Saturday, September 23, 2023

जल प्रबंधनक चिन्ता आ मैथिली साहित्य




जल प्रबंधनक चिन्ता आ मैथिली साहित्य

प्रदीप बिहारी
(ई आलेख 'मैसाम' दिल्लीक वार्षिक कार्यक्रम 2018 ई मे पढ़ल गेल छल।)

एकटा अद्भुत विषय पर बाजबाक लेल ठाढ़ भेल छी। जल प्रबंधनक चिन्ता एखनि ग्लोबल विषय अछि। एकरा मैथिली साहित्यमे ताकब उत्साहबर्द्धक लगैत अछि। उत्साहबर्द्धक एहि दुआरें जे जतेक चिन्ता आ चिन्तन एहि बात लेल मैथिली साहित्यमे कएल गेल छैक आ जतेक नहि छैक, से करबाक खगता आबि गेल छैक। तें,
एखनि एहिठाम ठाढ़ छी, तँ सभसँ पहिने आदरणीय सोमदेवक ई पाँति मोन पड़ैत अछि-

पग-पग पोखरि माछ मखान
सरस बोल मुस्की मुख पान
विद्या वारिधि शान्ति प्रतीक
सरितांचल श्री मिथिला थीक

आजुक परिदृश्यमे एखनि ई सोचबा लेल वाध्य भेल छी जे की मिथिला सरितांचल रहि गेल अछि? संभवतः नहि। पोखरि सूखि रहल अछि। सूखि कऽ वासडीह बनि रहल अछि। माछ आब आंध्रप्रदेश बला भेटैत अछि। आ मखान जे किछु होइए, से खट्टी (बेपारी) लऽ जाइत अछि। मूल रूपें ई कही जे पोखरिए नहि, तँ ई सभ कतऽ?
पोखरि नहि माने, ई नहि जे पोखरि उकनि गेल मिथिलासँ। मुदा वर्तमानमे जे पोखरि बाँचल अछि, तकर संख्या गनल-गुथल अछि। तकरा नहिए सन मानल जा सकैत अछि। जे अछियो, से सुखयबा लेल वाध्य अछि। बरखा कम होइत छैक। गाछ-बिरिछक संख्या कमल जाइत छैक। पोखरि डबरा बनल जाइत अछि। आब गामघरमे घनगर बंसबिट्टी आ घनगर गाछी कम्मे रहि गेल अछि। लोक रोजगार लेल गाम छोड़ि रहल अछि। पोखरि आ इनार अनाथ भऽ गेल अछि।
मैथिली लोकगीत सभमे सुनैत रहैत छलहुँ- ‘फल्लाँ बाबा पोखरि खुनौलनि...’ से आ अभिलेखक बात भऽ गेल अछि। अपन बेटा-बेटी आ पोता-पोती सभकें खिस्सा सन सुनयबा योग्य। जँ ओ पूछि देलक जे फल्लाँ बाबा बला पोखरि कतऽ छैक, से किछु बरखक बाद किनसाइत मानचित्रो पर नहि भेटत।

इनार। पहिने गाम सभमे जलक मूल स्रोत इनार छल। जेना-जेना गामक लोक सभ सामर्थ्यवान होइत गेलाह, गाममे कऽल गराय लागल आ इनारक उपेक्षा शुरुह होमऽ लाग। नहूँ-नहूँ इनार गामक ‘डस्टबिन’ बनैत गेल आ ओकर भत्थन होइत गेलैक। गामघरमे एखनो जे इनार बाँचल अछि, से प्रायः मृतप्राय अछि। बर्खो-बर्खसँ उड़ाहल नहि गेल अछि।

विकासक संग लोक सुकमार होइत गेल अछि। पाचन तंत्र कमजोर होइत जाइत छैक। कतोक प्रकारक प्रदूषणमे जीबाक लेल वाध्य अछि। जीअब जरूरी छैक। प्राण-रक्षा जरूरी छैक। इनारसँ कऽल आ आब डिब्बा आ बन्न बोतल बला पानिक चलन गामोमे भेल जा रहल छैक। गामक लोेक लेल कऽलक पानि सेहो प्रदूषित भेल जा रहल छैक। ओना गामघरमे देखाउँसे सेहो कऽलक पानि प्रदूषित कएल जा रहल छैक। गाममे कृषिसँ आय घटलैक अछि आ नगदीक आमदनी बढ़लैक अछि। घर-घरमे टी.वी. होइत जा रहल छैक। टी.वी. परक विज्ञापन लोककें आकर्षित करैत छैक। प्रायः तें, कऽलक पानि प्रदूषित भऽ रहल छैक।

गाम प्रगति कयलक अछि। गामक स्वरूप शहरी भेल जाइत छैक। शहरक सभटा लाभ-हानिकें स्वीकारबा लेल मिथिलाक गाम मानसिक रूपें तैयार भेल जा रहल अछि।

कविवर चन्दा झाक ई पाँति हम उल्लेख करऽ चाहैत छी-
गंगा बहथि जनिक दच्छिन दिस, पूर्व कौशिकी धारा।
पश्चिम बहथि गण्डकी, उत्तर हिमावत विस्तारा।।
कमला, त्रियुगा, अमृता, धेमुरा, वागमती कृत सारा।
मध्य बहथि लक्ष्मणा, से मिथिला विद्याधारा।।

