Tuesday, August 22, 2023

रखबार (मैथिली कथा) : प्रदीप बिहारी

कथा

रखबार
प्रदीप बिहारी

दुनू भाय-बहिन घरमे एकटा महिलाकें पैसैत देखि हतप्रभ भ' गेल। एक-दोसराकें प्रश्न-दृष्टिएं ताक' लागल। दुनूक माय ओहि महिलासं गप कर' लागलि आ ओही क्रममे दुनू भाय-बहिनक परिचय करौलकि- "यैह दुनू छै। जेठकी- स्वीटी आ छोटका- प्रफुल्ल। काज तं बुझले छह। ध्यान देबाक छै जे बच्चा सभ के कोनो कष्ट नहि होइक। दुनू स्कूल तं संगहि जाइए, मुदा स्कूल सं अयबाक समय अलग-अलग छै। स्कूलक वैन अपार्टमेंटक गेट धरि पहुंचा दै छै। ओत' सं आन' पड़तह। तें समय सं पाच मिनट पहिने गेट पर तैनात रहब जरूरी । तोहर नाम की छह?"
          "सुलेखा।" आगन्तुक महिला उतारा देलकि। उताराक बाद दुनू नेना दिस ताकलकि। अखियासलकि- जेठकी माने स्वीटी सात बरखक हेतै आ छोटका माने प्रफुल्ल चारि बरखक। ओ दुनू बच्चाकें 'गुड मॉर्निंग' कहलकि, मुदा दुनू उतारा नहि देलक। मायकें कोनादन लगलैक। एना तं कहियो ने करै छल दुनू। माय अपन दुनू संतानकें कहलकि, "आइ सं यैह आन्टी तोरा दुनूक संग दिन भरि रहथुन।"
          स्वीटीकें कोनादन लगलैक। मायसं पुछलकि, "आन्टी?"
         माय किछु बजितय, ताहिसं पहिने प्रफुल्ल बाजि उठल, "आन्टी जैसी तो नहीं लगती है। दादी लगती है। पर...।"
         माय, बेटा दिस तकलकि। 
         प्रफुल्ल बाजल, "पहली आन्टी की तरह स्मार्ट नहीं हैं।"
         मायकें हंसी लागि गेलै। सोचलकि- छौंड़ा बाज'मे पकठोस छै। एखनेसं वयस्क सन गप करैत रहै छै। मुंहें पर कहि दैत छै सभ कथू। ड'ए-भ'र नहि छै। हरिबोलबा छै छौंड़ा। बजन्ता सेहो। दुनू प्राणी सांझखन आफिससं झूर-झमान भेल अबैत अछि तं छौंड़ा दिन भरिक खिस्सा कहैत छैक। से, एहि तरहें कहैत छै जे दुनू प्राणीकें हंसी लाग' लगैत छै। आफिसक तनाओ कने कम भ' जाइत छै।
          मायकें ई बात नीक लगैत छैक। ओ एहि बातसं प्रसन्न होइत रहैत अछि। तखनहुं भेल छलि। ओ सुलेखाकें कहलकि, "कने बेसी बजै छै ई। तें एकर बात के बेजाय नहि मानह।"
         "नहि, नहि। धियापुता त' चंचल होइते छै। चंचल होमको चाही।" सुलेखा बाजलि, "स्वीटी दैया जानू कम बजै छिकथिन।"
          स्वीटीकें चुप देखि बाजल छलि सुलेखा।
          "हं, ई कने स्थिर छै। शान्त स्वभावक।‌ बजितो छै स्थिरे सं। मुदा, एकर डिमांड जं पूरा नहि होइत छै, तं घरे माथ पर उठा लैत छै। तामस नाके पर रहै छै एकरा।"
          "बेस, हमे सब सम्हारि लेबै।" सुलेखा बाजलि। सुलेखाक मोनमे उचरलैक जे कलियुगहा बच्चा छै, जेहन ओ देखलकि अछि, तेहने हेतै ने। एहिसं बेसियो भ' सकै छै। मुदा, ओ नहि बाजलि। कोना बजितय? ओहि घरमे नौरी बनि क' आयल छलि। बयस भने जे होउक, ओहदाक अनुसारे ने रह' पड़तै।
           गृहस्वामिनी माने डौली सुलेखाकें काज बुझाब' लागलि। पहिने भानसघरक सर-समान। तखन स्वीटीक कोठरी। ओकर वार्ड्रोव। स्कूलक ड्रेस। घरक कपड़ा। प्रफुल्लक कपड़ा सभ। 
           स्वीटी सोचि रहल छलि। चारि मासमे ई तेसर छै। पहिल तं पनरहियो ने रहलै। छोड़ि देलकै। जानि नहि की भेलै? मम्मी आ पापा तं किछु ने कहलखिन। जं कहनहुं हेथिन तं, ओकरा नहि बुझल छै।
