Tuesday, August 1, 2023

नाच (मैथिली कथा) : प्रदीप बिहारी


नाच

प्रदीप बिहारी


सरस सिनेहीकें निर्देशक पर तामस उठल रहनि। तामस एहि दुआरें‌ उठल रहनि जे निर्देशक नाटकक आरंभिक दृश्य बदलि देने छलाह। केहन बढ़िया अल्लू बम चौकी पर बजारल जाइक आ जहिना लोक सुनय 'फटाक', तहिना पर्दा घिचनिहार रस्सी घिचय आ मंच पर सजल-सजाओल दृश्यक संग कलाकारकें‌ लोक देखय। नाटक शुरू भ' जाइक। मान्यता रहैक जे, जे जतेक जोरसं संवाद बाजय, से ततेक पैघ कलाकार।
       मुदा राजनारायण डाक्टर दू मास पर दिल्लीसं घुरलाक बाद नाटकक रूपे बदल' पर लागल रहथि। चाहैत रहथि जे पहिले दृश्य मे सभ कलाकार कोरसक रूपमे मंच पर नचैत आबय, नाटकक मुखगीत गाओल जाइक, मंचक दू-तीन फेरा लगा क' नेपथ्य मे चलि जाय। 
        नब ढंगक एहि आरंभक पक्ष-विपक्षमे गाममे दुगोला सन भ' गेलैक। एक गोल कहैक जे परिवर्तन जरूरी छै, सभ बेर एक्के रंगक आरंभसं मोन ओंगठि गेल छै लोकक। दोसर गोलक लोक कहैक जे एहिसं पात्रक गोपनीयता नहि रहतै। लोक के नब-नब दृश्य मे नब कलाकार के देखबाक आतुरताक आनन्द नहि रहि पौतैक। सरस सिनेही सेहो विरोधिए पक्षक रहथि, अपितु ई कहल जा सकैछ जे विरोधी पक्षक अगुआ छलाह। मुदा हुनक जुति नहि चललनि। निर्देशक राजनारायण अपन निर्णय पर कायम रहलाह। गाममे हुनक विरोध करब मोश्किल बात। पछिला बीस बरखसं वैह निर्देशक होइत रहलाह। ओ राजस्व विभागक कर्मचारी छलाह आ गमैया डाक्टर सेहो छलाह। मेटेरिया मेडिकाकें घोंकि होम्योपैथिक डाक्टर कहाथि, मुदा एलोपैथिकसं सेहो परहेज नहि छलनि। रोगीक दुख छुटक चाही, खाहे कोनो पैथीसं होअय। रोगीक दुख छुटि जाइक, बस...। गौंआके आर की चाही? 
       नाटकक नीक कलाकार होइतहुं सरस सिनेही निर्देशक डाक्टर राजनारायणक सोझां ठठि नहि सकलाह। हुनका नाच' नहि अबैत छलनि। समूह नृत्यमे स्टेप मिलायब हुनका लेल कुनैनक गोटी सन तीत छलनि। सात दिन धरि रिहर्सलक बादो स्टेप नहि मिललनि, तं निर्देशक हुनका अभिनयसं हटा क' नेपथ्यक काज थम्हौलखिन। कने-मने गुल-गुल चललै‌ गाममे। मुदा सभ शान्त। विरोध पर‌ दरी ओछा देल गेलै।
         सरस सिनेही सोचलनि जे‌ ओ नेपथ्यक काज नहि करताह। सभ दिन हीरो के पाट खेलाइ छलाह आ आब मेक-अप करताह वा वस्त्र-विन्यास करताह वा मंच-सामग्रीक ब्योंत करताह वा अल्लू-बम पटकताह वा परदाक डोरी घिचताह। नहि, एहन कोनो काज नहि करताह। गाममे अपन छवि खराप नहि करताह। बड़ समझौता करताह तं सेकेंड हीरो के पाट क' सकैत छथि। ओहिसं नीचां नहि खसताह। 
