Tuesday, August 1, 2023

मातबर कथाकार अशोक

आलेख

मातबर कथाकार अशोक

प्रदीप बिहारी


.                 (कथाकार अशोक)

अशोक माने फेसबुकक कथाकार अशोक माने मैथिलीक कवि, कथाकार आ आलोचक, जिनक अद्यावधिक रचना कर्ममे मिथिलाक लोक आ सम्पूर्ण मिथिला जगजियार होइत देखाइत अछि। ई अपन मैथिल आंखिसं विश्व आ वैश्विक परिदृश्य कें देखैत छथि, गुनैत छथि आ तकरो अपन रचनाक विषय बनबैत छथि। आ से एहि तरहें बनबैत छथि से सोझे-सपाटे जं पढ़ि क' ससरि गेलहुं, तं बुझयबे ने करत। माने ई हिनक शिल्पक कलाकारी छनि जे अहांकें लागत जे बड़ सहज बात कहैत छथि, मुदा कहैत रहैत छथि ओतबे गंभीर गप।
         बहुविधावादी छथि अशोक जी। आरंभमे कविता लिखलनि...लिखैत रहलाह...आ तकर बाद कथा दिस मुड़लाह। हमर कहबाक तात्पर्य ई नहि जे पहिने कथा नहि लिखथि, मुदा कविता प्राय: छोड़लनि आ कथा पर केन्द्रित भेलाह। संगे संग अन्य विधा सेहो चलैत रहलनि।  हम एत' कथाकार अशोक आ अशोकक कथा पर गप कर' चाहैत छी।
         अशोकक लेखन आठम दशकसं आरंभ भेलनि अछि। आठम दशक कहबाक माने जे एहि समयसं पाठककें हिनक प्रकाशित रचना सभ पढ़बा लेल उपलब्ध होम' लगलनि। ई जहिया लेखन शुरू कयलनि ताहिसं पहिलुक दशक, माने सातम दशकमे मैथिली कथामे छठम दशकक कथाक विषय, स्वरूप आ भाव-भूमि सं आगांक बात नहि देखना जाइत अछि। सामाजिक चेतना आ प्रतिरोधक जे भुम्हुर छठम दशकमे पजरलैक, से सातम दशकमे पझयलैक नहि, मुदा धधरो नहि बनि पौलैक। तकर एकटा कारण हमरा इहो बुझाइत अछि जे एहि (सातम) दशकमे मैथिली कथामे नव कथाकारक आगमन आंगुरे पर गन' योग्य भेल। एकटा बैच चललै, मुदा नियमित कमे कथाकार रहलाह।
        अशोक जी सातम दशकक धोन्हिकें फाड़ैत अपन कथा सभक संग अबैत छथि। व्यक्ति, समाज, संवेदना, सौमनस्यता, चेतना आ प्रतिरोधक सोझ-सोझ बाट बनबैत छथि। ई अपन बात सोझ-सोझ पाठककें कहैत छथि, जाहिमे हिनक भाषाक जादूगरी देखबा योग्य रहैत अछि। अपने लाथे पूरा समाजकें युग-सत्य देखबैत छथि। ई बात हिनका मैथिली कथामे एकटा फराक पहिचान आ स्थान दैत छनि।
         लेखक समयक संग बदलैत व्यक्ति, समाज आ देशक भाव-स्वभावक संग चलैत अछि आ ओकरा अपना रचनाक विषय बनबैत अछि। जे समयक संग होइत परिवर्तन कें नहि देखैत अछि, ओ खाधि खुनि क' स्वयंकें गाड़ि दैत अछि। कथाकार अशोक एहि मामिलामे हरेक समयक संग चलैत देखाइत छथि। एकर बानगी हिनक 1986 ई मे छपल कथा "मिर्जा साहेब" (ओहि रातिक भोर) आ "छल" (डैडीगाम- 2017) मे देखल जा सकैत अछि। "मिर्जा साहेब"क मिर्जा मुजफ्फर आलम जे भारत-पाकिस्तानक संबन्ध खराप भेला पर भारतमे रहैत छथि। एकटा बियाहमे भाग लेबा लेल पत्नी आ बेटा पाकिस्तानेमे घेरा जाइत छथि। बहुत प्रयासक बाद जखन ओ दुनू घुरैत छनि आ अपने पत्नी आ बेटाकें लेब' बम्बई जाइत छथि आ ओत्तहि तत्काल भेल दंगामे मारल जाइत छथि। मुखिया जीक संग पत्नी आ बेटा अबैत छनि, जिनक अयबाक तैयारीमे गाम प्रफुल्लित छल, भव्य आयोजनक व्यवस्था कयने छल, ताहि