कविवर चन्दा झा एहि तरहें मिथिलाक चैहद्दी बतबैत छथि। माने मिथिला चारूदिस नदीसँ घेरायल अछि। से साँचे हमरालोकनि नदीक संस्कृतिमे जीबैत छी। आ मरितो छी। मिथिलाक नदी सभ एक-दोसरासँ जुड़ल छैक। मैथिलीक लब्धप्रतिष्ठ रचनाकार मणिपद्म एकठाम (उपन्यास ‘दुलरा दयाल’ मे) लिखने छथि जे जेना मनुक्खक देहमे नसक प्रणाली होइत छैक, तहिना कोनो देशमे नदीक। तें नदीकें निर्वाध होयब आवश्यक। हुनक उपन्यास ‘दुलरा दयाल’मे एकटा संदर्भ अछि- मानसिंह कमलाक धारकें अवरूद्ध करऽ चाहैत छल। ओ बखरीक डाइन बहुरा गोढ़िनक बेटी अमरावतीसँ बियाह कऽ बखरी पर अपन आधिपत्यक सपना देखि रहल छल। मुदा, अमरावती भरौड़ाक दुलरा दयालकें मोने मोन वरण कऽ चुकलि छलि। ओ चाहलक जे कमलाक धारकें अवरूद्ध कऽ देल जाए जाहिसँ जल-व्यापार आ अर्थ व्यवस्था प्रभावित भऽ जाइक। आ तें ओ पिच्छड़ पहलमानकें पटिऔलक। पिच्छड़ पशुवध कऽ ओकर रक्त-मासु अपन देहमे लेपि लैत छल आ हाड़कें कमलाक धारमे फेकि दैत छल। गाछ सभ उखाड़ि कऽ धारमे फेकि दैत छल। ओकरा देहक दुर्गन्धक कारणें कोनो मल्ल ओकरासँ युद्ध नहि करैत छल। जखन धार अवरूद्ध होमऽ लगलैक, तँ दुलरा दयालक मदतिसँ ओकर पित्ती पिच्छड़क वध कयलक।

कथा बहुत छैक। मुदा, उल्लेख करबाक उद्देश्य ई जे जल प्रबन्धनक चिन्ता मणिपद्मक एहि उपन्यासमे एहि तरहें आयल अछि।
हमरा जनैत उपलब्ध संसाधनक कुशलता आ प्रभावपूर्वक उपभोग कऽ कयल जाइ बला काज, जाहिसँ लक्ष्यक प्राप्ति भऽ सकय, प्रबंधन थिक। जल प्रबंधनक अभिप्राय सेहो सैह थिक। आ ई प्रबंधन जँ ठीकसँ नहि भऽ सकल, तकर कतोक दुष्परिणाम बहराइत अछि। नदीक जलक संदर्भमे एहन दुष्परिणाम मिथिला खूबे भोगलक अछि आ भोगि रहल अछि। आ एकर चिन्ता मैथिली साहित्यमे जतेक अयलैक अछि, से यथेष्ट नहि अछि।

मैथिली साहित्यमे यातना आ यंत्रणा सहैत लोक आ बान्ह पर जीवन बितबैत लोकक वेदना प्रमुखतासँ आयल अछि।

तटबन्धसँ कमलोकें बान्हल गेलनि अछि आ कोसीकें सेहो। मुदा, स्थिति ई छैक जे दुनू क्षेत्रक लोक एहिसँ सुखी नहि भऽ दुखिए छथि। बागमती-गंडक क्षेत्रमे सेहो तटबन्धसँ खतरा बढ़लैक। तकर इहो कारण जे समय-समय पर बान्हक यथोचित आ इमानदार मरम्मति नहि भऽ पौलैक। रखरखाब दरिद्राह रहलैक।

कोसी बताहि भेल साले-साल धार बदलैत छथि आ गामक गाम पोछि लैत छथि। कहल जाइत अछि जे मैथिली-हिन्दीक रचनाकार मायानन्द मिश्रक गाम ‘बनैनिया’ आब कतहु अछिए नहि। कोसीक पेटमे विलीन भऽ गेल अछि। एहन कतोक गाम ओहि क्षेत्रक अछि।

मैथिलीमे कमला, कोसी आ आन-आन नदी पर बड़ थोड़ काज भेल अछि। मैथिलीमे जतेक लिखल गेल अछि, ओतेक वा कने बेसीए हिन्दीमे लिखल गेल अछि, सेहो मिथिलेमे रहनिहार लेखक सभ द्वारा। विभूति भूषण मुखोपाध्याय बांग्लामे लिखलनि- ‘कुसी प्रांगणेर चिठी’, जकर अनुवाद मणिपद्म ‘कोसी प्रांगणक चिट्टी’क नामसँ कयने छथि। डाॅ. धीरेन्द्रक उपन्यास ‘ठुमुकि बहू कमला’ आ राजकमल चौधरी कथा ‘अपराजिता’मे एहि दर्द आ चिन्ताकें देखल जा सकैत अछि। रामकृष्ण झा ‘किसुन’क कविता ‘कोसीक बाढ़ि’, सुभाष चन्द्र यादवक कथा ‘परलय’, नारायणजीक कथा ‘कोसी’, एहि पाँतिक लेखकक कथा ‘औतीह कमला जयतीह कमला’ , साकेतानन्दक उपन्यास ‘सर्वस्वाँत’, पंकज पराशरक उपन्यास ‘जल प्रांतर’, सुरेन्द्रनाथक उपन्यास ‘उसरगल लोक’ प्रभृति रचना सभमे चिन्ता आ चिन्तनकें तकने पाठक निराश नहि होयताह। एहि विषय पर नरेन्द्र झा जीक सेहो महत्वपूर्ण काज मैथिलीमे छनि।