          तखनहि एकटा बात मोन‌ पड़लनि। निर्देशक राजनारायणकें जे कलाकार पसिन नहि पड़ैत छनि तकरा ओ बीच नाटकमे नाकाम क' दैत छथि आ दर्शक सभ पिहकारी मार' लगैत छैक। कारण प्रचलित मान्यताक कारणें निर्देशके प्राम्पटर सेहो होइत छल। जाहि पात्रकें ओ नहि चाहथि, ओकर संवाद एतेक स्थिर सं बाजथि जे ओ सुनबे ने करय, मंचे पर अकबका जाय। दर्शक सभ बुझै जे कलाकार पाठ बिसरि गेल आ पिहकारी शुरू । जं कोनो कलाकार अपना मोने संदर्भ के जोड़ैत कोनो दोसर संवाद बाजि‌ दिअय, तं राजनारायण तामसे फुच्च। परदाक पाछां लालटेम वा टार्च देखौनिहार पर तमसाथि आ चुप भ' जाथि। परदा घिचनिहार देखय जे कलाकार सभ चुप अछि तं परदा खसा दिअय। नटुआक नाच शुरू भ' जाइक आ नेपथ्य मे संसदक सत्र चालू। अपन अवज्ञाक बहन्ने निर्देशक राजनारायण रुसि जाथि। फेर मान-मनौव्वलि होनि आ नाटक शुरू होइक।
        ई सभ बात एहि दुआरे होइक जे बेसी कलाकार पाठ यादि करब अपन शानक विरुद्ध बुझय। ओहि गामक त्रिदिवसीय नाटकक‌ आयोजनमे कम-सं-कम‌ एको राति एहन घटना होयब सोहाग-भाग रहैक।
        सरस सिनेही सोचलनि जे प्रतिष्ठा बचयबा लेल नीक बात यैह जे नाटकक एहि सत्ताधारी मंडली सं हटि जाथि। देखताह जे हुनक अभाव गौआं सभकें कतेक खटकैत छनि?
         सरस सिनेही जी पहिने मात्र सिनेही रहथि। गामक नाटक छोड़लाक बाद कविता लिखबाक अभ्यास कर' लगलाह। नाममे जोड़लनि सरस। भ' गेलाह सरस सिनेही। मोनमे भेलनि जे नाम बदलने किनसाइत भाग्य बदलि जानि।
         से भाग्य बदललनि सिनेही जीक। नोकरी भेटि गेलनि आ गाम छोड़' पड़लनि। शहरमे अयलाह। पड़िकल मोन कतहु मानय? ताक' लगलाह नाट्य मंडली आ साहित्यिक संस्था सभकें। भेटबो कयलनि। नाटक आ कविता चल' लगलनि। मुदा, एकटा बात भेलैक। शहरोमे 'रियलिस्टिक प्ले'क अवस्था बदलल जा रहल छल। 'म्यजिकल प्ले' रंगमंचक केबाड़ ढकढ़काब' लागल छल। सरस सिनेही रियलिस्टिक प्ले मे सहज रहथि मुदा म्युजिकल प्ले मे असुविधा होम' होनि। मुदा, ओ ताहिसं डेरयलाह नहि। जखने रिहर्सल कर' जाथि कि गामक राजनारायण डाक्टर मोन पड़ि जाथिन। मोन पड़थिन निर्देशक आ प्राम्पटर राजनारायण। आ मोनकें बान्हथि। नहि, एत'सं पड़यताह नहि। सिखताह नृत्य। कम-सं-कम ओत्तेक अबस्से जतेक नाटकमे खगता होयतैक।
          से, सरस सिनेही नृत्य सिखलनि। 
          एकदिन पत्नी कहलखिन, "यौ, नाच सिखलहुं से एकबेर हमरो देखाउ ने।"
          पत्नीक गपकें 'फेर कहियो' कहि टारि देलनि। ओ कोठरी बन्न क' टेप रेकार्डर पर कैसेट बजौलनि आ नाचबाक उपक्रम कयलनि। मुदा पयर उठबे ने कयलनि।बेर-बेर प्रयास कयलनि। तैयो ओहिना। 
          जा, ई की भ' गेलनि? आब नाटक‌ कोना करताह? सांझखन रिहर्सलमे जयबाकाल तनाओ रहनि जे कोना करताह? मुदा, रिहर्सल मे कोनो असुविधा नहि भेलनि। तखन? निर्देशककें कहलनि तं कहलकनि, "किनसाइत संकोच होइत हैत। नृत्य कर' काल मोनमे राखू जे मंचे पर क' रहल छी। तहिना करैत रहब तं धाख टुटि जायत। बयस बढ़ने किछु गोटे के एना होइत छनि।"