           दोसर किछु दिन टिकलै। आरती आन्टी रहै ओ।  दुनू भाइ-बहिनकें बड़ मानै। स्कूलसं अबितहिं प्रफुल्लक ड्रेस बदलि दैक। स्वीटी अपन ड्रेस अपनहि बदलि लैत अछि। अपन काज अपने क' लैत अछि। आरती आन्टी खेनाइ ल' क' हाजिर। प्रफुल्लकें खेला-खेला क' खुआबै। मोबाइल द' दै। ओ देखय आ आरती आन्टीक हाथसं खाय। जेना अपन दादी खुआबै छथिन, तहिना खुआबै। एकहक क'र द' कहै- ई सुग्गा, ई मेना, ई परबा...। कखनो क' ओ डांटबो करै। हं, आरती आन्टी जखन प्रफुल्लकें मोबाइल द' क' खुआबै, तं हमरा टी वी पर रील आ आन मनपसन्द चीज देख' के सुविधा भेटि जाय। मुदा, ओहो चलि गेलै। आब ई तेसर...।
          दादीक स्मरण होइतहिं ओ मायसं पुछलकि, "मम्मी। आज दादी और दादू भी आ रहे है? कबतक आएंगे?"
          डौली ओकर जिज्ञासा शान्त कयलकि, "दो बजे तक।" आ तखनहि किछु मोन पड़लै।
          स्वीटीक मुंहसं बाबी आ बाबाक अयबाक गप सुनि सुलेखा डौलीसं पुछलकि, "मैडम! अपने के सासु-ससुर आबि रहलखिन हन। हिएं रहै छिकथिन?"
          "आबि रहल छथिन। आरती के हटला के बाद हमरा एकदिन छुट्टी मे रह' पड़ल। मम्मी जी के काल्हि खबरि केलियनि, तं कहलखिन जे आबि रहल छी।‌ एहि बीच काल्हि तोरा सं गप फाइनल भ' गेलै। हं, आइ दू बजे धरि आबि जेथिन। ड्राइवर स्टेशन सं ल' अनतनि। दिन के खेनाइ हुनको सभ लेल बनतै।"
          वैभव कोठरीसं बहरायल आ स्वीटीकें कहलक, "बेटी, तैयार नहीं हुई? स्कूल का टाइम हो रहा है। जल्दी करो।" ओ प्रफुल्लकें तैयार कर'मे लागि गेल। स्वीटी सेहो तैयार होमय लागलि।
          सुलेखाक पहिल दिन छलैक, तें डौली सेहो भानसघरमे छलि। बच्चा सभक टिफिन तैयार भ' रहल छलैक। सुलेखा पुछलकि, "आरती किए छोड़लकै काज?"
          "अरे, छोड़लकै कहां, हम सभ हटा देलियै।"
          "बोलब करै छै जे छोड़ि देलियै हन।"
          "झूठे । काज तं बढ़िया करै। घरो-दुआर नीक जकां राखै। मुदा, बजै बड़। हम सभ अपन घरोक कोनो गप करियै कि बीचमे टोकि दै। दोसर ई जे परसू प्रफुल्लकें स्कूलसं आब' काल ओ अपार्टमेन्ट के गेट पर नहि रहै। गार्ड ओकरा रखने रहलै। ओकर पापा के फोन केलकै। हम दुनू गोटे अयलियै, तं ओकरा घर अनलियै। ओ पैंतालिस मिनट लेट अयलैक।‌ पुछलियै तं बात बनाब' लागल। कहांदन निन्न नहि टुटलै। बुझहक, बारह बजे दिनमे कतौ लोक सुतै छै। मना क' देलियै। काल्हि सं नहि आ।"
         सुलेखा चुपचाप काज करैत छलि। डौली फेर बाजलि, "तोरो कहै छियह। ठीक बारह बीसमे स्कूलक वैन प्रफुल्लकें ल' क' अपार्टमेन्टक गेट पर आबि जाइ छै। तें ठीक सवा बारह बजे गेट पर उपस्थित रह' पड़तह। एहिमे कोनो आलस नहि। इफ-बट नहि। तेसर एकटा आर कारण रहै जे हटेलियै। घरक कैमरा सभ बरोबरि बन्द क' दैक। हम सभ मोबाइल पर देखियै, तं कैमरा औफ। ओना हमरा सभ के समये ने रहैए मुदा मम्मी जी बरोबरि देखैत रहै छथिन। हुनका जहां कैमरा औफ देखाइ छनि, कि हमरा दुनू के फोनियाब' लगै छथिन।"
           लगैक जे डौली ऑफिस मे अपन अधीनस्थ कर्मचारीकें काज बुझाइयो रहल अछि आ डांटियो रहल अछि।
          सुलेखा चुपचाप सुनि रहल छलि।
          संक्षेपमे दिन भरिक चर्या सुलेखाकें बुझा क' डौली अपन कोठरीमे चलि गेलि आ लैपटॉप खोलि लेलकि। 
          सुलेखा कोल्हुमे बह' लागलि।
          
