल सन लगलैक।
           फ्रेश भेलाक बाद सभ गोटें बैसल। प्रफुल्लक चंचलतासं आनन्दित होइत गेल। ट्यूशन आ स्कूलक होमवर्कक चर्च भेलैक। स्वीटी अपन होमवर्क आ डायरी पापाकें देखौलकि। प्रफुल्ल अपन मम्मीक कोरमे उछल-कूदमे लागल छल। बाजल- 'हमको मैम कोई होमवर्क नहीं दी है।"
          "हमको नहीं, मुझे।" वैभव टोकलकै, तं प्रफुल्ल बाजल, "मिन्स मुझे। क्लास मे जो पूछती है, सुना देता हूँ। ट्यूशन वाली मिस याद करा देती है।" ओ स्वीटी दिस तकैत अपन दुनू हाथक औंठा आ कान्ह हिलाब' लागल। शान्त स्वीटी बाजलि, "अभी नर्सरी में हो न, बड़े क्लास मे जाओगे तब समझना।"
           "ओ के। जब जाएंगे, तब समझेंगे।" प्रफुल्ल अपन स्वाभाविक रूपमे आबि गेल।
            वैभव गपकें बदललक, "एत' अएने एकरा दुनूक भाषा गड़बड़ा गेलैए। बिहारी हिंदी बाज' लगलैए।"
            डौली बाजलि, "की करबै? जेहन देश, तेहन भेष।"
            माय वैभवकें कहलनि, "मुदा, अपनो भाषा अएबाक चाही।"
            "से तं तोहीं सभ सिखेबही। आ तों सभ एत' पाहुन जकां अबै छें। कोना सिखतै?" बेटा मायक गपक उतारा दैत छल, "ओना मैथिली बूझि लै छै, मुदा रिटर्न‌ नहि क' पबै छै।"
            "हमहूं सभ परमानेंट नहि ने रहि सकै छियौ। घरो पर तं बहुत काज छै। कोनो किरायादारो नहि छै, जे घरक कने ओगरबाही हेतै। तखन, जखन-जखन जरूरी होइ छौ, आबिए जाइ छियौ।" माय बजलीह।
            पिता देखलनि जे बेटाक मोबाइल पर ताबड़तोड़ मैसेज आबि रहल‌ छलैक। पुतौहुक मोबाइल पर सेहो। दुनू मैसेज देखय। कतहु फोरवार्ड करय आ गपो करय। एक-दू बेर कौल सेहो अएलैक, मुदा ओ दुनू कौलकें साइलेंट क' दिअय। पिताकें रहल नहि गेलनि। बेटाकें कहलनि, "जरूरी फोन छह तं गप क' लैह। मैसेजो बहुत आबि रहल छह।" पुतौहु दिस तकैत बजलाह, "कनियां, अहूंक फोनक यैह हाल अछि। काज बढ़ि गेल अछि?"
           वैभव उठि क' गप कर' गेल आ डौली ससुरक प्रश्नक उतारा देलकि, "काज कमे कहिया रहै छै? एक-ने-एक जरूरी रहिते छै। आब प्राइवेटे की, सरकारियो बेसी आदेश मैसेजे सं अबै छै आ अनुपालनो होइ छै। कार्यालयी विस्तृत डेटा सभ मेल पर अबैत-रहैत छै। समय कहां छै? सभ के तुरन्ते उतारा चाही।"
            "मुदा, घर-परिवारक देखभाल, बाल-बच्चाक सही निमेरा आ दाम्पत्यक संतुलन सेहो जरूरी छै ने।" सासु पुतौहुकें कहलनि।
            वैभव कोठरीसं बहरायल। बाजल, "आब भोजन-भात होइ। भोजनक बाद कनेकाल एकरा दुनूकें पढ़यबाको छै।"
            सासु आ पुतौहु एक्के बेर भानस घरमे पैसलीह।

पत्नी पति लग अपन चिन्ता उझीलि रहल छलीह। बच्चा सभक नीक जकां निमेरा नहि भ' रहल छै। एकरे सभक बारे मे सोचि माथ टनकैत रहैए। आखिर संतति तं अपने सभक खराप भ' रहल अछि। एहि तरहें काज कोना चलतै? दुनूकें टी वी आ मोबाइलक एहन हिस्सक छै, से जानि नहि...अपनो दुनू अबैए तं मोबाइले मे ओझराएल रहैए। एकटा मोबाइल घरमे राखि देने छै। कहलियै जे किएक? तं कहलक जे दिनमे जेना-जेना समय भेटैए, तं वीडियो कौल क' लैत छियै। हाल तं यैह छै। अपनो सभ सभदिन नहि रहि सकै छी। हम तं डौलीकें कहलियनि जे पापा रिटायर भ' गेलाह। एकहक मासक पारी लगाउ। एक मास हम दुनू गोटें रहब, एक मास ओ दुनू गोटें रहथि। मुदा, से समधि-समधिनकें मंजूर नहि छनि। कहै छथिन जे एहिठाम बदली करा ले। धियापुताकें पोसि देबौ। नहि तं नोकरी छोड़ि दे।
            पति बजलाह, "ई बात बियाहक समय डौलीकें हम कहने रहियै, तं बाजल छलीह जे बेसी दिक्कति होयत तं नोकरी छोड़ि देब। मुदा, जत्तेक नोकरी होयब मोश्किल छै, ताहिसं बेसी छोड़ब होइ छै।"
             पत्नी बजलीह, "से तं डौली सेहो कहै छथि जे मम्मी जी नोकरी छोड़ल नहि होयत हमरा बुतें। एकाध बेर सोचबो कहलौं, तं लागल जे घरमे बिनु काजक कोना रहि पायब?"
            "बच्चो सभकें कोनो तेहन संगी नहि छैक। महानगर सनक अपार्टमेन्ट जिला आ कमीश्नरी बला शहरमे नहि छैक। एत' तं बुझू जे खुट्टा पर तहखाना बना देने छै। कत' बुलत बच्चा सभ? कत' खेलत? तें देखै नहि छियै। दोसर तल्ला बला ओ बच्चा बरोबरि अपना ओहिठाम अबैए आ प्रफुल्लक संग रड़धुम्मस मचौने रहैए।"
             दोसर दिन ससुर पुतौहुकें फोन क' पुछलनि जे ओ एक घंटाक लेल दुनू प्राणी आबि सकैत छथि। डौली मैनेज कयलकि। ससुरक कथनानुसार‌ चारि बजे दुनू प्राणी डेरा पहुंचल। ससुर डौलीकें कहलनि, "हम नेट पर चेक कयलहुंए जे एत' कला केन्द्रमे भरतनाट्यमक क्लास होइत छै। स्वीटी अहमदाबादमे सिखैत छलि। हम कलाकेन्द्रक हेडसं गप कयलहुं अछि। चलू, स्वीटीक नामांकन कराओल जाय।"
            बेटा-पुतौहु आ पोता-पोतीक संग बाबा कलाकेन्द्र गेलाह आ स्वीटीक नामांकन भेल। ओकरा पेंटिंगमे सेहो रुचि छलैक। ओहूमे नामांकन भेलैक। दू दिन माने शनि-रवि क' नृत्य आ शेष चारि दिन पेंटिंग। तय भेलै जे एक गोटें ओकरा कलाकेन्द्र पहुंचाओत आ दोसर आनत। वैभव बाजल, "आब इंगेज रहत स्वीटी।" 
            ओत' प्रफुल्ल सेहो हल्ला कर' लागल जे ओहो सीखत। मुदा ओकर माता-पिता तय कयलक जे एकरा लेल कोनो म्यूजिकल इन्स्ट्रूमेंट घरमे राखि देल जाय, जाहि पर अभ्यास करत। तकर बाद जेहन रूचि हेतै, करत। स्कूल-ट्यूशनक बाद पहिने एतेक इंगेज तं रहय।"