पर पानि पड़ि जाइत छैक। ओत्तहि कथा 'छल'मे भोली झा कोआपरेटिवक आम सभामे ब्रीफकेसक लोभें मुहम्मद असलम बनैत छथि। कोआपरेटिवक मीटिंग मे जाइत छथि। आ अंतमे एकटा बात लेल तामसे माहुर भ' जाइत छथि आ बाज' लगैत छथि- 'अरे, ई हाकिम तखनी सं हम्मर मजहब के की-कहां कहि रहल छथ। कहै  छथ जे इसलाम बहुत कट्टर मजहब हय। तलबार के जोर पर चलै हय। मुसलमान सब गाय के मांस खाइ हय। हिंदु के काफिर कहै हय। हम तब्बे से हिनका समझा रहल छली। अरे भाइ, अइ मे हम्मर की कसूर हय। एतना दिन सं हम सब एक-दोसरा के संग रहल छी। तब्बो एक-दोसरा के नहि समझली? कौआ के पाछू दौड़ल जाइ छी। पर ई मानिते नहि छथ। की-कहां बकने जाइ छथ।'
       साम्प्रदायिकताक दू टा स्थिति दुनू कथामे राखलनि अछि कथाकार। 1986 सं 2017 धरि अबैत-अबैत साम्प्रदायिक सद्भाव कतेक विकृत भ' गेल अछि, तकर बानगी। मिर्जा साहेबक पत्नी आ बच्चा पकिस्तान सं औथिन, तें गामक लोक स्वागतक भव्य ओरिआओन कयने रहैछ। ई प्रायः एहि दुआरें जे मिर्जा साहेबक मोजर हुनक समाजमे धर्मक कारणें नहि, मनुक्खक कारणे छलनि। मुदा, सामाजिक स्तर पर धार्मिक वैमनस्य एत' धरि पहुंचि गेल अछि जे मुहमद असलम के ठाह-पठाहिं ओकरा धर्मक खिधांस क' दैत अछि लोक। बहुतो असलम अपन समाजमे छथि जे कहैत रहैत अछि जे कौआक पाछू नहि दौड़ू। मुदा...। कथाकार दुनू समयक चित्रण करैत वाजिब चिन्ता रखैत छथि। दोसर, एकटा आर बात! मिर्जा साहेबक संग मुखिया जी बम्मई‌ (आजुक मुम्बई) जाइत छथिन। मुदा, आजुक‌ स्थिति ई बनि गेल अछि जे कोनो मिर्जा साहेबक संग कोनो मुखियाजी कतहु जयबा लेल तैयार नहि भ' सकैत छथि। दुनूक बीच अविश्वसनीयताक खाधि एतेक गहींर क' देल गेल छैक जे रमजान आ रामनवमी मे एक-दोसराक भेंट-घांट सेहो बनौआ लगैत छैक। आजुक समयक ई सभसं पैघ त्रासदी भ' गेलैए जे एहि देशक मुसलमानकें कह' पड़ैत छैक जे हमर देश भारत अछि। आ एकरा लेल दुनू धर्मक लोक जिम्मेदार छथि जे तेसर, मदारीक होहकारा पर नाचि रहल छथि। 
       सद्भावक एहने एकटा कथा डैडीगाम संग्रहमे अछि- 'ओ दुनू साइकिल सिखैत अछि'। सुधीर आ रमेशक साइकिल सिखबाक बहन्ने कथाकार बड़ीटा बात करैत छथि। एहि कथाक अलाउद्दीन आ कैंची मिस्त्रीक चरित्र समाज लेल एकटा आदर्श स्थापित करैत अछि।
        कथाकार अशोकक कथा रूपी तरकसमे रंग-विरंगक वाण छनि। हिनक एकटा कथा मोन पड़ैत अछि- भोज। एहि कथामे लगैत छैक जे कथाकार एकटा नेनाकें भोजक प्रति आकर्षणक वर्णन क' रहल छथि। भोजक खाद्य-पदार्थक अद्भुत वर्णन अछि। तकर कारण ई जे कथाकार स्वयं सेहो भोजन संदर्भमे विन्यासी छथि। भोजे नहि, आन-आन कथा सभमे सेहो भोजनक वर्णन मनोयोगपूर्वक करैत छथि। 'भोज' कथामे नेनाक मनोविज्ञानक चित्रन अद्भुत अछि। मुदा, पैघ बात ई जे एहि कथाक बहन्ने गामक आपसी सद्भावक गप कहि जाइत छथि कथाकार। भोज गामक लोककें एकठाम बान्हि क' रखबा लेल जरूरी छैक।