बाबी-बाबाकें देखितहिं दुनू बच्चाकें बुझाइक जेना सगर जहान भेटि गेल होइक। जेना मेलामे हेरायल संगीकें एक-दोसरासं भेंट होइत छै, तहिना प्रफुल्ल बाबीक करेजसं सटल। 
           बाबीक मुंहसं बहरयलनि, "कोना छह बाबू?"
           नीक वा बेजाय तं नहि बाजल मुदा बाजल, "दादी, तुम आ गई। अब मजा आ जाएगा।"
           प्रफुल्ल बाबीक आलिंगनसं फराक होइत बाबा दिस लपकल, "हाइ फ्रेंड! हाउ आर यू?"
           बाबा ओकरा करेजमे साटलनि। बजलाह, "फाइन।"
           बाबा-पोतामे दोस्ती छैक। एक-दोसराक सम्बोधन 'फ्रेंड' छैक। पोताकें जखने केओ पुछैत छलैक जे  दादाक फ्रेंड के? तं ओ झटसं उतारा दैत छल- पोता। आब जे केओ ई प्रश्न पुछैत छैक, तं कहैए- प्रफुल्ल। एकदिन बाबी पुछलखिन जे आब नाम किएक कहै छी? भने पोता कहैत रही। ताहि पर बाजल - 'पोता तो अकेले हैं न। इसीलिए नाम कहते हैं।'
           से ठीके। बूढ़ाकें दू टा बेटा, तीनटा पोती आ एकटा पोता छनि। दुनूकें दू-दू टा संतान। इहो पोता जे भेलनि तकर खिस्सा छैक। बूढ़ी बरोबरि डौलीकें कहथिन, "स्वीटी कें एकटा आर भाय वा बहिन होमक चाही। एसगर..."
           कि बिच्चहिंमे पुतौहु गपकें लोकि लेलकनि, "हमरा दुनूक व्यस्तता देखिते छी। दू-दू साल पर बदली। कोना निमेरा हेतै? तें दोसरक प्लान नहि करै छी। एकटा छै, वैह बहुत भेलै। ओ तं हमर विभागक सुविधे एहन छैक जे दुनू प्राणीक बदली एक शहरमे भ' जाइ छै। नहि तं, इहो एकटा..."
           बूढ़ीकें मोन पड़लनि। पछिला बरख डौली अपन प्रोमोसन नहि लेलनि। दुनू चीफ मैनेजर भ' जइतय तं ई सुविधा नहि भेटितैक। तथापि ओ बजलीह, "से तं ठीक। तैयो, हम कहलहुं। अहां सभ सोचब।"
   ‌‌        से ओ दुनू दोसर बच्चाक 'प्लान' तखन बनौलक, जखन डौलीक नैहरक शहरमे दुनूक बदली भेलैक। आ जन्म भेलैक प्रफुल्लक।