मुदा बाबीकें पोताक चिन्ता सालैत रहलनि। पोतीक सेहो। पतिकें कहलनि, "अहांकें नहि लगैए जे दुनू बच्चा पर बोझ बेसी भ' जेतै?"
            "हं, बोझ कने बढ़तै, मुदा ई सभ सीखब शुरू करबाको समय तं यैह छै।"
            पत्नी बजलीह, "से जे कहियौ।"
            अधरतियामे पत्नीक निन्न टुटलनि। पतिकें उठौलनि। पतिकें लगलनि जे काल्हि भोरे घुरबाक छनि, तें निन्न उचटि गेलनिहें। पुछलनि, "की भेल?"
            "अएं यौ। ई धियापुता सभ नीक नहि बनतै तं अपना दुनूकें केओ माफ करत वा अपने दुनू गोटें स्वयंकें माफ क' सकै छी?"
  ‌‌          पति सकदम। कनेकालक बाद बजलाह, "चिन्ता नहि करू। अपना सभक समयक हिसाबसं आजुक समयकें नहि तकियौ।"
             प्रात भेने ड्राइंग रूमसं बहराइत काल सुलेखाकें कहलनि, "जाइ‌ छियह। मुदा समय-कुसमय अबैत रहबह। दुनू बच्चाके अपने पोता-पोती सन राखिहह।"
            ‌‌‌             -------

Tuesday, August 1, 2023

नाच (मैथिली कथा) : प्रदीप बिहारी


नाच

प्रदीप बिहारी


सरस सिनेहीकें निर्देशक पर तामस उठल रहनि। तामस एहि दुआरें‌ उठल रहनि जे निर्देशक नाटकक आरंभिक दृश्य बदलि देने छलाह। केहन बढ़िया अल्लू बम चौकी पर बजारल जाइक आ जहिना लोक सुनय 'फटाक', तहिना पर्दा घिचनिहार रस्सी घिचय आ मंच पर सजल-सजाओल दृश्यक संग कलाकारकें‌ लोक देखय। नाटक शुरू भ' जाइक। मान्यता रहैक जे, जे जतेक जोरसं संवाद बाजय, से ततेक पैघ कलाकार।
       मुदा राजनारायण डाक्टर दू मास पर दिल्लीसं घुरलाक बाद नाटकक रूपे बदल' पर लागल रहथि। चाहैत रहथि जे पहिले दृश्य मे सभ कलाकार कोरसक रूपमे मंच पर नचैत आबय, नाटकक मुखगीत गाओल जाइक, मंचक दू-तीन फेरा लगा क' नेपथ्य मे चलि जाय। 
        नब ढंगक एहि आरंभक पक्ष-विपक्षमे गाममे दुगोला सन भ' गेलैक। एक गोल कहैक जे परिवर्तन जरूरी छै, सभ बेर एक्के रंगक आरंभसं मोन ओंगठि गेल छै लोकक। दोसर गोलक लोक कहैक जे एहिसं पात्रक गोपनीयता नहि रहतै। लोक के नब-नब दृश्य मे नब कलाकार के देखबाक आतुरताक आनन्द नहि रहि पौतैक। सरस सिनेही सेहो विरोधिए पक्षक रहथि, अपितु ई कहल जा सकैछ जे विरोधी पक्षक अगुआ छलाह। मुदा हुनक जुति नहि चललनि। निर्देशक राजनारायण अपन निर्णय पर कायम रहलाह। गाममे हुनक विरोध करब मोश्किल बात। पछिला बीस बरखसं वैह निर्देशक होइत रहलाह। ओ राजस्व विभागक कर्मचारी छलाह आ गमैया डाक्टर सेहो छलाह। मेटेरिया मेडिकाकें घोंकि होम्योपैथिक डाक्टर कहाथि, मुदा एलोपैथिकसं सेहो परहेज नहि छलनि। रोगीक दुख छुटक चाही, खाहे कोनो पैथीसं होअय। रोगीक दुख छुटि जाइक, बस...। गौंआके आर की चाही? 
       नाटकक नीक कलाकार होइतहुं सरस सिनेही निर्देशक डाक्टर राजनारायणक सोझां ठठि नहि सकलाह। हुनका नाच' नहि अबैत छलनि। समूह नृत्यमे स्टेप मिलायब हुनका लेल कुनैनक गोटी सन तीत छलनि। सात दिन धरि रिहर्सलक बादो स्टेप नहि मिललनि, तं निर्देशक हुनका अभिनयसं हटा क' नेपथ्यक काज थम्हौलखिन। कने-मने गुल-गुल चललै‌ गाममे। मुदा सभ शान्त। विरोध पर‌ दरी ओछा देल गेलै।
         सरस सिनेही सोचलनि जे‌ ओ नेपथ्यक काज नहि करताह। सभ दिन हीरो के पाट खेलाइ छलाह आ आब मेक-अप करताह वा वस्त्र-विन्यास करताह वा मंच-सामग्रीक ब्योंत करताह वा अल्लू-बम पटकताह वा परदाक डोरी घिचताह। नहि, एहन कोनो काज नहि करताह। गाममे अपन छवि खराप नहि करताह। बड़ समझौता करताह तं सेकेंड हीरो के पाट क' सकैत छथि। ओहिसं नीचां नहि खसताह। 
          तखनहि एकटा बात मोन‌ पड़लनि। निर्देशक राजनारायणकें जे कलाकार पसिन नहि पड़ैत छनि तकरा ओ बीच नाटकमे नाकाम क' दैत छथि आ दर्शक सभ पिहकारी मार' लगैत छैक। कारण प्रचलित मान्यताक कारणें निर्देशके प्राम्पटर सेहो होइत छल। जाहि पात्रकें ओ नहि चाहथि, ओकर संवाद एतेक स्थिर सं बाजथि जे ओ सुनबे ने करय, मंचे पर अकबका जाय। दर्शक सभ बुझै जे कलाकार पाठ बिसरि गेल आ पिहकारी शुरू । जं कोनो कलाकार अपना मोने संदर्भ के जोड़ैत कोनो दोसर संवाद बाजि‌ दिअय, तं राजनारायण तामसे फुच्च। परदाक पाछां लालटेम वा टार्च देखौनिहार पर तमसाथि आ चुप भ' जाथि। परदा घिचनिहार देखय जे कलाकार सभ चुप अछि तं परदा खसा दिअय। नटुआक नाच शुरू भ' जाइक आ नेपथ्य मे संसदक सत्र चालू। अपन अवज्ञाक बहन्ने निर्देशक राजनारायण रुसि जाथि। फेर मान-मनौव्वलि होनि आ नाटक शुरू होइक।
        ई सभ बात एहि दुआरे होइक जे बेसी कलाकार पाठ यादि करब अपन शानक विरुद्ध बुझय। ओहि गामक त्रिदिवसीय नाटकक‌ आयोजनमे कम-सं-कम‌ एको राति एहन घटना होयब सोहाग-भाग रहैक।
        सरस सिनेही सोचलनि जे प्रतिष्ठा बचयबा लेल नीक बात यैह जे नाटकक एहि सत्ताधारी मंडली सं हटि जाथि। देखताह जे हुनक अभाव गौआं सभकें कतेक खटकैत छनि?
         सरस सिनेही जी पहिने मात्र सिनेही रहथि। गामक नाटक छोड़लाक बाद कविता लिखबाक अभ्यास कर' लगलाह। नाममे जोड़लनि सरस। भ' गेलाह सरस सिनेही। मोनमे भेलनि जे नाम बदलने किनसाइत भाग्य बदलि जानि।
         से भाग्य बदललनि सिनेही जीक। नोकरी भेटि गेलनि आ गाम छोड़' पड़लनि। शहरमे अयलाह। पड़िकल मोन कतहु मानय? ताक' लगलाह नाट्य मंडली आ साहित्यिक संस्था सभकें। भेटबो कयलनि। नाटक आ कविता चल' लगलनि। मुदा, एकटा बात भेलैक। शहरोमे 'रियलिस्टिक प्ले'क अवस्था बदलल जा रहल छल। 'म्यजिकल प्ले' रंगमंचक केबाड़ ढकढ़काब' लागल छल। सरस सिनेही रियलिस्टिक प्ले मे सहज रहथि मुदा म्युजिकल प्ले मे असुविधा होम' होनि। मुदा, ओ ताहिसं डेरयलाह नहि। जखने रिहर्सल कर' जाथि कि गामक राजनारायण डाक्टर मोन पड़ि जाथिन। मोन पड़थिन निर्देशक आ प्राम्पटर राजनारायण। आ मोनकें बान्हथि। नहि, एत'सं पड़यताह नहि। सिखताह नृत्य। कम-सं-कम ओत्तेक अबस्से जतेक नाटकमे खगता होयतैक।
          से, सरस सिनेही नृत्य सिखलनि। 
          एकदिन पत्नी कहलखिन, "यौ, नाच सिखलहुं से एकबेर हमरो देखाउ ने।"
          पत्नीक गपकें 'फेर कहियो' कहि टारि देलनि। ओ कोठरी बन्न क' टेप रेकार्डर पर कैसेट बजौलनि आ नाचबाक उपक्रम कयलनि। मुदा पयर उठबे ने कयलनि।बेर-बेर प्रयास कयलनि। तैयो ओहिना। 
          जा, ई की भ' गेलनि? आब नाटक‌ कोना करताह? सांझखन रिहर्सलमे जयबाकाल तनाओ रहनि जे कोना करताह? मुदा, रिहर्सल मे कोनो असुविधा नहि भेलनि। तखन? निर्देशककें कहलनि तं कहलकनि, "किनसाइत संकोच होइत हैत। नृत्य कर' काल मोनमे राखू जे मंचे पर क' रहल छी। तहिना करैत रहब तं धाख टुटि जायत। बयस बढ़ने किछु गोटे के एना होइत छनि।"
          "मुदा मंच आ आन ठाम मे फरक होइ छै ने।"
          "एही बात के मोन सं हटा दियौ।"
          मुदा, सरस सिनेही जीक मोनसं से बात हटि नहि सकलनि। हटितनि कोना? स्वयंकें यथार्थवादी शिल्पक अभिनेता मानथि।
          