हिन्दीमे मायानन्द मिश्रक उपन्यास ‘माटी के लोग सोने की नैया’, कोसी क्षेत्रक मलाहक जीवन पर केन्द्रित नागार्जुनक उपन्यास ‘वरुण के बेटे’, हेमन्त-रणजीवक ‘जब नदी बंधी’, डाॅ ओम प्रकाश भारतीक ‘नदियाँ गाती हैं’, पुष्य मित्रक ‘रेडियो कोसी’, तेज नारायण खेड़वारक ‘धेमुरा दाइ को किसने मारा?’ आ ‘कौशिकी कछार पर’ आदि पोथी सभमे सेहो जल प्रबन्धक चिन्ता देखल जा सकैछ।

एकर अतिरिक्त आर छिटफुट रचना सभ भेल अछि, जे विभिन्न पत्र-पत्रिकाक माध्यमे आयल अछि। मुदा, ताहूमे रचनाक मूलमे बाढ़िक विभीषिका, बाढ़िसँ प्रभावित लोकक दुख, विपत्ति आ करुणा मुखर भेल अछि। सरकारक प्रति आक्रोश मुखर भेल अछि।

रचनाकार जखन कोनो रचना करैत छथि तँ पहिने विषय आ परिस्थिति हुनका मथैत छनि, तकर बाद ओहो ओकरा मथैत छथि। एकटा स्वाभाविक चिन्ता हुनका मोनमे उपजैत छनि। तेहन चिन्ता उपरोक्त रचना सभमे वर्णित अछि, मुदा ओ चिन्ता मूल नहि बनि सकल अछि। हँ, किछु पोथी चर्च हम करऽ चाहब। जेना, साकेतानन्दक उपन्यास ‘सर्वस्वांत’ आ पंकज पराशरक ‘जल प्रांतर’। एहि दुनू उपन्यासमे जल प्रबंधनक चिन्ताकें मुखर करबाक प्रयास कयल गेल अछि। ‘जल प्रांतर’मे पंकज पराशर ‘पढुआ कका’ नामक एकटा पात्र गढ़लनि अछि, जे एहि चिन्तासँ साकांक्ष करबा लेल लेख लिखैत छथि। देशक हिन्दी-अंग्रेजी पत्र-पत्रिकामे हुनक लेख छपैत छनि। मुदा, हुनक बात सरकार धरि जाइत छनि वा नहि से स्पष्ट रूपें उपन्यासमे वर्णित नहि अछि। मुदा, हुनका दू गोट धमकी देबऽ अबैत छनि जे ओ एहन लेख नहि लिखथि। ओहि दुनूक परिचय उपन्यासकार स्पष्ट नहि कयलनि अछि। ओ तात्कालीन सरकारक लोक सेहो भऽ सकैत अछि वा ठीकेदारक लोक सेहो भऽ सकैत अछि। अंततः ओहो ओही बेरक बाढ़िमे मरि जाइत छथि।

हँ, कवि-कथाकार रमेशक कविता संग्रह ‘कोसी घाटीक सभ्यता’ एहि दृष्टिएँ रेखांकित करबा योग्य कृति अबस्से अछि, जाहिमे जल प्रबंधनक चिन्ता मुखर भेल अछि। एहि पोथीक अपन वक्तव्यमे ओ कोसीकें दरिद्राक देवी कहैत छथि, कारण हिनका खजानामे बालुएटा छनि आ कोसी-क्षेत्रक गीतकार रवीन्द्रक एकटा गीतक पाँति उद्धरित करैत छथि- ‘हमर देसक (मिथिला-देस) छुतहरी गरीबी, तों उढ़रियो तऽ जो...’ कोसी मिथिलासँ उढ़रियो जाथि तऽ ककरो कोनो दुख नहि हेतै।
ओना ई वक्तव्य एकटा संवाद सेहो आमंत्रित करैत अछि। मुदा, कोसीक ताण्डवसँ आहत लोकक मनोदशाकें गीतकार आ कवि रमेश जे दर्द व्यक्त करैत छथि, हम ताहि दिस इंगित कयलहुँ अछि।

मैथिली नाटकोमे एहि प्रकारक चिन्ता कमे देखबामे अबैत अछि। प्रायः नहिए सन। मैथिली रंगमंच एहि मादे उदास अछि। हँ, हेबनिमे मैलोरंग द्वारा प्रदर्शित नाटक ‘जल डमरू बाजे’मे एहि चिन्ताकें देखल जा सकैत अछि।

जखन जल प्रबंधनक गप करैत छी, तँ एकर चिन्ता मात्र बाढ़िएटासँ नहि, रौदी सेहो एकटा स्थिति अछि जाहि लेल चिन्ता कयल जा सकैत अछि। मैथिली साहित्यमे रौदीक स्थिति आ ओकर दुख-दर्दकें अकानल गेल अछि।

मैथिली साहित्य गामसँ शहरमे अयलैक। नागरीय जीवन मैथिली साहित्यमे अयलैक आ आब धुरझार आबि रहल छैक। मुदा, साहित्यमे एहि नागरीय जीवनमे जल प्रबन्धनक चिन्ता कमे देखल जा रहल छैक। ग्रामीणो जीवनक चिन्तासँ कम। जखनि कि ई चिन्ता एखनहुँ गामसँ बेसी शहरक छैक।

हम नाटकक चर्च कयलहुँ अछि। संचारक एकटा महत्त्वपूर्ण माध्ययम थिक नाटक। मैथिलीमे नाटक कम लिखल जा रहल अछि। कम मंचन भऽ रहल अछि। जल प्रबंधनक चिन्ता करैत नाटकक लेखन आ मंचनक खगता छैक। लोककें ओकर दायित्व बुझाएब आवश्यक छैक। एहि माध्यमें ई बात समाज लग राखल जा सकैत अछि। एहूमे बाल नाटक आ रंगचंक खगता आर बेसी। हम सभ सचेत होइ, से आवश्यक तँ अछिए, ओहूसँ बेसी आवश्यक जे अपन अगिला पीढ़ीकें सचेत करी आ ताहि लेल नाटक आ रंगमंच एकटा महत्त्वपूर्ण विधा अछि। रचनाकारलोकनिकें, नाटकक संदर्भमे कही तँ नाटककार आ निदेशकलोकनिकें एहि मादे विचार करबाक चाहियनि।

