Saturday, September 23, 2023

जल प्रबंधनक चिन्ता आ मैथिली साहित्य




जल प्रबंधनक चिन्ता आ मैथिली साहित्य

प्रदीप बिहारी
(ई आलेख 'मैसाम' दिल्लीक वार्षिक कार्यक्रम 2018 ई मे पढ़ल गेल छल।)

एकटा अद्भुत विषय पर बाजबाक लेल ठाढ़ भेल छी। जल प्रबंधनक चिन्ता एखनि ग्लोबल विषय अछि। एकरा मैथिली साहित्यमे ताकब उत्साहबर्द्धक लगैत अछि। उत्साहबर्द्धक एहि दुआरें जे जतेक चिन्ता आ चिन्तन एहि बात लेल मैथिली साहित्यमे कएल गेल छैक आ जतेक नहि छैक, से करबाक खगता आबि गेल छैक। तें,
एखनि एहिठाम ठाढ़ छी, तँ सभसँ पहिने आदरणीय सोमदेवक ई पाँति मोन पड़ैत अछि-

पग-पग पोखरि माछ मखान
सरस बोल मुस्की मुख पान
विद्या वारिधि शान्ति प्रतीक
सरितांचल श्री मिथिला थीक

आजुक परिदृश्यमे एखनि ई सोचबा लेल वाध्य भेल छी जे की मिथिला सरितांचल रहि गेल अछि? संभवतः नहि। पोखरि सूखि रहल अछि। सूखि कऽ वासडीह बनि रहल अछि। माछ आब आंध्रप्रदेश बला भेटैत अछि। आ मखान जे किछु होइए, से खट्टी (बेपारी) लऽ जाइत अछि। मूल रूपें ई कही जे पोखरिए नहि, तँ ई सभ कतऽ?
पोखरि नहि माने, ई नहि जे पोखरि उकनि गेल मिथिलासँ। मुदा वर्तमानमे जे पोखरि बाँचल अछि, तकर संख्या गनल-गुथल अछि। तकरा नहिए सन मानल जा सकैत अछि। जे अछियो, से सुखयबा लेल वाध्य अछि। बरखा कम होइत छैक। गाछ-बिरिछक संख्या कमल जाइत छैक। पोखरि डबरा बनल जाइत अछि। आब गामघरमे घनगर बंसबिट्टी आ घनगर गाछी कम्मे रहि गेल अछि। लोक रोजगार लेल गाम छोड़ि रहल अछि। पोखरि आ इनार अनाथ भऽ गेल अछि।
मैथिली लोकगीत सभमे सुनैत रहैत छलहुँ- ‘फल्लाँ बाबा पोखरि खुनौलनि...’ से आ अभिलेखक बात भऽ गेल अछि। अपन बेटा-बेटी आ पोता-पोती सभकें खिस्सा सन सुनयबा योग्य। जँ ओ पूछि देलक जे फल्लाँ बाबा बला पोखरि कतऽ छैक, से किछु बरखक बाद किनसाइत मानचित्रो पर नहि भेटत।

इनार। पहिने गाम सभमे जलक मूल स्रोत इनार छल। जेना-जेना गामक लोक सभ सामर्थ्यवान होइत गेलाह, गाममे कऽल गराय लागल आ इनारक उपेक्षा शुरुह होमऽ लाग। नहूँ-नहूँ इनार गामक ‘डस्टबिन’ बनैत गेल आ ओकर भत्थन होइत गेलैक। गामघरमे एखनो जे इनार बाँचल अछि, से प्रायः मृतप्राय अछि। बर्खो-बर्खसँ उड़ाहल नहि गेल अछि।

विकासक संग लोक सुकमार होइत गेल अछि। पाचन तंत्र कमजोर होइत जाइत छैक। कतोक प्रकारक प्रदूषणमे जीबाक लेल वाध्य अछि। जीअब जरूरी छैक। प्राण-रक्षा जरूरी छैक। इनारसँ कऽल आ आब डिब्बा आ बन्न बोतल बला पानिक चलन गामोमे भेल जा रहल छैक। गामक लोेक लेल कऽलक पानि सेहो प्रदूषित भेल जा रहल छैक। ओना गामघरमे देखाउँसे सेहो कऽलक पानि प्रदूषित कएल जा रहल छैक। गाममे कृषिसँ आय घटलैक अछि आ नगदीक आमदनी बढ़लैक अछि। घर-घरमे टी.वी. होइत जा रहल छैक। टी.वी. परक विज्ञापन लोककें आकर्षित करैत छैक। प्रायः तें, कऽलक पानि प्रदूषित भऽ रहल छैक।