बाबाक नजरि घड़ी पर गेलनि। बीस मिनटक बाद स्वीटीक स्कूल वैन औतैक। पोताकें कहलनि, "खाना खा लिए।"
             पोतासं पहिने सुलेखा बाजलि, "स्कूल स' अएला के बाद दूध पिलखिन हन। बोललखिन जे खेनाइ दादी के हाथे खेबै।"
            बूढ़ी बजलीह, "परसि दहक।"
            बूढ़ा दिस तकैत सुलेखा बाजलि, "हिनको खाना परसि देबनि?"
            "एखनि नहि। स्वीटी आबि जायत तखन..."
            सुलेखा प्रफुल्लक भोजन आनि क' देलकि। बाबी पोताकें खुआब' लागलि। मुदा, पोता छिड़िया लागल। एखनि नहि खायत। टी वी चलैत रहैक। ओ 'स्पाइडर मैन'क करतूत सभ देखि रहल छल से समाप्त नहि भेल छलैक। समाप्त भेलाक बाद खायत। बाबी परबोधैत छलीह। बाबा-बाबीकें बुझल छनि जे टी वी बन्न करताह तं आर छिड़िया जायत। चिचिअएबो करत- टी वी खोलो।
             सुलेखा बाजलि, "बाबू! टी वी बन्द कर दें। खाकर देखिएगा। तब तक मोबाइल देखकर खा लिजिए।"
             प्रफुल्ल शान्त भेल। सुलेखा टी वी बन्न क' देलकि आ मोबाइल प्रफुल्लक हाथमे थम्हा देलकि। मोबाइल देखितहिं बच्चा खाय लागल। बाबी खुआब' लगलखिन। हुनका किछु बजबाक अवसर नहि देलकनि पोता। 
            बाबा सुलेखाकें कहलनि, "ई कोन बानि छै? एकरे कहै छै तार पर सं खसि क' खजूर पर आयब।"
            बाबीकें रहल नहि गेलनि। पतिक गप काटलनि, "तार पर सं खसब नहि भेलै ई। खजूर बाटे तार पर चढ़ब भेलै।"
            सुलेखा माथ निचां कयने बाजलि, "ई आदति त' पहिले स' होतनि ने।"


संध्याकाल करीब साढ़े सात बजे सुलेखा बूढ़ीकें कहलकि, "अपने आर छेबे करथिन, त' हमे घ'र जइयै? राति के खाना बना देलियनि हन।"
            "गप की भेलह-ए?"
            "गप होलै हन जे जा तक साहेब या मैडम नहि आइ जैथिन, ता तक हमरा रहय के छिकै। आइ अपने आर छिकियै, तें सोचलियै जे...। काल्हि भोरे साढ़े छौ बजे आइ जेबै।"
            "बेस जाह।"