संचार माध्यमक एकटा आर बात मोन पड़ैत अछि। आइ-काल्हि नेना सभ विडियो देखऽमे परिकल अछि। स्थिति ई छैक जे दूधमुहों नेना सभ विडियो देखैत अछि तखने खाइत अछि। संयुक्त परिवारक अवधारणा आ उपाय नहि रहने छोट-छोट नेना सभक लेल ई समस्या आबि गेल छैक। ‘न्युक्लियर फैमिली’क अवधारणा आ बदलैत समय-सालक कारणें संभव नहि भऽ पबैत छैक, जे कोनो नेनाक बाबा-बाबी ओकरा संग रहि पाबथि। एकसरि माय की करतीह? आ विडियो देखैत-देखैत खायब नेना सभक हिस्सक भऽ जाइत छैक। ई हिस्सक नेना सभकें नमहर धरि लागल रहैत छैक। कने चेष्टगर भेलाक बाद कमे नेना एहि हिस्सकसँ उबरि पबैत अछि। एहना स्थितिमे ओकरा ओही माध्यमसँ अपन मातृभाषामे ई बात सभ बुझयबाक काज होमक चाही।

एखनो ई स्थिति अछि जे नेना जँ पानि हेरा दैत अछि वा ओकरा हाथसँ लोटा वा गिलास खसि पड़ैत छैक, तँ माता-पिता एहिलेल डँटैत छथि जे हुनका फर्श पोछऽ पड़तनि। एहि लेल नहि डँटैत छथि जे पानि दूरि भऽ रहल छैक। ओ नेनाकें डाँटि कऽ वा स्नेहे ई नहि बुझबैत छथि जे पानिकें जोगयबाक चाही।

ई बात स्पष्ट जे प्रबन्धनक काज साहित्यकारक नहि होइत अछि। साहित्यकार चिन्ता कऽ सकैत छथि, चिन्तन कऽ सकैत छथि। प्रबन्धन हेतु व्यक्तिगत, सामाजिक आ सरकारी स्तर पर इमानदार प्रयासक खगता छैक। मैथिली साहित्यमे एहि मादे जतेक चिन्ता आ चिन्तन भेल अछि, से थोड़ अवश्य अछि, मुदा हतोत्साह करबा योग्य नहि अछि। लेखकक काज वीजारोपण करब छैक। ई एहिबात पर निर्भर करैत छैक जे जमीन कतेक उर्वर छैक आ गाछके जनमबा लेल...बढ़बाक लेल खाद-पानि केहन छैक।
अन्तमे, हम यैह कहऽ चाहब जे कोनो अभियानक सफलता आ असफलतामे सभ कारकक योगदान होइत छैक। तें हमरालोकनिकें अपन दायित्वकें सदिखन मोन राखक चाही। जल प्रबंधनक चिन्ता आ जलक संरक्षण आजुक ज्वलंत समस्या थिक। ई कोटि-कोटिक यज्ञ थिक, जे व्यक्तिगत रूपें सभसँ एक-एको अरघा घी माँगि रहल अछि।
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रचना : पटना / 05 सितम्बर 2019


Tuesday, September 12, 2023

नारी स्वावलम्बनक बाट बनबैत चानो दाइ : प्रदीप बिहारी


नारी स्वावलम्बनक बाट बनबैत चानो दाइ


प्रदीप बिहारी


सोमदेवक दूटा उपन्यास मैथिली साहित्यकें भेटलैक अछि। ओ थिक चानो दाइ आ होटल अनारकली। होटल अनारकली एकटा जासूसी उपन्यास अछि। प्रकाशनक बाद ई उपन्यास खूबे चर्चित भेल छल। ओहुना मैथिलीमे जासूसी उपन्यासक चलन नहि छलैक, एखनो नहिये सन छैक। होटल अनारकली ओहि समय प्रकाशित भेल छल, जाहि समय जासूसी उपन्यासक बहुत रास पाठक वर्ग हिन्दीमे छलैक। मिथिला क्षेत्राक पाठकलोेकनि सेहो हिन्दीक जासूसी उपन्यासमे रुचि लैत छलाह। होटल अनारकली लिखबाक उद्देश्य प्रायः इहो रहल होयतनि जे मिथिलाक पाठककें अपन मातृभाषामे ओहन वस्तु भेटनि जाहि लेल ओ दोसर भाषामे पड़कबा लेल वाध्य होइत छथि। मैथिलीमे जासूसी उपन्यास लिखब एकटा रिस्क सेहो छल, मुदा ताहि रिस्ककें सोमदेव स्वीकारलनि। मैथिलीक एकटा वृहत् पाठक तैयार करबाक सेहन्ता सेहो एहि उपन्यास-सृजनक ध्येय रहल होयतनि। सोमदेवक भाषाक प्रवीणता, शिल्पक विविधता आ कथा कहबाक कौशलक कारणें होटल अनारकली स्तरीय अछि। ताहि समय हिन्दीमे लिखल जाइत बहुत रास जासूसी उपन्यास सभसँ आगाँ...बहुत आगाँ...।