गाम प्रगति कयलक अछि। गामक स्वरूप शहरी भेल जाइत छैक। शहरक सभटा लाभ-हानिकें स्वीकारबा लेल मिथिलाक गाम मानसिक रूपें तैयार भेल जा रहल अछि।

कविवर चन्दा झाक ई पाँति हम उल्लेख करऽ चाहैत छी-
गंगा बहथि जनिक दच्छिन दिस, पूर्व कौशिकी धारा।
पश्चिम बहथि गण्डकी, उत्तर हिमावत विस्तारा।।
कमला, त्रियुगा, अमृता, धेमुरा, वागमती कृत सारा।
मध्य बहथि लक्ष्मणा, से मिथिला विद्याधारा।।

कविवर चन्दा झा एहि तरहें मिथिलाक चैहद्दी बतबैत छथि। माने मिथिला चारूदिस नदीसँ घेरायल अछि। से साँचे हमरालोकनि नदीक संस्कृतिमे जीबैत छी। आ मरितो छी। मिथिलाक नदी सभ एक-दोसरासँ जुड़ल छैक। मैथिलीक लब्धप्रतिष्ठ रचनाकार मणिपद्म एकठाम (उपन्यास ‘दुलरा दयाल’ मे) लिखने छथि जे जेना मनुक्खक देहमे नसक प्रणाली होइत छैक, तहिना कोनो देशमे नदीक। तें नदीकें निर्वाध होयब आवश्यक। हुनक उपन्यास ‘दुलरा दयाल’मे एकटा संदर्भ अछि- मानसिंह कमलाक धारकें अवरूद्ध करऽ चाहैत छल। ओ बखरीक डाइन बहुरा गोढ़िनक बेटी अमरावतीसँ बियाह कऽ बखरी पर अपन आधिपत्यक सपना देखि रहल छल। मुदा, अमरावती भरौड़ाक दुलरा दयालकें मोने मोन वरण कऽ चुकलि छलि। ओ चाहलक जे कमलाक धारकें अवरूद्ध कऽ देल जाए जाहिसँ जल-व्यापार आ अर्थ व्यवस्था प्रभावित भऽ जाइक। आ तें ओ पिच्छड़ पहलमानकें पटिऔलक। पिच्छड़ पशुवध कऽ ओकर रक्त-मासु अपन देहमे लेपि लैत छल आ हाड़कें कमलाक धारमे फेकि दैत छल। गाछ सभ उखाड़ि कऽ धारमे फेकि दैत छल। ओकरा देहक दुर्गन्धक कारणें कोनो मल्ल ओकरासँ युद्ध नहि करैत छल। जखन धार अवरूद्ध होमऽ लगलैक, तँ दुलरा दयालक मदतिसँ ओकर पित्ती पिच्छड़क वध कयलक।

कथा बहुत छैक। मुदा, उल्लेख करबाक उद्देश्य ई जे जल प्रबन्धनक चिन्ता मणिपद्मक एहि उपन्यासमे एहि तरहें आयल अछि।
हमरा जनैत उपलब्ध संसाधनक कुशलता आ प्रभावपूर्वक उपभोग कऽ कयल जाइ बला काज, जाहिसँ लक्ष्यक प्राप्ति भऽ सकय, प्रबंधन थिक। जल प्रबंधनक अभिप्राय सेहो सैह थिक। आ ई प्रबंधन जँ ठीकसँ नहि भऽ सकल, तकर कतोक दुष्परिणाम बहराइत अछि। नदीक जलक संदर्भमे एहन दुष्परिणाम मिथिला खूबे भोगलक अछि आ भोगि रहल अछि। आ एकर चिन्ता मैथिली साहित्यमे जतेक अयलैक अछि, से यथेष्ट नहि अछि।