राति चढ़ल नहि रहैक। साढ़े सात बजैत हेतैक। टी वी देखैत छलाह। ककरो मूड़ी छोपि लेल गेल रहैक, सैह समाचार टी वीक सभ चैनल पर अनघोल मचौने रहैक।
चैनल सभ विशेषज्ञ आ विभिन्न पार्टीक नेता सभकें बजा-बजा बुझू जे नचा रहल छल। ओ सभ अपने ताले‌ नाचि रहल छल। सिनेही जी कें मोन पड़लनि जे बुलडोजर मिशन पर सेहो एहने नाच होइत रहै टी वी पर। ओहू सं बेसी तं लिव इन मे रह' वाली छौंड़ीके पैंतीस टुकड़ी क' देबाक घटना पर भेल रहैक। सि‌नेही जी सोचैत रहलाह‌ जे पैंतीस खण्डकें बुझू जेना पैंतीस टा तालमे पियाजुक खोइया हटा-हटा हत्याक प्रक्रिया कें बुझाओल जाइत रहैक। किछु गोटें अबस्से सिखने होयत। 
         टी वी बन्न करबा लेल रिमोट उठौनहि रहथि कि बाट पर बजैत डी जेक ध्वनि कोठरीके थरथरा देलकै मने। तखनहि पत्नी भीतर अयलीह आ बजलीह, "यौ अहां बहीरो छियै?"
        "से किएक?"
        "एत्तेक जोरसं डी जे बाजि रहल छै‌ से सुनै नहि छियै? चलू बाल्कनीमे। देखियौ कोना नृत्य करैत अछि छौंड़ी-मौगी सभ।"
        "हं डी जेक थरथरी हमरो बुझाएल। चलू।"
         पति-पत्नी बाल्कनी मे ठाढ़ भ' बाट दिस तकलनि। देखिते सिनेही जी बजलाह, "एकरा अहां नृत्य कहै छियै? ई सभ त' धमगज्जर ताल पर नाचि रहल अछि। मुदा, ब'र बला गाड़ी नहि देखै छियै।"
         "बरियाती थोड़े छै जे देखबै।"
         "तखन?"
         "कुमरम कर' जाइ छै। हे वैह देखियौ। ब'र के माथ पर पीयर धोती राखि क' एकटा मौगी जा रहल छै। मने, बिधकरी हेतै।"
         "मुदा, ओ छौंड़ा तं जिन्स पहिरने छै।"
         "ताहिसं की? अपना सभ सन नहि‌ छै। मुदा नाच  तं आब अपनो सभ मे‌ होम' लगलैए।"
         "हे देखियौ। कोनो मौगी के नाच' अबै छै? लगै छै जेना हाथ-पयर भंजैत होअय आ देह पटकैत होअय।‌ भूत लागल होइ जेना। जानि नहि, एहि मे कोन आनन्द भेटै छै। यैह देखाब' हमरा घिचने अनलहुं अहां?"
         "जे होइ। जहिना होइ। उत्सव के भोगैए ने। बेजाय नहि मानू, अहूं के तं नाच' नहिए अबैए।"
         पत्नीक ई बात छक् द' लगलनि सिनेहीकें। मुदा, सहि गेलाह। सोचलनि, पत्नी हुनका नचैत नहि देखने छथिन, तं यैह ने बुझतीह। गंभीर स्वरमे बजलाह, "भोगत की? केओ भोगा रहल छै। जानि नहि कुमरम‌ मे एहन तं बियाहमे केहन हेतै? चलू, चाह पिआउ।"
         ताबत कुमरमक जुलूस सेहो आगां बढ़ि गेलैक।