हिनक दोसर उपन्यास ‘चानो दाइ’ पर हम एहिठाम एहि प्रकारें गप करऽ चाहैत छी-

1959 ई. मे छपल ई उपन्यास ‘चानो दाइ’ मैथिली साहित्यिक जगतमे खूबे प्रशंसित भेल छल। उपन्यास एकटा ग्रामीण स्त्रीक कथा कहैत अछि, जकर बियाह ठकि कऽ एकटा अनपढ़ आ भैंसवाहक संग कऽ देल जाइत छैक। ओकर पिताकें सेहो नहि बुझल रहैत छैक जे वर अनपढ़ आ भैंसवाह छैक। दुरागमन करा कऽ आनलाक बाद ओही राति पति आत्मग्लानिक कारणें चुपचाप घर छोड़ि पड़ा जाइत छैक। नवकनियाँ नीक जकाँ वरक मुँह धरि नहि देखि पबैछ आ परित्यक्ताक जीवन अंगेजऽ पड़ैत छैक। तकर बाद ओ अपन जीवन-संघर्षमे जुटैत अछि आ विपत्तिक धार सभकें पार करैत समाज-सुधारक काजमे लागि जाइछ।

नायिका प्रधान एहि उपन्यासमे जे नायक गौण-पात्र सन उपस्थित होइछ, ओ थिक किसुन...किसुनमा। एकटा एहन परिवारक सदस्य जे अपन पित्ती, माने लालककाक संरक्षणमे अछि। ओ छओ बर्खक छल तँ पिता ओकर मायकें छोड़ि पड़ा गेलाह जे अंततः नहिए घुरलाह। नोकरी करऽ दिनाजपुर गेलाह आ ओम्हरे हेरा गेलाह। ओकर माय किसुनकें देखि संतोष कयलनि।

मुदा दुरागमनक राति किसुन ने मायक संतोष बनि सकल आ ने पत्नीक सम्बल। अपराध भाव सेहो अएलैक मोनमे। चानो सन गुणवतीक बियाह एहि घरमे ठकि कऽ कऽ देल गेलैक। लालककाक मायाजालमे ओझरायल किसुन गाम-घर छोड़ि पड़ा जाइत अछि।

तीन चरणमे बाँटल उपन्यासक कथा-वस्तुमे पहिल भूमिकाक रूपमे किसुनक गाम छोड़ब धरि वर्णित अछि। दोसर चरण माने उत्थान आ तेसर चरण उपसंहारक रूपमे वर्णित अछि। दोसर चरणक उत्थानमे उत्थान-पतनक चक्र चलैत रहैत छैक।

किसुनक पिताक अनुपस्थितिमे लालकका ओहि घरक गार्जियन होइत छथि। मुदा, लालककाक अभीष्ट भैयारीक सम्पति हँसोथबासँ बेसीक नहि बुझना जाइछ। लालककाकें एकटा बेटीएटा छनि। तें ओ एकदिस किसुनकें अपन बेटा जकाँ मानैत छथि, मुदा सम्पतिक लोभ आ गामघरक मुँहपुरुष बनबाक लिलसा हुनक मोन-प्राणमे रचैत बसैत जाइत छनि। आ तकर पहिल प्रयोग किसुनक मायकें रजिस्ट्री आॅफिस लऽ जा कऽ जग्गह-जत्था अपना नामे करएबाक रूपमे होइत अछि। लालककाक प्रयोग सफल होइत छनि। एक्कहिटा तर्क जे दुनू भाइकें आब आगू नाथ ने पाछू पगहा। एकटा बेटो छल, से आब कतऽ अछि, के जानए? कहिया घूरत से के जानए? घुरबो करत वा नहि? जँ घुरियो गेल तँ ओकरे होयतैक सभ कथू। ओकरा बेटे सन मानैत छथि ओ। बेटीकें तँ बियाहि देलनि। अपन घर पठा देलनि। तें भविष्यमे बाँट-बखराक झंझटि किएक? तें सभ कथू एक्केठाम रहय, सैह नीक। आ सोझमतिया किसुनक मायसँ सभ जग्गह-जत्था बहेड़ाक रजिस्ट्री आॅफिसमे अपना नामे करएबामे सफल होइत छथि।

उपन्यासमे नायिका चानो दाइक पहिल संवाद तखन होइत छैक, जखन हुनक सासु माने किसुनक माय अस्वस्थ भऽ जाइत छथि आ देयादिनी हुनका काज-धंधा करबा लेल बाध्य करैत रहैत छथिन...बात-कथा कहऽ लगैत छथिन। तखने पहिल बेर बजैत छथि चानो दाइ- ‘हम सभ काज कइए दइत छी तँ कथी लेल मायकें...’

रजिस्ट्री ऑफिसक काज सम्पन्न भेलाक बादे घरक वातावरण बदलऽ लगैत छैक। लालककाक एकमात्र जमाय आबि जाइत छथि। बेटी सेहो अबैत छनि। ओ सभ ओत्तहि रहबा सन भऽ कऽ अबैत छथि। हुनका चानो सन जुआन परित्यक्ताक सुगंधि दलमलित करऽ लगैत छनि। फिरीसान सेहो। आ ओ चानोक संग अपन पारिवारिक सम्बन्धक बहन्ने कतोक प्रकारक सपना देखब शुरुह कऽ दैत छथि।

लालकका गामक मुखिया बनैत छथि। तकर बाद लालकाकी वैद्यनाथधाम जाइत छथि। संगमे बेटी-जमाय सेहो रहैत छथिन। चानो सेहो। लालकका गामे पर रहैत छथि। सिमरिया घाटमे गंगा-स्नानक बाद जहाजसँ ओहिपार जयबा लेल बिदा होइत छथि। जहाज पर चढ़बासँ पहिने जमाय कहैत छनि जे थोड़ेक खएबा-पीबाक समान आ गंगाजल लऽ लेल जाए। सभकें जहाज पर छोड़ि ओ चानोक संग घुरैत छथि। जाबत ओ खएबा-पीबाक समान लेताह, चानो गंगाजल भरि औतीह। ओ दुनू अबैत छथि। ओझाकें अपन अभीष्ट सिद्ध होइत लगैत छनि। जहाज तेसर भोम्हा बजबैत खुजि जाइत अछि, मुदा चानो दाइ सिमरिया घाटक अन्हारमे बन्हा जाइत छथि। हुनक प्रतिवाद असफल होइत छनि। मुँहमे नूआ ठूसि दैत छथिन ओझा। हाथ-पएर बान्हि दैत छथिन। मुदा...