          "मुदा मंच आ आन ठाम मे फरक होइ छै ने।"
          "एही बात के मोन सं हटा दियौ।"
          मुदा, सरस सिनेही जीक मोनसं से बात हटि नहि सकलनि। हटितनि कोना? स्वयंकें यथार्थवादी शिल्पक अभिनेता मानथि।
          
राति चढ़ल नहि रहैक। साढ़े सात बजैत हेतैक। टी वी देखैत छलाह। ककरो मूड़ी छोपि लेल गेल रहैक, सैह समाचार टी वीक सभ चैनल पर अनघोल मचौने रहैक।
चैनल सभ विशेषज्ञ आ विभिन्न पार्टीक नेता सभकें बजा-बजा बुझू जे नचा रहल छल। ओ सभ अपने ताले‌ नाचि रहल छल। सिनेही जी कें मोन पड़लनि जे बुलडोजर मिशन पर सेहो एहने नाच होइत रहै टी वी पर। ओहू सं बेसी तं लिव इन मे रह' वाली छौंड़ीके पैंतीस टुकड़ी क' देबाक घटना पर भेल रहैक। सि‌नेही जी सोचैत रहलाह‌ जे पैंतीस खण्डकें बुझू जेना पैंतीस टा तालमे पियाजुक खोइया हटा-हटा हत्याक प्रक्रिया कें बुझाओल जाइत रहैक। किछु गोटें अबस्से सिखने होयत। 
         टी वी बन्न करबा लेल रिमोट उठौनहि रहथि कि बाट पर बजैत डी जेक ध्वनि कोठरीके थरथरा देलकै मने। तखनहि पत्नी भीतर अयलीह आ बजलीह, "यौ अहां बहीरो छियै?"
        "से किएक?"
        "एत्तेक जोरसं डी जे बाजि रहल छै‌ से सुनै नहि छियै? चलू बाल्कनीमे। देखियौ कोना नृत्य करैत अछि छौंड़ी-मौगी सभ।"
        "हं डी जेक थरथरी हमरो बुझाएल। चलू।"
         पति-पत्नी बाल्कनी मे ठाढ़ भ' बाट दिस तकलनि। देखिते सिनेही जी बजलाह, "एकरा अहां नृत्य कहै छियै? ई सभ त' धमगज्जर ताल पर नाचि रहल अछि। मुदा, ब'र बला गाड़ी नहि देखै छियै।"
         "बरियाती थोड़े छै जे देखबै।"
         "तखन?"
         "कुमरम कर' जाइ छै। हे वैह देखियौ। ब'र के माथ पर पीयर धोती राखि क' एकटा मौगी जा रहल छै। मने, बिधकरी हेतै।"
         "मुदा, ओ छौंड़ा तं जिन्स पहिरने छै।"
         "ताहिसं की? अपना सभ सन नहि‌ छै। मुदा नाच  तं आब अपनो सभ मे‌ होम' लगलैए।"
         "हे देखियौ। कोनो मौगी के नाच' अबै छै? लगै छै जेना हाथ-पयर भंजैत होअय आ देह पटकैत होअय।‌ भूत लागल होइ जेना। जानि नहि, एहि मे कोन आनन्द भेटै छै। यैह देखाब' हमरा घिचने अनलहुं अहां?"
         "जे होइ। जहिना होइ। उत्सव के भोगैए ने। बेजाय नहि मानू, अहूं के तं नाच' नहिए अबैए।"
         पत्नीक ई बात छक् द' लगलनि सिनेहीकें। मुदा, सहि गेलाह। सोचलनि, पत्नी हुनका नचैत नहि देखने छथिन, तं यैह ने बुझतीह। गंभीर स्वरमे बजलाह, "भोगत की? केओ भोगा रहल छै। जानि नहि कुमरम‌ मे एहन तं बियाहमे केहन हेतै? चलू, चाह पिआउ।"
         ताबत कुमरमक जुलूस सेहो आगां बढ़ि गेलैक।

समधौतक बियाह तय भ' गेल रहनि। तैयारीमे लागल छलाह। एही क्रममे पत्नी कहलखिन, "आभासक बियाहमे नचबै ने?"