समधौतक बियाह तय भ' गेल रहनि। तैयारीमे लागल छलाह। एही क्रममे पत्नी कहलखिन, "आभासक बियाहमे नचबै ने?"
         "हं, आब सैह बाकी रहि गेल-ए। नाचू ग' अहां। आ अहूं सोचियौ जे समधियानामे रहब। समधि-समधिन भ' क' नचबै, से नीक हेतै?"
         "हेतै ने किए? आब गेलै जमाना। ओत्ते टा रिसॉर्ट मे बियाह हेतै, मेहदी हेतै, हल्दी हेतै, बियाह हेतै। सभ टा के शोभा-सुन्दर नाचे-गान ने। दोसर बात समधि अहां के छोड़ताह थोड़े। मानसिक रूप सं तैयारी करैत रहू।"
          सरस सिनेही कें लगलनि जे ई गप पत्नी नहि, राजनारायण डाक्टर कहि रहल छथि। भय आ तामस, दुनू मोनमे उपजि गेलनि।
          "सैह कहै छी, घिनेबै नहि ओत'।"
          "एखनि बड़ दिन बाकी छै।"
          "यौ, बियाह-दानक तैयारीमे दिन कोना ससरि जाइ छै, से बुझाइ छै? बेबी तं डान्स क्लास ज्वाइन क' लेलनिहें।"
          "से किए?"
          "भायक बियाहमे नाच' लेल। विभिन्न उत्सवक तीन-चारि टा क' गीत सभ पर प्रैक्टिस करा रहल छनि।"
         "अहूं किए ने ज्वाइन क' लैत छी। एतहु तं सुविधा छै।"
         "हमरा कोनो अबैए नहि। स्कूले समय सं सिखने छी। ई दोसर बात जे अभ्यास छुटि गेल अछि। हम घरे मे  अभ्यास क' लेब। अहां जकां नहि अछि जे पयर मे जांत बन्हा जायत।"
         "एना निकृष्ट नहि बुझू हमरा। हमरा कोनो नाच' नहि अबैए। कार्यालयी दबाओक कारणें रंगमंच छुटि गेल अछि। हमरो नाच' अबैए मैडम, मुदा हम अहां सभ सन धमगज्जर ताल पर‌ नहि नाचब।"
          "एकर माने बियाह-दानमे लोक बिनु रिदमेक नचैए? धमगज्जर करैए? कवि जी! भ्रम मे नहि रहू। लोक आनन्द लेल नचैए।"
         "आनन्द लेल तं अपना मोनसं नाचैए लोक। अहां जे कहै छी, ताहिमे लोक देखाउंसे नचैए, दोसर के देखब' लेल नचैए। अपने मोने नहि नचैए। नचेनहार केओ आर छै, तकरा नहि चिन्हैए। खाली नचैत रहैए।"
         "गलत। एकदम गलत। नाचबाक अपन-अपन स'ख-सेहन्ता होइ छै आ स'ख-सेहन्ता आनक मोने नहि होइ छै। आब तं ब'र-कनिया सेहो नाचक प्रैक्टिस करैए।"
         "बेस, आब तं..."
         बिच्चहिमे पत्नी रोकि लेलखिन, "बस, चुप भ' जाउ। आब अहां की कहब से बूझै छी। आब अहां लग अंतिम अस्त्र अछि- कवियाठी करब।"
        सरस सिनेही चुप भ' गेलाह। मोबाइल खोलि क' देख' लगलाह।
         मोबाइलमे रील, फेसबुक-स्टोरी आ यूट्यूब बेराबेरी देखलनि। खाली नाच, विभिन्‍न प्रकारक नाच। इंगेजमेंटक दृश्यमे लड़की नचिते लड़का लग जाइत छै। आर सभ ओकरा संग स्टेप मिलबैत छैक। पार्श्व गीत एहन, जकर बखान नहि। अकबका गेलाह।  निर्णय नहि क' पाबथि जे कोन नाच ठीक छैक? ओ सभ करैत छलाह, से वा एहिठाम देखि रहल छथि, से। आ मोबाइलमे जे नाच देखैत छथि, तकर व्यू तं लाखो-करोड़ो मे होइत छैक। सोचलनि सिनेही जे एहि मामिलामे ओ अल्पसंख्यक छथि मने।
         समधौतक बियाहमे 'हल्दी'सं एकदिन पहिने नहि पहुंचि सकलाह। तें पत्नीक मोन झूस छलनि। छुट्टी नहि भेटलनि।‌ एना बिदा भेलाह जे 'हल्दी'क समय‌ धरि पहुंचि जाथि।‌ पत्नीकें एकटा 'इवेंट मिस' भ' गेल रहनि। चूंकि कन्यागत सेहो ओही रिसॉर्टमे रहथि तें वियाहसं एकदिन पहिने कन्यागतक ओहिठाम 'मेहदी'क कार्यक्रम रहैक आ ताहिमे दुनू पक्ष सम्मिलित भेल छल। जमि क' नाच भेलै।‌ लगलै जेना दुनू पक्षक बीच प्रतियोगिता भ' रहल होइक। 
          ई सभटा बात पुतौहु व्हाट्स एप पर लिखने रहनि आ वीडियो क्लिप पठौने रहनि। ओ इयर फोन लगा क' वीडियो देखि रहल छलीह। रहल नहि गेलनि तं सिनेही जी कें कहलनि, "अहां बड़ निशोख लोक छी। एत्तेक सुन्दर प्रोग्राम छुटि गेल। के-के ने नाचल। एकटा हमहीं...। अपना नाच' अबितनि तखनि ने...!"
          "हमरा ऑफिस मे छुट्टीक हाल तं बुझले रहैए। एहन छल तं दस दिन पहिने किए ने चलि गेलहुं?"
          "हे, अकरहक लीला नहि करू। ओहो सभ एके दिन हल्दी आ बियाह राखि लेलनि। लोक की इंज्वाय करत?"
          "एहिनो होइ छै। रिसॉर्टक खर्च बूझल अछि? तें एके दिनक खर्चमे दुनू बीध रखलनि समधि।"
           "अहूं सं पुछनहि हेताह आ अहां दही मे सही लगा देने हेबनि। यौ कवि जी! एक्केटा तं बेटा छनि समधिके। ओत्तेक सम्पत्ति! हाथ खोलि क' खर्च कर' दीतियनि ने।"
           "सभटा बात अहीं बूझि जेबै?" कने थम्हैत बजलाह सिनेही जी, "अहांके नाचबाके अछि ने। एके दिनमे दुनू कार्यक्रम छै। नचैत रहब भरि दिन।"
          "तेना नहि ने होइ छै। लोक थाकियो जाइए, बोर सेहो भ' जाइए।"
          तखनहि मोबाइल पर आंगुर तेजीसं चल' लगलनि। किछु ताक' लगलीह। मोबाइल पर चलैत आंगुरे सन तामसे सांस सेहो तेजीसं चल' लगलनि। सिनेही जी पुछलनि, "की भेल?"
          लगलै जेना टेन अनचोके रुकि गेल होइ। मुदा नहि, टेन चलैत रहै। 
         "देखियौ, मेहदी बला प्रोग्राम मे मिथि कतहु‌ नजरिए ने आबि रहल छै।"
          मिथि हुनका दुनूक छओ बरखक पोती छनि।
          "मोन तं ने खराप भ' गेलै मिथिक? वीडियो मे कत्तहु ने देखाइत छैक।"
          सिनेही जीकें सेहो चिन्ता भेलनि।
          "बेबी के व्हाट्स एप करियौ ने। पुछियौ।"
          बेबीक व्हाट्स एप पर कौल भेल।
           "नहि, मम्मी जी। मिथि नहि नचलै।"
           "किएक? ओकर मोन ठीक छै ने?"
           "हं, ठीक छै। मिथि बाजलि जे ओकरा नाचबाक मोन नहि छै। हमहूं सभ छोड़ि देलियै। आर कोनो बात ने।"
           "ओ भरतनाट्यम सीख' जाइत अछि ने?"
           "हं, ओकर गुरुआइन अगिला मास एकटा कार्यक्रम क' रहल छथिन। ताहिमे मिथिक शो सेहो हेतै।"
           "बेस। इन्ज्वाय करू। काल्हि दुपहर धरि हमहूं सभ पहुंचि जायब।"
           "ओ के मम्मी जी।"