मैथिली साहित्यमे यातना आ यंत्रणा सहैत लोक आ बान्ह पर जीवन बितबैत लोकक वेदना प्रमुखतासँ आयल अछि।

तटबन्धसँ कमलोकें बान्हल गेलनि अछि आ कोसीकें सेहो। मुदा, स्थिति ई छैक जे दुनू क्षेत्रक लोक एहिसँ सुखी नहि भऽ दुखिए छथि। बागमती-गंडक क्षेत्रमे सेहो तटबन्धसँ खतरा बढ़लैक। तकर इहो कारण जे समय-समय पर बान्हक यथोचित आ इमानदार मरम्मति नहि भऽ पौलैक। रखरखाब दरिद्राह रहलैक।

कोसी बताहि भेल साले-साल धार बदलैत छथि आ गामक गाम पोछि लैत छथि। कहल जाइत अछि जे मैथिली-हिन्दीक रचनाकार मायानन्द मिश्रक गाम ‘बनैनिया’ आब कतहु अछिए नहि। कोसीक पेटमे विलीन भऽ गेल अछि। एहन कतोक गाम ओहि क्षेत्रक अछि।

मैथिलीमे कमला, कोसी आ आन-आन नदी पर बड़ थोड़ काज भेल अछि। मैथिलीमे जतेक लिखल गेल अछि, ओतेक वा कने बेसीए हिन्दीमे लिखल गेल अछि, सेहो मिथिलेमे रहनिहार लेखक सभ द्वारा। विभूति भूषण मुखोपाध्याय बांग्लामे लिखलनि- ‘कुसी प्रांगणेर चिठी’, जकर अनुवाद मणिपद्म ‘कोसी प्रांगणक चिट्टी’क नामसँ कयने छथि। डाॅ. धीरेन्द्रक उपन्यास ‘ठुमुकि बहू कमला’ आ राजकमल चौधरी कथा ‘अपराजिता’मे एहि दर्द आ चिन्ताकें देखल जा सकैत अछि। रामकृष्ण झा ‘किसुन’क कविता ‘कोसीक बाढ़ि’, सुभाष चन्द्र यादवक कथा ‘परलय’, नारायणजीक कथा ‘कोसी’, एहि पाँतिक लेखकक कथा ‘औतीह कमला जयतीह कमला’ , साकेतानन्दक उपन्यास ‘सर्वस्वाँत’, पंकज पराशरक उपन्यास ‘जल प्रांतर’, सुरेन्द्रनाथक उपन्यास ‘उसरगल लोक’ प्रभृति रचना सभमे चिन्ता आ चिन्तनकें तकने पाठक निराश नहि होयताह। एहि विषय पर नरेन्द्र झा जीक सेहो महत्वपूर्ण काज मैथिलीमे छनि।

हिन्दीमे मायानन्द मिश्रक उपन्यास ‘माटी के लोग सोने की नैया’, कोसी क्षेत्रक मलाहक जीवन पर केन्द्रित नागार्जुनक उपन्यास ‘वरुण के बेटे’, हेमन्त-रणजीवक ‘जब नदी बंधी’, डाॅ ओम प्रकाश भारतीक ‘नदियाँ गाती हैं’, पुष्य मित्रक ‘रेडियो कोसी’, तेज नारायण खेड़वारक ‘धेमुरा दाइ को किसने मारा?’ आ ‘कौशिकी कछार पर’ आदि पोथी सभमे सेहो जल प्रबन्धक चिन्ता देखल जा सकैछ।

एकर अतिरिक्त आर छिटफुट रचना सभ भेल अछि, जे विभिन्न पत्र-पत्रिकाक माध्यमे आयल अछि। मुदा, ताहूमे रचनाक मूलमे बाढ़िक विभीषिका, बाढ़िसँ प्रभावित लोकक दुख, विपत्ति आ करुणा मुखर भेल अछि। सरकारक प्रति आक्रोश मुखर भेल अछि।