         "हं, आब सैह बाकी रहि गेल-ए। नाचू ग' अहां। आ अहूं सोचियौ जे समधियानामे रहब। समधि-समधिन भ' क' नचबै, से नीक हेतै?"
         "हेतै ने किए? आब गेलै जमाना। ओत्ते टा रिसॉर्ट मे बियाह हेतै, मेहदी हेतै, हल्दी हेतै, बियाह हेतै। सभ टा के शोभा-सुन्दर नाचे-गान ने। दोसर बात समधि अहां के छोड़ताह थोड़े। मानसिक रूप सं तैयारी करैत रहू।"
          सरस सिनेही कें लगलनि जे ई गप पत्नी नहि, राजनारायण डाक्टर कहि रहल छथि। भय आ तामस, दुनू मोनमे उपजि गेलनि।
          "सैह कहै छी, घिनेबै नहि ओत'।"
          "एखनि बड़ दिन बाकी छै।"
          "यौ, बियाह-दानक तैयारीमे दिन कोना ससरि जाइ छै, से बुझाइ छै? बेबी तं डान्स क्लास ज्वाइन क' लेलनिहें।"
          "से किए?"
          "भायक बियाहमे नाच' लेल। विभिन्न उत्सवक तीन-चारि टा क' गीत सभ पर प्रैक्टिस करा रहल छनि।"
         "अहूं किए ने ज्वाइन क' लैत छी। एतहु तं सुविधा छै।"
         "हमरा कोनो अबैए नहि। स्कूले समय सं सिखने छी। ई दोसर बात जे अभ्यास छुटि गेल अछि। हम घरे मे  अभ्यास क' लेब। अहां जकां नहि अछि जे पयर मे जांत बन्हा जायत।"
         "एना निकृष्ट नहि बुझू हमरा। हमरा कोनो नाच' नहि अबैए। कार्यालयी दबाओक कारणें रंगमंच छुटि गेल अछि। हमरो नाच' अबैए मैडम, मुदा हम अहां सभ सन धमगज्जर ताल पर‌ नहि नाचब।"
          "एकर माने बियाह-दानमे लोक बिनु रिदमेक नचैए? धमगज्जर करैए? कवि जी! भ्रम मे नहि रहू। लोक आनन्द लेल नचैए।"
         "आनन्द लेल तं अपना मोनसं नाचैए लोक। अहां जे कहै छी, ताहिमे लोक देखाउंसे नचैए, दोसर के देखब' लेल नचैए। अपने मोने नहि नचैए। नचेनहार केओ आर छै, तकरा नहि चिन्हैए। खाली नचैत रहैए।"
         "गलत। एकदम गलत। नाचबाक अपन-अपन स'ख-सेहन्ता होइ छै आ स'ख-सेहन्ता आनक मोने नहि होइ छै। आब तं ब'र-कनिया सेहो नाचक प्रैक्टिस करैए।"
         "बेस, आब तं..."