कतोक बिगहामे पसरल रिसॉर्ट मे भव्य आयोजन रहै। जखने सिनेही सपत्नीक पहुंचलाह तं समधि-समधिन स्वागत कयलखिन आ कहलखिन जे झट द' तैयार भ' ग्राउंड फ्लोर पर आबधि। हिनके दुनूक प्रतीक्षामे 'हल्दी'क कार्यक्रम रुकल छलैक।
        यंत्रवत दुनू पहुंचलाह आ शुरू भेलै बीध। कने दूर पर डी जे चिचिआयल। एक-दोसरासं गप करबाक परिस्थिति नहि रहैक। सभ नाचब शुरू कयलक। वीडियो बला बुझू विभिन्न तालमे दृश्य 'कैप्चर' क' रहल छल।
         मिथि माम लग बैसलि मुस्किया रहल छलि।
         बीध समाप्त भेलाक बाद अपन कोठरीमे सरस सिनेही ओछाओन पर ओंगठल रहथि आ टी वी देखबाक प्रयास क' रहल छलाह। हाथमे रिमोट छलनि। चैनल बदलैत रहलाह। एक्के रंगक समाचार। सोचलनि जखन समाचारमे एक्के आदमी छैक, तं केहन हेतै समाचार? एक्के रंगक ने। कतहु रामायण पर टिप्पणी, तं कतहु कुरान पर। कतहु हनुमान चालीसा बला विवाद तं कतहु बाट पर नमाज पढ़बाक बात । कोनो नेता जेल गेलाह, तं कोनो अपन पार्टीसं बहार कयल गेलाह। सभ पर गरम-गरम बहस। बहस कयनिहार सभ अपन-अपन नेताक गुणगान मे बेहाल। 
           सिनेही सोचलनि। अपन देशमे मने सदिखन कोनो-ने-कोनो चुनाओ होइते रहै छै। तें टी वीक समाचार चैनल सभ पर नाच सेहो होइते रहैत छै। 
           टी वी बन्न कयलनि सिनेही। मोन पड़लनि। एकटा प्रोफेसर साहेब कहैत रहथिन- मानल जे बियाहक बीध टी वी बाटे दिल्ली सं आबि अपना सभकें छापि लेलक। एकर माने ई नहि ने जे आबो बरदे गाड़ी पर बरियात जाय लोक?
          सिनेहीकें बुझयलनि जे राजनारायण डाक्टर दिल्ली चलि गेलाह अछि।
          तखनहिं समधि कोठरीमे अयलखिन, "समधि! पड़ल किएक छी? चलू ने।"
         "कत'?"
         "रूम नम्बर दू सय आठ मे? साफा बन्हबा लिअ'।"
         "पागक व्यवस्था नहि छै?"
         "नहि। पाग बेसी काल माथ पर नहि टिकै छै। डान्स कर' मे खसि पड़बाक बेसी संभावना।"
         "तेहन बात नहि छै। आब पागक बनौट मे सुधार भेलैए।"
         "तैयो नाच' कालमे खसि पड़बाक खतरा रहै छै। ओना साफा सेहो अपने सभक शिरो परिधान छल ने।"
         सरस सिनेही माथमे साफा बन्हबा क' अपन कोठरीमे अयलाह आ बड़का अयनामे स्वयंकें निहारलथि। माथ भारी लगलनि।