रचनाकार जखन कोनो रचना करैत छथि तँ पहिने विषय आ परिस्थिति हुनका मथैत छनि, तकर बाद ओहो ओकरा मथैत छथि। एकटा स्वाभाविक चिन्ता हुनका मोनमे उपजैत छनि। तेहन चिन्ता उपरोक्त रचना सभमे वर्णित अछि, मुदा ओ चिन्ता मूल नहि बनि सकल अछि। हँ, किछु पोथी चर्च हम करऽ चाहब। जेना, साकेतानन्दक उपन्यास ‘सर्वस्वांत’ आ पंकज पराशरक ‘जल प्रांतर’। एहि दुनू उपन्यासमे जल प्रबंधनक चिन्ताकें मुखर करबाक प्रयास कयल गेल अछि। ‘जल प्रांतर’मे पंकज पराशर ‘पढुआ कका’ नामक एकटा पात्र गढ़लनि अछि, जे एहि चिन्तासँ साकांक्ष करबा लेल लेख लिखैत छथि। देशक हिन्दी-अंग्रेजी पत्र-पत्रिकामे हुनक लेख छपैत छनि। मुदा, हुनक बात सरकार धरि जाइत छनि वा नहि से स्पष्ट रूपें उपन्यासमे वर्णित नहि अछि। मुदा, हुनका दू गोट धमकी देबऽ अबैत छनि जे ओ एहन लेख नहि लिखथि। ओहि दुनूक परिचय उपन्यासकार स्पष्ट नहि कयलनि अछि। ओ तात्कालीन सरकारक लोक सेहो भऽ सकैत अछि वा ठीकेदारक लोक सेहो भऽ सकैत अछि। अंततः ओहो ओही बेरक बाढ़िमे मरि जाइत छथि।

हँ, कवि-कथाकार रमेशक कविता संग्रह ‘कोसी घाटीक सभ्यता’ एहि दृष्टिएँ रेखांकित करबा योग्य कृति अबस्से अछि, जाहिमे जल प्रबंधनक चिन्ता मुखर भेल अछि। एहि पोथीक अपन वक्तव्यमे ओ कोसीकें दरिद्राक देवी कहैत छथि, कारण हिनका खजानामे बालुएटा छनि आ कोसी-क्षेत्रक गीतकार रवीन्द्रक एकटा गीतक पाँति उद्धरित करैत छथि- ‘हमर देसक (मिथिला-देस) छुतहरी गरीबी, तों उढ़रियो तऽ जो...’ कोसी मिथिलासँ उढ़रियो जाथि तऽ ककरो कोनो दुख नहि हेतै।
ओना ई वक्तव्य एकटा संवाद सेहो आमंत्रित करैत अछि। मुदा, कोसीक ताण्डवसँ आहत लोकक मनोदशाकें गीतकार आ कवि रमेश जे दर्द व्यक्त करैत छथि, हम ताहि दिस इंगित कयलहुँ अछि।

मैथिली नाटकोमे एहि प्रकारक चिन्ता कमे देखबामे अबैत अछि। प्रायः नहिए सन। मैथिली रंगमंच एहि मादे उदास अछि। हँ, हेबनिमे मैलोरंग द्वारा प्रदर्शित नाटक ‘जल डमरू बाजे’मे एहि चिन्ताकें देखल जा सकैत अछि।

जखन जल प्रबंधनक गप करैत छी, तँ एकर चिन्ता मात्र बाढ़िएटासँ नहि, रौदी सेहो एकटा स्थिति अछि जाहि लेल चिन्ता कयल जा सकैत अछि। मैथिली साहित्यमे रौदीक स्थिति आ ओकर दुख-दर्दकें अकानल गेल अछि।

मैथिली साहित्य गामसँ शहरमे अयलैक। नागरीय जीवन मैथिली साहित्यमे अयलैक आ आब धुरझार आबि रहल छैक। मुदा, साहित्यमे एहि नागरीय जीवनमे जल प्रबन्धनक चिन्ता कमे देखल जा रहल छैक। ग्रामीणो जीवनक चिन्तासँ कम। जखनि कि ई चिन्ता एखनहुँ गामसँ बेसी शहरक छैक।