         बिच्चहिमे पत्नी रोकि लेलखिन, "बस, चुप भ' जाउ। आब अहां की कहब से बूझै छी। आब अहां लग अंतिम अस्त्र अछि- कवियाठी करब।"
        सरस सिनेही चुप भ' गेलाह। मोबाइल खोलि क' देख' लगलाह।
         मोबाइलमे रील, फेसबुक-स्टोरी आ यूट्यूब बेराबेरी देखलनि। खाली नाच, विभिन्‍न प्रकारक नाच। इंगेजमेंटक दृश्यमे लड़की नचिते लड़का लग जाइत छै। आर सभ ओकरा संग स्टेप मिलबैत छैक। पार्श्व गीत एहन, जकर बखान नहि। अकबका गेलाह।  निर्णय नहि क' पाबथि जे कोन नाच ठीक छैक? ओ सभ करैत छलाह, से वा एहिठाम देखि रहल छथि, से। आ मोबाइलमे जे नाच देखैत छथि, तकर व्यू तं लाखो-करोड़ो मे होइत छैक। सोचलनि सिनेही जे एहि मामिलामे ओ अल्पसंख्यक छथि मने।
         समधौतक बियाहमे 'हल्दी'सं एकदिन पहिने नहि पहुंचि सकलाह। तें पत्नीक मोन झूस छलनि। छुट्टी नहि भेटलनि।‌ एना बिदा भेलाह जे 'हल्दी'क समय‌ धरि पहुंचि जाथि।‌ पत्नीकें एकटा 'इवेंट मिस' भ' गेल रहनि। चूंकि कन्यागत सेहो ओही रिसॉर्टमे रहथि तें वियाहसं एकदिन पहिने कन्यागतक ओहिठाम 'मेहदी'क कार्यक्रम रहैक आ ताहिमे दुनू पक्ष सम्मिलित भेल छल। जमि क' नाच भेलै।‌ लगलै जेना दुनू पक्षक बीच प्रतियोगिता भ' रहल होइक। 
          ई सभटा बात पुतौहु व्हाट्स एप पर लिखने रहनि आ वीडियो क्लिप पठौने रहनि। ओ इयर फोन लगा क' वीडियो देखि रहल छलीह। रहल नहि गेलनि तं सिनेही जी कें कहलनि, "अहां बड़ निशोख लोक छी। एत्तेक सुन्दर प्रोग्राम छुटि गेल। के-के ने नाचल। एकटा हमहीं...। अपना नाच' अबितनि तखनि ने...!"
          "हमरा ऑफिस मे छुट्टीक हाल तं बुझले रहैए। एहन छल तं दस दिन पहिने किए ने चलि गेलहुं?"
          "हे, अकरहक लीला नहि करू। ओहो सभ एके दिन हल्दी आ बियाह राखि लेलनि। लोक की इंज्वाय करत?"
          "एहिनो होइ छै। रिसॉर्टक खर्च बूझल अछि? तें एके दिनक खर्चमे दुनू बीध रखलनि समधि।"
           "अहूं सं पुछनहि हेताह आ अहां दही मे सही लगा देने हेबनि। यौ कवि जी! एक्केटा तं बेटा छनि समधिके। ओत्तेक सम्पत्ति! हाथ खोलि क' खर्च कर' दीतियनि ने।"
           "सभटा बात अहीं बूझि जेबै?" कने थम्हैत बजलाह सिनेही जी, "अहांके नाचबाके अछि ने। एके दिनमे दुनू कार्यक्रम छै। नचैत रहब भरि दिन।"
          "तेना नहि ने होइ छै। लोक थाकियो जाइए, बोर सेहो भ' जाइए।"
          तखनहि मोबाइल पर आंगुर तेजीसं चल' लगलनि। किछु ताक' लगलीह। मोबाइल पर चलैत आंगुरे सन तामसे सांस सेहो तेजीसं चल' लगलनि। सिनेही जी पुछलनि, "की भेल?"
          लगलै जेना टेन अनचोके रुकि गेल होइ। मुदा नहि, टेन चलैत रहै। 
         "देखियौ, मेहदी बला प्रोग्राम मे मिथि कतहु‌ नजरिए ने आबि रहल छै।"
          मिथि हुनका दुनूक छओ बरखक पोती छनि।
          "मोन तं ने खराप भ' गेलै मिथिक? वीडियो मे कत्तहु ने देखाइत छैक।"
          सिनेही जीकें सेहो चिन्ता भेलनि।
          "बेबी के व्हाट्स एप करियौ ने। पुछियौ।"
          बेबीक व्हाट्स एप पर कौल भेल।
           "नहि, मम्मी जी। मिथि नहि नचलै।"
           "किएक? ओकर मोन ठीक छै ने?"
           "हं, ठीक छै। मिथि बाजलि जे ओकरा नाचबाक मोन नहि छै। हमहूं सभ छोड़ि देलियै। आर कोनो बात ने।"
           "ओ भरतनाट्यम सीख' जाइत अछि ने?"