दोसर दिन एकटा बस्तीमे गंगाक धारसँ छानि कऽ आनल जाइत छथि चानो दाइ। होस अएलनि तँ एकटा परिवारक संग देखलनि स्वयंकें। ओ परिवार हिनक उपचार करैत छनि। आ, एकटा समाजसेवी शेखर समैयारक संग पटनाक ‘मदनलाल-अवलाश्रम’मे पठा दैत छनि। चानो सोचैत छथि जे ओही अवलाश्रममे रहि पढ़ि-लिखि कऽ कतहु मास्टरी करतीह आ किसुनक प्रतीक्षा करैत रहतीह। मुदा, ओ अवलाश्रम मात्र साइनबोर्डेटामे छल। पटनाक ओहि आश्रममे अनर्गले काज सभ होइत छलैक। चानोकें सेहो ओही घूरमे डाहि देबाक लेल अवलाश्रमक मैनेजर प्रयास कयलक मुदा चानो अपन कौशलसँ आ ओहिठामक एकटा स्त्री, कमलाक सहयोगसँ दुनू गोटें पड़ा जाइत छथि।

ओतऽसँ पड़यलाक बाद दुनू गोटें माने चानो आ कमलाकें दानापुरक एकटा बालिका विद्यालयक प्रधानाघ्यापिकाक मदतिसँ एकटा कोठरी भेटैत छनि। ओतहि रहि दुनू गोटें स्वेटर आदि बीनब आ चर्खा काटब शुरुह करैत छथि। चानोकें किछु ट्युसनो भेटऽ लगैत छनि। तकर बाद ओ दुनू दानापुरक भारती सेवाश्रमक सदस्य होइत छथि। ओतहि स्त्रीगण सभक लेल निरक्षरता-निवारण पाठशाला शुरुह करैत छथि। आ, भारती सेवाश्रमक उद्देश्यकें प्रतिफलित करैत चानो दाइ लोकप्रिय समाज-सेविका बनि जाइत छथि।
उपन्यासक तेसर चरण, उपसंहारमे देखाओल गेल अछि जे चानो अपन सासुरमे आयोजित भारती समाजक पाँचम वार्षिकोत्सवमे अबैत छथि। हुनका अपन परिवारक मादे बुझबाक जिज्ञासा रहैत छनि, मुदा तकरा ओ अपना मोनहिंमे रखैत छथि। गपेक क्रममे सासुरक एकटा स्त्राी हुनक परिवारक मादे कहैत छनि। वैह कहैत छनि जे हुनका गंगामे भसि गेलाक बाद सासुरक लोक उड़ौने रहनि जे ककरो संग पड़ा गेलीह। ओझा ताकि कऽ थाकि गेलाह, मुदा ओ नहि भेटलखिन। ओ स्त्री चानोकें चिन्हैत नहि छनि। चानो दाइ ओहिठाम चन्द्रावतीक नामे उपस्थित छथि।

आ ओत्तहि एकटा नवागन्तुककें सोझाँमे ठाढ़ देखैत छथि चानोदाइ। खादीक कुर्ता, पैजामा आ बंडी, आँखि पर चश्मा आ हाथमे बेग लटकौने ओहि युवकसँ किछु पुछितथि, ताहिसँ पहिनहिं हुनक नजरि बेग पर लिखल परिचय पर पड़ैत छनि- श्रीकिसुनचन्द्र, एम.ए. रिसर्च स्काॅलर, कलकत्ता विश्वविद्यालय।

दुनूक भेंटक संग उपन्यासक सुखान्त अंत होइछ।
उपन्यास कतोक रास प्रश्न ठाढ़ करैत अछि आ किछु प्रश्नक उतारा सेहो दैत अछि। स्त्रीक आत्मनिर्भरताक एकटा रेखा सेहो खिचाइत छैक उपन्यासमे।

उपन्यासक भाषा पाठककें बान्हबामे सफल भेल अछि। कथा आ उपकथाक बाद पाठकक उत्सुकता बनल रहैत छैक, जे पूरा पोथी पढ़बा लेल बाध्य करैत छैक। यैह कोनो लेखकक सफलता सेहो मानल जाइत अछि। उपन्यासमे वातावरणक सृजन सेहो समधानि कऽ कएल गेल अछि। छोट-सँ-छोट गप, पात्र आ परिस्थितिकें गंभीरतापूर्वक उकेरल गेल अछि। जेना, जखन किसुनक मायकें बरद गाड़ी पर रजिस्ट्री ऑफिस  लऽ गेल जाइत छनि, तँ बहलमान हुनका ठाम-ठामक परिचय दैत रहैत छनि। एकरा उपन्यासकार एहि तरहें लिखैत छथि- ‘अपन ज्ञानक कैंचा बूढ़ी पर बजारबा लेल बहलमनमा बाजल- उएह छइ बड़का डागदरक अस्पताल। बीस रुपइया फीसे छइ तऽ जादू जकाँ इलाजो करइ छइ आ ऊ खपड़ावाला घर छइ बरमा डागदरक। दुःख तऽ छोड़ा दइ छइ इहो आ बोलियो बड़ मधुर छइ एकर, मुदा पाइ लेत कम आ सब बेरामी के एके पुरियामे चाटऽ लए दइ छइ। से किदन अंगरेजी दवाइ नहि, हींग-पत्ती बाला औषध कहइ छइ लोक सभ आ डागदरो। सुनइ छिअइ ‘कएबो’ करइ छइ बरमा डागदर।’ बरमा डागदर माने लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार मणिपद्म।