रातिक आठ बजे वैभव आयल। अबितहिं माय-बाबूकें गोड़ लागि बेटाकें कोरामे ल' दुलार कयलक। तकर कनिए काल बाद डौली आयलि। घर भरल-भरल सन लगलैक।
           फ्रेश भेलाक बाद सभ गोटें बैसल। प्रफुल्लक चंचलतासं आनन्दित होइत गेल। ट्यूशन आ स्कूलक होमवर्कक चर्च भेलैक। स्वीटी अपन होमवर्क आ डायरी पापाकें देखौलकि। प्रफुल्ल अपन मम्मीक कोरमे उछल-कूदमे लागल छल। बाजल- 'हमको मैम कोई होमवर्क नहीं दी है।"
          "हमको नहीं, मुझे।" वैभव टोकलकै, तं प्रफुल्ल बाजल, "मिन्स मुझे। क्लास मे जो पूछती है, सुना देता हूँ। ट्यूशन वाली मिस याद करा देती है।" ओ स्वीटी दिस तकैत अपन दुनू हाथक औंठा आ कान्ह हिलाब' लागल। शान्त स्वीटी बाजलि, "अभी नर्सरी में हो न, बड़े क्लास मे जाओगे तब समझना।"
           "ओ के। जब जाएंगे, तब समझेंगे।" प्रफुल्ल अपन स्वाभाविक रूपमे आबि गेल।
            वैभव गपकें बदललक, "एत' अएने एकरा दुनूक भाषा गड़बड़ा गेलैए। बिहारी हिंदी बाज' लगलैए।"
            डौली बाजलि, "की करबै? जेहन देश, तेहन भेष।"
            माय वैभवकें कहलनि, "मुदा, अपनो भाषा अएबाक चाही।"
            "से तं तोहीं सभ सिखेबही। आ तों सभ एत' पाहुन जकां अबै छें। कोना सिखतै?" बेटा मायक गपक उतारा दैत छल, "ओना मैथिली बूझि लै छै, मुदा रिटर्न‌ नहि क' पबै छै।"
            "हमहूं सभ परमानेंट नहि ने रहि सकै छियौ। घरो पर तं बहुत काज छै। कोनो किरायादारो नहि छै, जे घरक कने ओगरबाही हेतै। तखन, जखन-जखन जरूरी होइ छौ, आबिए जाइ छियौ।" माय बजलीह।
            पिता देखलनि जे बेटाक मोबाइल पर ताबड़तोड़ मैसेज आबि रहल‌ छलैक। पुतौहुक मोबाइल पर सेहो। दुनू मैसेज देखय। कतहु फोरवार्ड करय आ गपो करय। एक-दू बेर कौल सेहो अएलैक, मुदा ओ दुनू कौलकें साइलेंट क' दिअय। पिताकें रहल नहि गेलनि। बेटाकें कहलनि, "जरूरी फोन छह तं गप क' लैह। मैसेजो बहुत आबि रहल छह।" पुतौहु दिस तकैत बजलाह, "कनियां, अहूंक फोनक यैह हाल अछि। काज बढ़ि गेल अछि?"
           वैभव उठि क' गप कर' गेल आ डौली ससुरक प्रश्नक उतारा देलकि, "काज कमे कहिया रहै छै? एक-ने-एक जरूरी रहिते छै। आब प्राइवेटे की, सरकारियो बेसी आदेश मैसेजे सं अबै छै आ अनुपालनो होइ छै। कार्यालयी विस्तृत डेटा सभ मेल पर अबैत-रहैत छै। समय कहां छै? सभ के तुरन्ते उतारा चाही।"
            "मुदा, घर-परिवारक देखभाल, बाल-बच्चाक सही निमेरा आ दाम्पत्यक संतुलन सेहो जरूरी छै ने।" सासु पुतौहुकें कहलनि।
            वैभव कोठरीसं बहरायल। बाजल, "आब भोजन-भात होइ। भोजनक बाद कनेकाल एकरा दुनूकें पढ़यबाको छै।"
            सासु आ पुतौहु एक्के बेर भानस घरमे पैसलीह।