           "हं, ओकर गुरुआइन अगिला मास एकटा कार्यक्रम क' रहल छथिन। ताहिमे मिथिक शो सेहो हेतै।"
           "बेस। इन्ज्वाय करू। काल्हि दुपहर धरि हमहूं सभ पहुंचि जायब।"
           "ओ के मम्मी जी।"

कतोक बिगहामे पसरल रिसॉर्ट मे भव्य आयोजन रहै। जखने सिनेही सपत्नीक पहुंचलाह तं समधि-समधिन स्वागत कयलखिन आ कहलखिन जे झट द' तैयार भ' ग्राउंड फ्लोर पर आबधि। हिनके दुनूक प्रतीक्षामे 'हल्दी'क कार्यक्रम रुकल छलैक।
        यंत्रवत दुनू पहुंचलाह आ शुरू भेलै बीध। कने दूर पर डी जे चिचिआयल। एक-दोसरासं गप करबाक परिस्थिति नहि रहैक। सभ नाचब शुरू कयलक। वीडियो बला बुझू विभिन्न तालमे दृश्य 'कैप्चर' क' रहल छल।
         मिथि माम लग बैसलि मुस्किया रहल छलि।
         बीध समाप्त भेलाक बाद अपन कोठरीमे सरस सिनेही ओछाओन पर ओंगठल रहथि आ टी वी देखबाक प्रयास क' रहल छलाह। हाथमे रिमोट छलनि। चैनल बदलैत रहलाह। एक्के रंगक समाचार। सोचलनि जखन समाचारमे एक्के आदमी छैक, तं केहन हेतै समाचार? एक्के रंगक ने। कतहु रामायण पर टिप्पणी, तं कतहु कुरान पर। कतहु हनुमान चालीसा बला विवाद तं कतहु बाट पर नमाज पढ़बाक बात । कोनो नेता जेल गेलाह, तं कोनो अपन पार्टीसं बहार कयल गेलाह। सभ पर गरम-गरम बहस। बहस कयनिहार सभ अपन-अपन नेताक गुणगान मे बेहाल। 
           सिनेही सोचलनि। अपन देशमे मने सदिखन कोनो-ने-कोनो चुनाओ होइते रहै छै। तें टी वीक समाचार चैनल सभ पर नाच सेहो होइते रहैत छै। 
           टी वी बन्न कयलनि सिनेही। मोन पड़लनि। एकटा प्रोफेसर साहेब कहैत रहथिन- मानल जे बियाहक बीध टी वी बाटे दिल्ली सं आबि अपना सभकें छापि लेलक। एकर माने ई नहि ने जे आबो बरदे गाड़ी पर बरियात जाय लोक?
          सिनेहीकें बुझयलनि जे राजनारायण डाक्टर दिल्ली चलि गेलाह अछि।
          तखनहिं समधि कोठरीमे अयलखिन, "समधि! पड़ल किएक छी? चलू ने।"
         "कत'?"
         "रूम नम्बर दू सय आठ मे? साफा बन्हबा लिअ'।"
         "पागक व्यवस्था नहि छै?"
         "नहि। पाग बेसी काल माथ पर नहि टिकै छै। डान्स कर' मे खसि पड़बाक बेसी संभावना।"
         "तेहन बात नहि छै। आब पागक बनौट मे सुधार भेलैए।"
         "तैयो नाच' कालमे खसि पड़बाक खतरा रहै छै। ओना साफा सेहो अपने सभक शिरो परिधान छल ने।"
         सरस सिनेही माथमे साफा बन्हबा क' अपन कोठरीमे अयलाह आ बड़का अयनामे स्वयंकें निहारलथि। माथ भारी लगलनि।


बियाह-दान सम्पन्न भेलै।‌ अपन कोठरीमे अयलाह तं पत्नीसं पुछलनि, "अएं यै, कनियाकें ओत्तेक भारी आ जबदाह लहंगा किएक पहिरा देलकै जे बेदीक चारुकात घुम' काल दू गोटेकें पकड़' पड़ैक।"
           "से सभ नहि बुझबै अहां। सभटा स'ख-मनोरथ होइ छै। बियाह दोबारा थोड़े होइ छै।"
          "मर, हम पुछै छी किछु आ अहां उतारा दै छी किछु।"
          "तं सही बात कहि क' अहां सं के बतकुट्टनि करय। थाकल होएब। सूति रहू।"
          सिनेही पत्नी लग आत्मसमर्पण कयलनि, "बेस। अहूं कम थाकल नहि होयब। खूब नचलहुं अछि।"
          पत्नीकें जेना किछु मोन पड़लनि, "अएं यौ, समधि संगे तं अहूं के नचैत देखलहुं। हमरा सोझां पयरे ने उठय आ समधि संगे तं...। मुदा..."