हम नाटकक चर्च कयलहुँ अछि। संचारक एकटा महत्त्वपूर्ण माध्ययम थिक नाटक। मैथिलीमे नाटक कम लिखल जा रहल अछि। कम मंचन भऽ रहल अछि। जल प्रबंधनक चिन्ता करैत नाटकक लेखन आ मंचनक खगता छैक। लोककें ओकर दायित्व बुझाएब आवश्यक छैक। एहि माध्यमें ई बात समाज लग राखल जा सकैत अछि। एहूमे बाल नाटक आ रंगचंक खगता आर बेसी। हम सभ सचेत होइ, से आवश्यक तँ अछिए, ओहूसँ बेसी आवश्यक जे अपन अगिला पीढ़ीकें सचेत करी आ ताहि लेल नाटक आ रंगमंच एकटा महत्त्वपूर्ण विधा अछि। रचनाकारलोकनिकें, नाटकक संदर्भमे कही तँ नाटककार आ निदेशकलोकनिकें एहि मादे विचार करबाक चाहियनि।

संचार माध्यमक एकटा आर बात मोन पड़ैत अछि। आइ-काल्हि नेना सभ विडियो देखऽमे परिकल अछि। स्थिति ई छैक जे दूधमुहों नेना सभ विडियो देखैत अछि तखने खाइत अछि। संयुक्त परिवारक अवधारणा आ उपाय नहि रहने छोट-छोट नेना सभक लेल ई समस्या आबि गेल छैक। ‘न्युक्लियर फैमिली’क अवधारणा आ बदलैत समय-सालक कारणें संभव नहि भऽ पबैत छैक, जे कोनो नेनाक बाबा-बाबी ओकरा संग रहि पाबथि। एकसरि माय की करतीह? आ विडियो देखैत-देखैत खायब नेना सभक हिस्सक भऽ जाइत छैक। ई हिस्सक नेना सभकें नमहर धरि लागल रहैत छैक। कने चेष्टगर भेलाक बाद कमे नेना एहि हिस्सकसँ उबरि पबैत अछि। एहना स्थितिमे ओकरा ओही माध्यमसँ अपन मातृभाषामे ई बात सभ बुझयबाक काज होमक चाही।

एखनो ई स्थिति अछि जे नेना जँ पानि हेरा दैत अछि वा ओकरा हाथसँ लोटा वा गिलास खसि पड़ैत छैक, तँ माता-पिता एहिलेल डँटैत छथि जे हुनका फर्श पोछऽ पड़तनि। एहि लेल नहि डँटैत छथि जे पानि दूरि भऽ रहल छैक। ओ नेनाकें डाँटि कऽ वा स्नेहे ई नहि बुझबैत छथि जे पानिकें जोगयबाक चाही।

ई बात स्पष्ट जे प्रबन्धनक काज साहित्यकारक नहि होइत अछि। साहित्यकार चिन्ता कऽ सकैत छथि, चिन्तन कऽ सकैत छथि। प्रबन्धन हेतु व्यक्तिगत, सामाजिक आ सरकारी स्तर पर इमानदार प्रयासक खगता छैक। मैथिली साहित्यमे एहि मादे जतेक चिन्ता आ चिन्तन भेल अछि, से थोड़ अवश्य अछि, मुदा हतोत्साह करबा योग्य नहि अछि। लेखकक काज वीजारोपण करब छैक। ई एहिबात पर निर्भर करैत छैक जे जमीन कतेक उर्वर छैक आ गाछके जनमबा लेल...बढ़बाक लेल खाद-पानि केहन छैक।
अन्तमे, हम यैह कहऽ चाहब जे कोनो अभियानक सफलता आ असफलतामे सभ कारकक योगदान होइत छैक। तें हमरालोकनिकें अपन दायित्वकें सदिखन मोन राखक चाही। जल प्रबंधनक चिन्ता आ जलक संरक्षण आजुक ज्वलंत समस्या थिक। ई कोटि-कोटिक यज्ञ थिक, जे व्यक्तिगत रूपें सभसँ एक-एको अरघा घी माँगि रहल अछि।
                            .........
रचना : पटना / 05 सितम्बर 2019


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