बियाह-दान सम्पन्न भेलै।‌ अपन कोठरीमे अयलाह तं पत्नीसं पुछलनि, "अएं यै, कनियाकें ओत्तेक भारी आ जबदाह लहंगा किएक पहिरा देलकै जे बेदीक चारुकात घुम' काल दू गोटेकें पकड़' पड़ैक।"
           "से सभ नहि बुझबै अहां। सभटा स'ख-मनोरथ होइ छै। बियाह दोबारा थोड़े होइ छै।"
          "मर, हम पुछै छी किछु आ अहां उतारा दै छी किछु।"
          "तं सही बात कहि क' अहां सं के बतकुट्टनि करय। थाकल होएब। सूति रहू।"
          सिनेही पत्नी लग आत्मसमर्पण कयलनि, "बेस। अहूं कम थाकल नहि होयब। खूब नचलहुं अछि।"
          पत्नीकें जेना किछु मोन पड़लनि, "अएं यौ, समधि संगे तं अहूं के नचैत देखलहुं। हमरा सोझां पयरे ने उठय आ समधि संगे तं...। मुदा..."
          "की?"
         "मंचक दुनू कातक पर्दा पर लाइव वीडियो देखाइत रहै, ताहिमे अहांक डान्स नहि देखलहुं।"
          "नहि देखलहुं तं की भ' गेलै? भने नहि देखलहुं।"
          "कैमरा बला काटि तं ने देलकै? मुदा लाइव‌मे काटतै कोना?"
         सिनेही जी कोठरीक प्रकाश बन्न कयलनि। बजलाह, "आब अन्हारमे अहांक मुंह सं एक्को टा शब्द नहि बहराय।"
          कनिए कालक बाद पत्नी फोंफ काट' लगलीह। मुदा, सिनेही जीकें निन्न नहि भेलनि। बौआय लगलाह।तीन दिन पहिलुक बजारक ओ घटना मोन पड़ि गेलनि।‌
बजनिहार तं सामान्ये गप सन बजलाह, मुदा सिनेही जीक लेल ओ घटने सन छलनि।
          राजनारायणे डाक्टर सन हुनको शहरमे एक गोटे छलाह। ओहि साहित्यिक संस्थाक अध्यक्ष, जाहिसं कहियो सिनेही जुड़ल रहथि। ओहि संस्थाक बैनरमे किछु नाटक खेलायल छलाह। एक समय हुनका शहरमे जगजियार छल ओ संस्था, मुदा नहूं-नहूं ओकर अधोगति शुरू होम' लगलैक। बीच शहरमे संस्थाक करीब अढ़ाइ कट्ठा जग्गह रहैक, जे जन सहयोगसं अरजल गेल रहैक। सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट सं पंजीकृत संस्थामे अध्यक्ष-सचिव बनबा लेल उतराचौड़ी शुरू भ' गेलैक। सदस्य सभ एक-दोसराकें छिटकी मारबा पर बिर्त होइत गेलाह। मुदा सभ छिटकी अंततः संस्थेके लगलैक आ संस्था मृतप्राय भ' गेलै। स्थानीय राजनीतिक दुष्परिणामक कारणे सिनेही सन लोक संस्थासं हटैत गेलाह आ राजनारायण डाक्टर सन लोक संस्थाक डोरि धयने रहलाह। छहरदेबाली कयल संस्थाक जमीन, जाहि पर संस्थाक मकान नहि बनि पौलैक, मुंह बौने रहल जे कोनो भागिरथ ओकर उद्धार‌ करतैक। 
           समय बीतैत गेलैक। सिनेही सन-सन पुरान लोक संस्थाक जमीन देखि चुपचाप आगां बढ़ि जाइत छलाह। ग्लानि होनि। एक मोन होनि जे आगां बढ़थि, बनथि भागिरथ। मुदा, दोसर मोन नकारि जानि। डर होनि। ओ की महादेवक तपस्या करताह? आजुक महादेव अपन जटामे ओझरा क' तत्तेक ने दूर फेकि देतनि जे ककरो जनतबो ने होयतैक।
          तीन दिन पहिने संस्थाक पूर्व अध्यक्षक पुत्र बजारमे भेंट भेलखिन। 
          "समितिक जगह दिस गेलियैए?"
          "हं, ओहि बाटे जाइते रहै छी। पहिने एकटा सामुदायिक भवन बनल देखलियै आ आब..."
          "आब मंदिर बनैत देखने हेबै।"
          "जी।"
          "दुनू चीज हमहीं बनबा रहल छियै।"
         "तखन तं खूब खर्च लगैत होयत।"
         "किछु अपनो आ बेसी जन सहयोग सं। किछु विधायक आ सांसदक सहयोग सं। आजादीक अमृत महोत्सव चलि रहल छै, किछु ताहूक मद सभ सं उपरौलियैए। आब अपनेक सहयोग चाही।"
           "हम की सहयोग क' सकै छी?"
           "डेराउ नहि, पाइ नहि मांगब। देखनहि हेबै। नाम देलियैए - उगना महादेव मंदिर।"
          "से तं दू-तीन टा मंदिरक गुम्बद सन देखने रही। बस, जाइते-जाइत। भीतर नहि गेलहुं।"
          "भीतर जैतियै ने। अपने तं पुरान सदस्य छियै। बाबा आ मैयाक मंदिर सोझा-सोझी। कातमे उगनाक मंदिर। गेट पर थोड़ेक जगह बचैत रहै, तं ओत' नन्दी के बैसा देलियनि। हमरा बुते जत्ते भेलै से क' देलियै। आब समाज जानय।"
           सिनेही सोचलनि, समाज रहितैक, तं यैह बनितैक साहित्य आ सांस्कृतिक संस्थाक जमीन पर। मुदा ओ बजलाह किछु आर बात। कहलनि, "समाज की करत? अहां एत' धरि बनौलहुं तं कमान सेहो अपने हाथमे राखू।"
           "से बाबाक सेवा सं हम पयर पाछु थोड़बे करबनि? दू मासक बाद प्राण-प्रतिष्ठाक तिथि बनै छै। आग्रह जे ओहिमे अपने अग्रणीक भूमिकामे रहियैक। कवि-कलाकार सभ के रहबाके चाहियनि।"
           "सीतेश जी, हमर कोनो भूमिका तय नहि करू। ओही समय हमर समधौतक बियाह तय छैक प्राय:। तिथि मिला लेबै, तखने किछु कहि पायब।"
           "सोचने छी जे प्राण-प्रतिष्ठाक अवसर पर पूरे शहरमे कलश यात्रा होइक। नाच-गान होइक। आदि-आदि। पूरा शहर बाबामय बनि जाय। तें अहां अपन समय जरूर रखियौ। संस्थाक एकोटा पुरान सदस्य नहि रहतै, तं की कहतै लोक? आ एकटा आग्रह आर।"
          "की?"
          "हमर पत्नी आ धियापुता सभ मोन बनौने छै जे बाबा, मैया, उगना आ नन्दीक प्राण-प्रतिष्ठा दिन खूब नाचय। मुदा ओकरा सभ के नाच' नहि अबै छै। किछु समय बहार क' थोड़े स्टेप सिखा दीतियै, तं बड़ उपकार होइत। थोड़बो अपने सं सीखि लेतै, तं बांकी लोक सभ के देखि क' टानि लेतै।"
          "ई नाच सिखायल हमरा बुते नहि होयत सीतेश जी। हमरा अपने ने नाच' अबैए।"
          "फुसि नहि बजियौ। अहां के टाउन हॉल मे नचैत देखने छी हम।"
          "ओ समय रहैक। आब पयरे ने उठैए। दोसर गप ई जे जुलूस‌ मे नाच' लेल सिखबाक कोन खगता। नचौनिहार नचा दैत छैक। नाचि लेती कनिया आ बच्चा सभ। अहां चिन्ता नहि करू। आब चलै छी।"
          "बेस, मुदा ओहि दिनक कलश-यात्रामे अपने के आगू-आगू रह' पड़त।"
            सिनेही ओत'सं बिदा तं भ' गेलाह। मुदा, लगलनि जे पयर उठिए ने रहल छनि। पयर दिस तकलनि। पयर उठैत रहनि मुदा स्टेप नहि मिलैत रहनि। चारूकात तकलनि। बुझयलनि जे राजनारायण डाक्टर तं ने देखि रहल छनि।
           पत्नीक खोंखीसं तंद्रा टुटलनि। समधौतक बियाहमे तं तीन दिनक बादे आबि गेलाह। दू मासक बाद कोन बहन्ना बनौताह? 
           सोचलनि। बहन्ना किएक बनौताह। सोझे कहताह जे मंदिरक मूर्ति सभक प्राण-प्रतिष्ठामे ओ कोनो सहयोग नहि करताह। मिथि मोन पड़लनि। मिथि अपन मायकें कहने रहय जे ओ मामाक बियाहमे नहि नाचति। 
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मातबर कथाकार अशोक