          "की?"
         "मंचक दुनू कातक पर्दा पर लाइव वीडियो देखाइत रहै, ताहिमे अहांक डान्स नहि देखलहुं।"
          "नहि देखलहुं तं की भ' गेलै? भने नहि देखलहुं।"
          "कैमरा बला काटि तं ने देलकै? मुदा लाइव‌मे काटतै कोना?"
         सिनेही जी कोठरीक प्रकाश बन्न कयलनि। बजलाह, "आब अन्हारमे अहांक मुंह सं एक्को टा शब्द नहि बहराय।"
          कनिए कालक बाद पत्नी फोंफ काट' लगलीह। मुदा, सिनेही जीकें निन्न नहि भेलनि। बौआय लगलाह।तीन दिन पहिलुक बजारक ओ घटना मोन पड़ि गेलनि।‌
बजनिहार तं सामान्ये गप सन बजलाह, मुदा सिनेही जीक लेल ओ घटने सन छलनि।
          राजनारायणे डाक्टर सन हुनको शहरमे एक गोटे छलाह। ओहि साहित्यिक संस्थाक अध्यक्ष, जाहिसं कहियो सिनेही जुड़ल रहथि। ओहि संस्थाक बैनरमे किछु नाटक खेलायल छलाह। एक समय हुनका शहरमे जगजियार छल ओ संस्था, मुदा नहूं-नहूं ओकर अधोगति शुरू होम' लगलैक। बीच शहरमे संस्थाक करीब अढ़ाइ कट्ठा जग्गह रहैक, जे जन सहयोगसं अरजल गेल रहैक। सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट सं पंजीकृत संस्थामे अध्यक्ष-सचिव बनबा लेल उतराचौड़ी शुरू भ' गेलैक। सदस्य सभ एक-दोसराकें छिटकी मारबा पर बिर्त होइत गेलाह। मुदा सभ छिटकी अंततः संस्थेके लगलैक आ संस्था मृतप्राय भ' गेलै। स्थानीय राजनीतिक दुष्परिणामक कारणे सिनेही सन लोक संस्थासं हटैत गेलाह आ राजनारायण डाक्टर सन लोक संस्थाक डोरि धयने रहलाह। छहरदेबाली कयल संस्थाक जमीन, जाहि पर संस्थाक मकान नहि बनि पौलैक, मुंह बौने रहल जे कोनो भागिरथ ओकर उद्धार‌ करतैक। 
           समय बीतैत गेलैक। सिनेही सन-सन पुरान लोक संस्थाक जमीन देखि चुपचाप आगां बढ़ि जाइत छलाह। ग्लानि होनि। एक मोन होनि जे आगां बढ़थि, बनथि भागिरथ। मुदा, दोसर मोन नकारि जानि। डर होनि। ओ की महादेवक तपस्या करताह? आजुक महादेव अपन जटामे ओझरा क' तत्तेक ने दूर फेकि देतनि जे ककरो जनतबो ने होयतैक।
          तीन दिन पहिने संस्थाक पूर्व अध्यक्षक पुत्र बजारमे भेंट भेलखिन। 
          "समितिक जगह दिस गेलियैए?"
          "हं, ओहि बाटे जाइते रहै छी। पहिने एकटा सामुदायिक भवन बनल देखलियै आ आब..."
          "आब मंदिर बनैत देखने हेबै।"
          "जी।"
          "दुनू चीज हमहीं बनबा रहल छियै।"
         "तखन तं खूब खर्च लगैत होयत।"
         "किछु अपनो आ बेसी जन सहयोग सं। किछु विधायक आ सांसदक सहयोग सं। आजादीक अमृत महोत्सव चलि रहल छै, किछु ताहूक मद सभ सं उपरौलियैए। आब अपनेक सहयोग चाही।"
           "हम की सहयोग क' सकै छी?"