        हिनक बहुत रास कथा अछि जे मानवीय संवेदनाक विभिन्‍न आयामकें सफलतापूर्वक छुबैत अछि। हिनक कथा-संसारके अवगाहन कयने पाठककें बुझबामे औतनि जे ई कथाकार ओहू सभ विषयकें अपन कथामे आनलनि अछि जे मनुक्ख आ समाजक समृद्धिक कारक भ' सकैत अछि। 
       हिनक संग्रह 'डैडीगाम'क कथा सभमे एकटा केन्द्रिय बात ई देखबामे अबैत अछि जे फोरलेन/सिक्सलेनक बढ़ैत जालक अछैत गामकें कोना बचाओल जाय? मनुक्खकें बचबा लेल गामक बांचब जरूरी छैक।
       मल्टीनेशनल कम्पनी सभक अधिकारी आ कर्मचारी सभ प्रोमोशन आ पदक जाहि वृत्तमे घूमि रहल अछि, जे ओकर व्यक्तिगत आ सामाजिक जीवन धूमिल भेल जाइत छैक। ओकरा पाइ आ पद चाही। एहि विषय पर मैथिलीमे किछु नव-पुरान कथाकारक कथा अयलनि अछि, जाहिमे विभिन्न प्रकारक चिन्ता आ चिन्तन प्रस्तुत कयल गेल अछि। एहने घुरमुरिया दैत लोक सभक लेल हालहिमे अशोक जीक एकटा दोसरे रंगक कथा अयलनि अछि- 'जिम्मेदारी'। एहिमे ओ 'वर्क लाइफ बैलेंस'क नीक उदाहरण प्रस्तुत कयलनि अछि। परिस्थिति तं यैह छैक आ एहिना कि एहूसं बेसी व्यस्ततम भ' सकैत छैक। मुदा, एहन परिस्थितिमे जीवनक राग-अनुराग कोना बचा क' राखल जा सकैछ, से बात कथाकार अशोक अपन एहि कथामे कहैत छथि। 
         अशोक भाइसं मासमे एकदिन अबस्से भेंट होइत अछि। ओ दिन होइछ 'उपमान'क मासिक गोष्ठीक। ओ मैथिलक प्राय: सभ महत्वपूर्ण विधामे लिखलनि अछि। एकटा विधा छुटल छनि। एकबेरक गोष्ठीक समापनक बाद वियोगी (तारानन्द वियोगी) आ हम कहलियनि जे भाइ, उपन्यास छुटल अछि। लिखियौ ने। ओ साफे नकारि गेलाह। नहि, उपन्यास नहि लिखायत। एकबेर सोचने रही, मुदा नहि । एहि लेल कहियो मूडे ने बनल। जे, से। ई गप हमरा दुनूक मुंहसं प्राय: एहू दुआरें बहरायल जे ओहि गोष्ठीमे वियोगी अपन उपन्यास अंश पढ़ने रहथि। एहि गपक बाद हम दुनू गोटे हुनका संग कौफी पीब' पटना गांधी मैदानक मैकडोनाल्ड मे गेलहुं। कौफीक संग गपसपक बला फोटो हम फेसबुक पर तखनहि द' देलियैक। उनतीस मई 2022क गप थिक।  फेसबुकक टाइटिल देने रहियै - कौफीक संग कथा-वार्ता करैत मैथिलीक तीन टा कथाकार। एहि पोस्टक बहुत रास प्रतिक्रिया आयल। मुदा मुख्य प्रतिक्रिया आदरणीया उषाकिरण खानक आयल छल। ओ लिखने छलीह -'तीनू मिलि क' एक टा दीर्घ कथाक सूत्रपात तने करता? बड़ नीक प्रयोग हेतनि- मधुबनी, सहरसा आ बेगूसरायक परिवेश मे। बगअप भाइ लोकनि।
        एकर प्रतिक्रिया पर आदरणीय भीमनाथ झा तीनू गोटेकें उपन्यास लिखबा लेल आग्रह कयलनि। हमरा मादे कहलनि जे हाथ झारल छनि। लिखिए देताह। वियोगी जी आ अशोक जी गछथु। एहि पोस्ट पर बहुत संवाद भेल। वियोगी गछलनि। भीम भाइ अंतत: अशोक जी सं सेहो गछबाइए लेलनि। कथाकार अशोक अपन पोस्ट उषाकिरण खानक उतारामे लिखलनि- "प्रणाम। अहांक आदेश त' पहिनहि सं अछि। भीम भाइ सेहो कहि देलनि। वियोगी बहुतो दिन सं पाछू पड़ल छथि। लगैए आब एकटा उपन्यास लिखैए पड़त।"
        हम सभ अशोक भाइक एहि घोषणाक स्वागत कयने रही। आ, आब हुनक उपन्यासक प्रतीक्षा क' रहल छी।
   ‌‌                       #####

No comments:

Post a Comment