एकठाम (पृष्ठ सात) ताहि समयक देहाती स्कूल आ मास्टरक चित्रण सेहो तात्कालीन शिक्षा-व्यवस्थाक स्थितिकें उकेरैत अछि। ओना सरकारी स्कूलक स्थिति एखनो बेसी नीक नहि भेलैक अछि। मात्रा स्वरूप बदललैक अछि। आब पहिने जकाँ चटियाकें छड़ीसँ ‘होंकल’ नहि जाइत छैक। होंकबाक स्वरूप बदलि गेल छैक, जे पहिनेसँ बेसी भयाओन छैक।

उपन्यासकार ठाम-ठाम व्यंग्य करबासँ सेहो नहि चुकल छथि। तात्कालीन रेलक स्थिति पर लिखैत छथि- ‘समस्तीपुरसँ आगाँ वैह छोटकी इंजिन आ खुरखुरही चालि। दरभंगाक माटि कोमल छइक, से कतएसँ एतेक लौह-भार सहन करओ?’
उपन्यासमे एकठाम सस्पेंस सेहो अछि। चानो भोरे-भोर बासन माँजैत रहैत छथि आ डाकपीन चिट्ठी खसा जाइत अछि। चिट्ठी चानोदाइक नामे छैक। आखर चीन्हि नहि पबैत छथि। तखनहिं ओझा आबि जाइत छथि। ओझाक आहटि बूझि ओ चिट्ठी नुका लैत छथि। ओझा अपन कोनो रभसक गप लेल क्षमा माँगैत छथि। चानो ओझाक प्रति सहज भाव देखबैत छथि। हँसी करैत बजैत छथि- चलू कतहु भागि जाइ। ठक्क भेल ओझा बजैत छथि- से हमर भाग्य। से सुनि चानो फुलाएल कमल जकाँ हँसि दैत छथि आ फेर मुँह पर हाथ दैत जीहकें दाँतसँ काटि लैत छथि। से एहि आशंकासँ, जे काकी ने सुनि लेने होथि। ओझा चलि जाइत छथि आ तखन चानो चिट्टी पढ़ैत छथि- ‘प्रिय रानी! स्नेह।’ मुदा तखनहिं काकीक स्वर सुनाइत छनि। काकी उठि गेलीह मने। चानो चिट्टीकें समेटि डाँड़मे खोंसि लैत छथि। एहिठाम पाठक भ्रमित होइछ। चानोक लेल ककर चिट्टी? ओझाक तँ नहि! मुदा, ओझा सद्यः छथि, तँ डाकसँ चिट्टी किएक आओत? तखन ई ककर चिट्टी? आ पाठकक ई भ्रम टुटैत छैक वैद्यनाथधाम जएबाकाल टेनमे चानो द्वारा चिट्टीक स्मरण करबाकाल। ओ चिट्टी किसुनक लिखल छैक, जाहिमे किसुन ई तँ लिखने छथि जे ओ कलकत्तामे छोट-छीन नोकरी करैत छथि आ पढ़ितो छथि। मुदा, किसुन अपन ठेकान नहि लिखने छथि। चानोक लेल एकटा प्रसन्नताक संग वैह बड़ीटा प्रतीक्षा। औनाहटि।

उपन्यासमे किछु बात अखरितो छैक। जेना, किसुनकें गेलाक बाद चानोक कोनो प्रतिक्रिया पाठककें देखबामे नहि अबैत छैक। कोनो युवतीक जिनगीमे ओकर पति मात्र एकाध दिनक लेल अबैक, जे नीक जकाँ पतिकें देखियो ने सकल रहए आ ओकर पति अनचोके घर छोड़ि पड़ा जाइक, तेहन युवतीक मोनक पीड़ाक आकलन सेहो अपेक्षित छैक। पाठक चानोक ताहि समयक मनोदशाक चित्रण सेहो तकैत रहैत अछि। मुदा, से भेटैत नहि छैक।