           "डेराउ नहि, पाइ नहि मांगब। देखनहि हेबै। नाम देलियैए - उगना महादेव मंदिर।"
          "से तं दू-तीन टा मंदिरक गुम्बद सन देखने रही। बस, जाइते-जाइत। भीतर नहि गेलहुं।"
          "भीतर जैतियै ने। अपने तं पुरान सदस्य छियै। बाबा आ मैयाक मंदिर सोझा-सोझी। कातमे उगनाक मंदिर। गेट पर थोड़ेक जगह बचैत रहै, तं ओत' नन्दी के बैसा देलियनि। हमरा बुते जत्ते भेलै से क' देलियै। आब समाज जानय।"
           सिनेही सोचलनि, समाज रहितैक, तं यैह बनितैक साहित्य आ सांस्कृतिक संस्थाक जमीन पर। मुदा ओ बजलाह किछु आर बात। कहलनि, "समाज की करत? अहां एत' धरि बनौलहुं तं कमान सेहो अपने हाथमे राखू।"
           "से बाबाक सेवा सं हम पयर पाछु थोड़बे करबनि? दू मासक बाद प्राण-प्रतिष्ठाक तिथि बनै छै। आग्रह जे ओहिमे अपने अग्रणीक भूमिकामे रहियैक। कवि-कलाकार सभ के रहबाके चाहियनि।"
           "सीतेश जी, हमर कोनो भूमिका तय नहि करू। ओही समय हमर समधौतक बियाह तय छैक प्राय:। तिथि मिला लेबै, तखने किछु कहि पायब।"
           "सोचने छी जे प्राण-प्रतिष्ठाक अवसर पर पूरे शहरमे कलश यात्रा होइक। नाच-गान होइक। आदि-आदि। पूरा शहर बाबामय बनि जाय। तें अहां अपन समय जरूर रखियौ। संस्थाक एकोटा पुरान सदस्य नहि रहतै, तं की कहतै लोक? आ एकटा आग्रह आर।"
          "की?"
          "हमर पत्नी आ धियापुता सभ मोन बनौने छै जे बाबा, मैया, उगना आ नन्दीक प्राण-प्रतिष्ठा दिन खूब नाचय। मुदा ओकरा सभ के नाच' नहि अबै छै। किछु समय बहार क' थोड़े स्टेप सिखा दीतियै, तं बड़ उपकार होइत। थोड़बो अपने सं सीखि लेतै, तं बांकी लोक सभ के देखि क' टानि लेतै।"
          "ई नाच सिखायल हमरा बुते नहि होयत सीतेश जी। हमरा अपने ने नाच' अबैए।"
          "फुसि नहि बजियौ। अहां के टाउन हॉल मे नचैत देखने छी हम।"
          "ओ समय रहैक। आब पयरे ने उठैए। दोसर गप ई जे जुलूस‌ मे नाच' लेल सिखबाक कोन खगता। नचौनिहार नचा दैत छैक। नाचि लेती कनिया आ बच्चा सभ। अहां चिन्ता नहि करू। आब चलै छी।"
          "बेस, मुदा ओहि दिनक कलश-यात्रामे अपने के आगू-आगू रह' पड़त।"
            सिनेही ओत'सं बिदा तं भ' गेलाह। मुदा, लगलनि जे पयर उठिए ने रहल छनि। पयर दिस तकलनि। पयर उठैत रहनि मुदा स्टेप नहि मिलैत रहनि। चारूकात तकलनि। बुझयलनि जे राजनारायण डाक्टर तं ने देखि रहल छनि।
           पत्नीक खोंखीसं तंद्रा टुटलनि। समधौतक बियाहमे तं तीन दिनक बादे आबि गेलाह। दू मासक बाद कोन बहन्ना बनौताह? 
           सोचलनि। बहन्ना किएक बनौताह। सोझे कहताह जे मंदिरक मूर्ति सभक प्राण-प्रतिष्ठामे ओ कोनो सहयोग नहि करताह। मिथि मोन पड़लनि। मिथि अपन मायकें कहने रहय जे ओ मामाक बियाहमे नहि नाचति। 
                      ------

No comments:

Post a Comment