पत्नी पति लग अपन चिन्ता उझीलि रहल छलीह। बच्चा सभक नीक जकां निमेरा नहि भ' रहल छै। एकरे सभक बारे मे सोचि माथ टनकैत रहैए। आखिर संतति तं अपने सभक खराप भ' रहल अछि। एहि तरहें काज कोना चलतै? दुनूकें टी वी आ मोबाइलक एहन हिस्सक छै, से जानि नहि...अपनो दुनू अबैए तं मोबाइले मे ओझराएल रहैए। एकटा मोबाइल घरमे राखि देने छै। कहलियै जे किएक? तं कहलक जे दिनमे जेना-जेना समय भेटैए, तं वीडियो कौल क' लैत छियै। हाल तं यैह छै। अपनो सभ सभदिन नहि रहि सकै छी। हम तं डौलीकें कहलियनि जे पापा रिटायर भ' गेलाह। एकहक मासक पारी लगाउ। एक मास हम दुनू गोटें रहब, एक मास ओ दुनू गोटें रहथि। मुदा, से समधि-समधिनकें मंजूर नहि छनि। कहै छथिन जे एहिठाम बदली करा ले। धियापुताकें पोसि देबौ। नहि तं नोकरी छोड़ि दे।
            पति बजलाह, "ई बात बियाहक समय डौलीकें हम कहने रहियै, तं बाजल छलीह जे बेसी दिक्कति होयत तं नोकरी छोड़ि देब। मुदा, जत्तेक नोकरी होयब मोश्किल छै, ताहिसं बेसी छोड़ब होइ छै।"
             पत्नी बजलीह, "से तं डौली सेहो कहै छथि जे मम्मी जी नोकरी छोड़ल नहि होयत हमरा बुतें। एकाध बेर सोचबो कहलौं, तं लागल जे घरमे बिनु काजक कोना रहि पायब?"
            "बच्चो सभकें कोनो तेहन संगी नहि छैक। महानगर सनक अपार्टमेन्ट जिला आ कमीश्नरी बला शहरमे नहि छैक। एत' तं बुझू जे खुट्टा पर तहखाना बना देने छै। कत' बुलत बच्चा सभ? कत' खेलत? तें देखै नहि छियै। दोसर तल्ला बला ओ बच्चा बरोबरि अपना ओहिठाम अबैए आ प्रफुल्लक संग रड़धुम्मस मचौने रहैए।"
             दोसर दिन ससुर पुतौहुकें फोन क' पुछलनि जे ओ एक घंटाक लेल दुनू प्राणी आबि सकैत छथि। डौली मैनेज कयलकि। ससुरक कथनानुसार‌ चारि बजे दुनू प्राणी डेरा पहुंचल। ससुर डौलीकें कहलनि, "हम नेट पर चेक कयलहुंए जे एत' कला केन्द्रमे भरतनाट्यमक क्लास होइत छै। स्वीटी अहमदाबादमे सिखैत छलि। हम कलाकेन्द्रक हेडसं गप कयलहुं अछि। चलू, स्वीटीक नामांकन कराओल जाय।"
            बेटा-पुतौहु आ पोता-पोतीक संग बाबा कलाकेन्द्र गेलाह आ स्वीटीक नामांकन भेल। ओकरा पेंटिंगमे सेहो रुचि छलैक। ओहूमे नामांकन भेलैक। दू दिन माने शनि-रवि क' नृत्य आ शेष चारि दिन पेंटिंग। तय भेलै जे एक गोटें ओकरा कलाकेन्द्र पहुंचाओत आ दोसर आनत। वैभव बाजल, "आब इंगेज रहत स्वीटी।" 
            ओत' प्रफुल्ल सेहो हल्ला कर' लागल जे ओहो सीखत। मुदा ओकर माता-पिता तय कयलक जे एकरा लेल कोनो म्यूजिकल इन्स्ट्रूमेंट घरमे राखि देल जाय, जाहि पर अभ्यास करत। तकर बाद जेहन रूचि हेतै, करत। स्कूल-ट्यूशनक बाद पहिने एतेक इंगेज तं रहय।"

मुदा बाबीकें पोताक चिन्ता सालैत रहलनि। पोतीक सेहो। पतिकें कहलनि, "अहांकें नहि लगैए जे दुनू बच्चा पर बोझ बेसी भ' जेतै?"
            "हं, बोझ कने बढ़तै, मुदा ई सभ सीखब शुरू करबाको समय तं यैह छै।"
            पत्नी बजलीह, "से जे कहियौ।"
            अधरतियामे पत्नीक निन्न टुटलनि। पतिकें उठौलनि। पतिकें लगलनि जे काल्हि भोरे घुरबाक छनि, तें निन्न उचटि गेलनिहें। पुछलनि, "की भेल?"
            "अएं यौ। ई धियापुता सभ नीक नहि बनतै तं अपना दुनूकें केओ माफ करत वा अपने दुनू गोटें स्वयंकें माफ क' सकै छी?"
  ‌‌          पति सकदम। कनेकालक बाद बजलाह, "चिन्ता नहि करू। अपना सभक समयक हिसाबसं आजुक समयकें नहि तकियौ।"
             प्रात भेने ड्राइंग रूमसं बहराइत काल सुलेखाकें कहलनि, "जाइ‌ छियह। मुदा समय-कुसमय अबैत रहबह। दुनू बच्चाके अपने पोता-पोती सन राखिहह।"
            ‌‌‌             -------

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