आलेख

मातबर कथाकार अशोक

प्रदीप बिहारी


.                 (कथाकार अशोक)

अशोक माने फेसबुकक कथाकार अशोक माने मैथिलीक कवि, कथाकार आ आलोचक, जिनक अद्यावधिक रचना कर्ममे मिथिलाक लोक आ सम्पूर्ण मिथिला जगजियार होइत देखाइत अछि। ई अपन मैथिल आंखिसं विश्व आ वैश्विक परिदृश्य कें देखैत छथि, गुनैत छथि आ तकरो अपन रचनाक विषय बनबैत छथि। आ से एहि तरहें बनबैत छथि से सोझे-सपाटे जं पढ़ि क' ससरि गेलहुं, तं बुझयबे ने करत। माने ई हिनक शिल्पक कलाकारी छनि जे अहांकें लागत जे बड़ सहज बात कहैत छथि, मुदा कहैत रहैत छथि ओतबे गंभीर गप।
         बहुविधावादी छथि अशोक जी। आरंभमे कविता लिखलनि...लिखैत रहलाह...आ तकर बाद कथा दिस मुड़लाह। हमर कहबाक तात्पर्य ई नहि जे पहिने कथा नहि लिखथि, मुदा कविता प्राय: छोड़लनि आ कथा पर केन्द्रित भेलाह। संगे संग अन्य विधा सेहो चलैत रहलनि।  हम एत' कथाकार अशोक आ अशोकक कथा पर गप कर' चाहैत छी।
         अशोकक लेखन आठम दशकसं आरंभ भेलनि अछि। आठम दशक कहबाक माने जे एहि समयसं पाठककें हिनक प्रकाशित रचना सभ पढ़बा लेल उपलब्ध होम' लगलनि। ई जहिया लेखन शुरू कयलनि ताहिसं पहिलुक दशक, माने सातम दशकमे मैथिली कथामे छठम दशकक कथाक विषय, स्वरूप आ भाव-भूमि सं आगांक बात नहि देखना जाइत अछि। सामाजिक चेतना आ प्रतिरोधक जे भुम्हुर छठम दशकमे पजरलैक, से सातम दशकमे पझयलैक नहि, मुदा धधरो नहि बनि पौलैक। तकर एकटा कारण हमरा इहो बुझाइत अछि जे एहि (सातम) दशकमे मैथिली कथामे नव कथाकारक आगमन आंगुरे पर गन' योग्य भेल। एकटा बैच चललै, मुदा नियमित कमे कथाकार रहलाह।
        अशोक जी सातम दशकक धोन्हिकें फाड़ैत अपन कथा सभक संग अबैत छथि। व्यक्ति, समाज, संवेदना, सौमनस्यता, चेतना आ प्रतिरोधक सोझ-सोझ बाट बनबैत छथि। ई अपन बात सोझ-सोझ पाठककें कहैत छथि, जाहिमे हिनक भाषाक जादूगरी देखबा योग्य रहैत अछि। अपने लाथे पूरा समाजकें युग-सत्य देखबैत छथि। ई बात हिनका मैथिली कथामे एकटा फराक पहिचान आ स्थान दैत छनि।
         लेखक समयक संग बदलैत व्यक्ति, समाज आ देशक भाव-स्वभावक संग चलैत अछि आ ओकरा अपना रचनाक विषय बनबैत अछि। जे समयक संग होइत परिवर्तन कें नहि देखैत अछि, ओ खाधि खुनि क' स्वयंकें गाड़ि दैत अछि। कथाकार अशोक एहि मामिलामे हरेक समयक संग चलैत देखाइत छथि। एकर बानगी हिनक 1986 ई मे छपल कथा "मिर्जा साहेब" (ओहि रातिक भोर) आ "छल" (डैडीगाम- 2017) मे देखल जा सकैत अछि। "मिर्जा साहेब"क मिर्जा मुजफ्फर आलम जे भारत-पाकिस्तानक संबन्ध खराप भेला पर भारतमे रहैत छथि। एकटा बियाहमे भाग लेबा लेल पत्नी आ बेटा पाकिस्तानेमे घेरा जाइत छथि। बहुत प्रयासक बाद जखन ओ दुनू घुरैत छनि आ अपने पत्नी आ बेटाकें लेब' बम्बई जाइत छथि आ ओत्तहि तत्काल भेल दंगामे मारल जाइत छथि। मुखिया जीक संग पत्नी आ बेटा अबैत छनि, जिनक अयबाक तैयारीमे गाम प्रफुल्लित छल, भव्य आयोजनक व्यवस्था कयने छल, ताहि पर पानि पड़ि जाइत छैक। ओत्तहि कथा 'छल'मे भोली झा कोआपरेटिवक आम सभामे ब्रीफकेसक लोभें मुहम्मद असलम बनैत छथि। कोआपरेटिवक मीटिंग मे जाइत छथि। आ अंतमे एकटा बात लेल तामसे माहुर भ' जाइत छथि आ बाज' लगैत छथि- 'अरे, ई हाकिम तखनी सं हम्मर मजहब के की-कहां कहि रहल छथ। कहै  छथ जे इसलाम बहुत कट्टर मजहब हय। तलबार के जोर पर चलै हय। मुसलमान सब गाय के मांस खाइ हय। हिंदु के काफिर कहै हय। हम तब्बे से हिनका समझा रहल छली। अरे भाइ, अइ मे हम्मर की कसूर हय। एतना दिन सं हम सब एक-दोसरा के संग रहल छी। तब्बो एक-दोसरा के नहि समझली? कौआ के पाछू दौड़ल जाइ छी। पर ई मानिते नहि छथ। की-कहां बकने जाइ छथ।'
       साम्प्रदायिकताक दू टा स्थिति दुनू कथामे राखलनि अछि कथाकार। 1986 सं 2017 धरि अबैत-अबैत साम्प्रदायिक सद्भाव कतेक विकृत भ' गेल अछि, तकर बानगी। मिर्जा साहेबक पत्नी आ बच्चा पकिस्तान सं औथिन, तें गामक लोक स्वागतक भव्य ओरिआओन कयने रहैछ। ई प्रायः एहि दुआरें जे मिर्जा साहेबक मोजर हुनक समाजमे धर्मक कारणें नहि, मनुक्खक कारणे छलनि। मुदा, सामाजिक स्तर पर धार्मिक वैमनस्य एत' धरि पहुंचि गेल अछि जे मुहमद असलम के ठाह-पठाहिं ओकरा धर्मक खिधांस क' दैत अछि लोक। बहुतो असलम अपन समाजमे छथि जे कहैत रहैत अछि जे कौआक पाछू नहि दौड़ू। मुदा...। कथाकार दुनू समयक चित्रण करैत वाजिब चिन्ता रखैत छथि। दोसर, एकटा आर बात! मिर्जा साहेबक संग मुखिया जी बम्मई‌ (आजुक मुम्बई) जाइत छथिन। मुदा, आजुक‌ स्थिति ई बनि गेल अछि जे कोनो मिर्जा साहेबक संग कोनो मुखियाजी कतहु जयबा लेल तैयार नहि भ' सकैत छथि। दुनूक बीच अविश्वसनीयताक खाधि एतेक गहींर क' देल गेल छैक जे रमजान आ रामनवमी मे एक-दोसराक भेंट-घांट सेहो बनौआ लगैत छैक। आजुक समयक ई सभसं पैघ त्रासदी भ' गेलैए जे एहि देशक मुसलमानकें कह' पड़ैत छैक जे हमर देश भारत अछि। आ एकरा लेल दुनू धर्मक लोक जिम्मेदार छथि जे तेसर, मदारीक होहकारा पर नाचि रहल छथि। 