उपन्यासक कथा चानोक संग-संग चलैत छैक। चानोकें गंगामे भासि गेलाक बाद लालकका, काकी आ ओझा सभक की भेलनि, से उपन्यासक अंतमे चानपुरावालीक मुँहें पाठक एतबे बुझैत अछि जे बारह बर्ख पहिने हुनक पुतौहु सिमरियासँ कतहु भागि गेलि। लालककाक मादे लेखक मात्र एकटा वाक्य लिखैत छथि- ‘पुरान मोकदमाबाज लालककाकें रस्ता पर लाबएमे कतेक परेशानी भेल अछि।’ लालकका रस्ता पर आबि गेलाह, गामक भारती समाजक पाँचम वार्षिकोत्सव छैक, ताहिठाम पाठक लालककाक वा हुनक परिवारकें सहजे ताकऽ लगैत अछि। एकटा उत्सुकता पाठकक मोनमे उठैत छैक, जकरा लेल उपन्यासकार मात्रा एकेटा वाक्य गढ़ैत छथि। लगैत छैक जे अंतमे उपन्यासकार हड़बड़ीमे छथि। अपन बातकें गंतव्य धरि पहुँचएबाक हड़बड़ी छनि।
उपन्यासमे स्त्री-शोषणकें विभिन्न कोणसँ देखाओल गेल अछि। भारती सेवाश्रममे रहनिहारि प्रतिमा, नीरा, सुकुमारी, कमला आ चन्द्रावती माने चानोक व्यथा-कथाक रूपमे नारी शोषणक विभिन्न आयामकें राखल गेल छैक। प्रतिमा पाँच बहिनमे सभसँ छोट छलीह आ पिता द्वारा एस.डी.ओ.क कोठरीमे परसल गेलीह। भारती सेवाश्रमक विज्ञापन देखि पटना अएलीह आ आश्रमक निर्देशमे प्रगति करऽ लगलीह। विवाहिता नीरा सिनेमामे अभिनयक आकर्षणक कारणें घरसँ पड़ा कऽ बम्बइ गेलीह, मुदा ओहिठामक जीवनमे रचिन-बसि नहि पौलीह। एकटा डायरेक्टर सिनेमाक शेयर किनबाक शर्त पर काज देबाक बात कएलकनि आ बादमे ठकि लेलकनि। बम्बइक घृणित जिनगीसँ दिक् भऽ घर घुरऽ चाहैत छलीह, मुदा हुनका ई विश्वास छलनि जे हुनक डाक्टर पति हुनका स्वीकार नहि करथिन। ओ स्त्राी-स्वतंत्रताक घोर विरोधी लोक। ताहूमे नीरा स्वयं हुनका घरसँ पड़ायलि छलीह। पिता लग कोन मुँहें जइतथि? बम्बइमे उपासे रहबाक समय आबऽ लगलनि तँ एकटा सिन्धीसँ वियाह कएलनि। ओकरा संग पटना अएलीह। पटनामे ओ होटल खोललक आ होटलमे ग्राहकक संग नीराकें रहबा लेल वाध्य करऽ लागल, तँ कोनहुना ओतऽसँ पड़ा कऽ भारती सेवाश्रम अएलीह। ओ एहि उद्देश्ये समाज-सेवा करऽ चाहैत छथि जे बम्बइया सभ्यता दिस बताहि भेलि अपन बहिन सभक आँखि खोलि पाबथि जे अहाँ अम्बपाली नहि, वैदेही बनू। पतिकें प्रेमसँ जीतू। एहन नहि जे पति गीतसँ रिझताह, तँ रेडियो कीनि ली।

तहिना विधवा सुकुमारीकें कुंभ मेलामे बबाजीक दुव्र्यवहारसँ बचैनिहार युवक सभ पटना सिटीक एकटा वेश्यालयमे पहुँचा देलकनि आ ओतहिसँ ओ भारती सेवाश्रम द्वारा मुक्त कराओल गेलीह। कमला अपने गामक एकटा युवकक प्रेममे पड़ि वियाहसँ पूर्व माय बनऽवाली भऽ गेलीह, तँ गामसँ पड़ा कऽ पटना अबलीह आ ओही अवलाश्रममे आश्रय भेटलनि, जतऽ चानोकें आनल गेल छल। ओत्तहि बच्चा भेलनि जे जनमिते मरि गेल। तकर बाद मैनेजर द्वारा हुनक शोषण शुरुह भऽ गेल। ओ चानोक संग ओतऽसँ पड़ा कऽ भारती सेवाश्रममे अएलीह।

एहि तरहें उपन्यासकार स्त्री-शोषणक विभिन्न आयामकें रेलक डिब्बामे यात्रा करैत काया सभक माध्यमे सफलतापूर्व राखलनि अछि।

एहि उपन्यासमे एकटा स्त्रीक व्यथा-कथा आ स्वावलम्बनक बाट देखएबाक प्रयास कएल गेल अछि। अंठावन बर्ख पहिलुक समाजक चित्रण एहि उपन्यासमे अछि। ताहि समयक समाज आ आजुक समाज सर्वथा भिन्न अछि। सभ दृष्टिकोणे भिन्न। मुदा, स्त्रीक प्रति सामाजिक दृष्टिकोण ततेक नहि बदलि सकल अछि, जतेक अपेक्षा कएल जाइत अछि। ओना, आजुक स्त्री शिक्षित होइत छथि। सभ अपन बेटी-पुतौहुकें पढ़ाबऽ-लिखाबऽ चाहैत अछि। पढ़बैत-लिखबैत अछि। बुधियारि बनबैत अछि। आइ स्कूल-कओलेजक सुविधा छैक, पहिने नहि रहैक। एहना स्थितिमे ओहि समयक स्त्रीक दशाक संग-संग ओकर दिशा सेहो उपन्यासमे निर्धारित करबाक प्रयास भेल अछि। दिशा निर्धारणक उपन्यासकारक अपन सोच छनि, अपन कल्पनाशीलता छनि, अपन बुद्धि-विवेक छनि, अपन दर्शन छनि।
उपन्यासकें वास्तविकता आ कल्पनाशीलताक विथानक संग पाठककें बान्हबामे समर्थ भऽ पाएब ओकर विशेषता होइछ। वातावरणक सृजन आ तदनुसार संवाद-भाषाक समायोजन उपन्यासक गहना-गुड़िया होइत छैक आ ताहि दृष्टिकोणें ई एकटा सफल उपन्यास मानल जा सकैछ। चानो दाइ पढ़बाकाल पाठक कतहु ओझराइत नहि अछि। एकर कथावस्तुक संग यात्रा करैत रहैत अछि।

उपन्यास अपन अंतरंग आ बहिरंग प्रभाव छोड़ैत अछि आ समग्रतामे सफल अछि। मैथिली उपन्यास विधाक यात्राकें एक डेग आगाँ बढ़ौने अछि। आजुक समयक लेल सेहो आवश्यक उपन्यास सिद्ध होइत अछि।
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