       सद्भावक एहने एकटा कथा डैडीगाम संग्रहमे अछि- 'ओ दुनू साइकिल सिखैत अछि'। सुधीर आ रमेशक साइकिल सिखबाक बहन्ने कथाकार बड़ीटा बात करैत छथि। एहि कथाक अलाउद्दीन आ कैंची मिस्त्रीक चरित्र समाज लेल एकटा आदर्श स्थापित करैत अछि।
        कथाकार अशोकक कथा रूपी तरकसमे रंग-विरंगक वाण छनि। हिनक एकटा कथा मोन पड़ैत अछि- भोज। एहि कथामे लगैत छैक जे कथाकार एकटा नेनाकें भोजक प्रति आकर्षणक वर्णन क' रहल छथि। भोजक खाद्य-पदार्थक अद्भुत वर्णन अछि। तकर कारण ई जे कथाकार स्वयं सेहो भोजन संदर्भमे विन्यासी छथि। भोजे नहि, आन-आन कथा सभमे सेहो भोजनक वर्णन मनोयोगपूर्वक करैत छथि। 'भोज' कथामे नेनाक मनोविज्ञानक चित्रन अद्भुत अछि। मुदा, पैघ बात ई जे एहि कथाक बहन्ने गामक आपसी सद्भावक गप कहि जाइत छथि कथाकार। भोज गामक लोककें एकठाम बान्हि क' रखबा लेल जरूरी छैक।
        हिनक बहुत रास कथा अछि जे मानवीय संवेदनाक विभिन्‍न आयामकें सफलतापूर्वक छुबैत अछि। हिनक कथा-संसारके अवगाहन कयने पाठककें बुझबामे औतनि जे ई कथाकार ओहू सभ विषयकें अपन कथामे आनलनि अछि जे मनुक्ख आ समाजक समृद्धिक कारक भ' सकैत अछि। 
       हिनक संग्रह 'डैडीगाम'क कथा सभमे एकटा केन्द्रिय बात ई देखबामे अबैत अछि जे फोरलेन/सिक्सलेनक बढ़ैत जालक अछैत गामकें कोना बचाओल जाय? मनुक्खकें बचबा लेल गामक बांचब जरूरी छैक।
       मल्टीनेशनल कम्पनी सभक अधिकारी आ कर्मचारी सभ प्रोमोशन आ पदक जाहि वृत्तमे घूमि रहल अछि, जे ओकर व्यक्तिगत आ सामाजिक जीवन धूमिल भेल जाइत छैक। ओकरा पाइ आ पद चाही। एहि विषय पर मैथिलीमे किछु नव-पुरान कथाकारक कथा अयलनि अछि, जाहिमे विभिन्न प्रकारक चिन्ता आ चिन्तन प्रस्तुत कयल गेल अछि। एहने घुरमुरिया दैत लोक सभक लेल हालहिमे अशोक जीक एकटा दोसरे रंगक कथा अयलनि अछि- 'जिम्मेदारी'। एहिमे ओ 'वर्क लाइफ बैलेंस'क नीक उदाहरण प्रस्तुत कयलनि अछि। परिस्थिति तं यैह छैक आ एहिना कि एहूसं बेसी व्यस्ततम भ' सकैत छैक। मुदा, एहन परिस्थितिमे जीवनक राग-अनुराग कोना बचा क' राखल जा सकैछ, से बात कथाकार अशोक अपन एहि कथामे कहैत छथि। 
         अशोक भाइसं मासमे एकदिन अबस्से भेंट होइत अछि। ओ दिन होइछ 'उपमान'क मासिक गोष्ठीक। ओ मैथिलक प्राय: सभ महत्वपूर्ण विधामे लिखलनि अछि। एकटा विधा छुटल छनि। एकबेरक गोष्ठीक समापनक बाद वियोगी (तारानन्द वियोगी) आ हम कहलियनि जे भाइ, उपन्यास छुटल अछि। लिखियौ ने। ओ साफे नकारि गेलाह। नहि, उपन्यास नहि लिखायत। एकबेर सोचने रही, मुदा नहि । एहि लेल कहियो मूडे ने बनल। जे, से। ई गप हमरा दुनूक मुंहसं प्राय: एहू दुआरें बहरायल जे ओहि गोष्ठीमे वियोगी अपन उपन्यास अंश पढ़ने रहथि। एहि गपक बाद हम दुनू गोटे हुनका संग कौफी पीब' पटना गांधी मैदानक मैकडोनाल्ड मे गेलहुं। कौफीक संग गपसपक बला फोटो हम फेसबुक पर तखनहि द' देलियैक। उनतीस मई 2022क गप थिक।  फेसबुकक टाइटिल देने रहियै - कौफीक संग कथा-वार्ता करैत मैथिलीक तीन टा कथाकार। एहि पोस्टक बहुत रास प्रतिक्रिया आयल। मुदा मुख्य प्रतिक्रिया आदरणीया उषाकिरण खानक आयल छल। ओ लिखने छलीह -'तीनू मिलि क' एक टा दीर्घ कथाक सूत्रपात तने करता? बड़ नीक प्रयोग हेतनि- मधुबनी, सहरसा आ बेगूसरायक परिवेश मे। बगअप भाइ लोकनि।
        एकर प्रतिक्रिया पर आदरणीय भीमनाथ झा तीनू गोटेकें उपन्यास लिखबा लेल आग्रह कयलनि। हमरा मादे कहलनि जे हाथ झारल छनि। लिखिए देताह। वियोगी जी आ अशोक जी गछथु। एहि पोस्ट पर बहुत संवाद भेल। वियोगी गछलनि। भीम भाइ अंतत: अशोक जी सं सेहो गछबाइए लेलनि। कथाकार अशोक अपन पोस्ट उषाकिरण खानक उतारामे लिखलनि- "प्रणाम। अहांक आदेश त' पहिनहि सं अछि। भीम भाइ सेहो कहि देलनि। वियोगी बहुतो दिन सं पाछू पड़ल छथि। लगैए आब एकटा उपन्यास लिखैए पड़त।"
        हम सभ अशोक भाइक एहि घोषणाक स्वागत कयने रही। आ, आब हुनक उपन्यासक प्रतीक्षा क' रहल छी।
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