Saturday, September 24, 2022

तमसाइ छी तं हेरा जाइए (मैथिली कथा)- प्रदीप बिहारी

कथा

तमसाइ छी तं हेरा जाइए

प्रदीप बिहारी                       
         
साइड अपर बर्थ पर पड़ल छी। स्ट्रीट लाइट जरि रहल छैक आ हमर आंखि पर बल्बसं बहराइत किरिन कोण बना रहल अछि। तें निन्न नहि भ’ रहल अछि। दुनू उपरका बर्थ पर नव दम्पति अछि। ब'र-कनिया। दुनू एक-दोसराक बर्थसं पयर अंटका क' बैसल अछि।‌ कनियाक जांघ पर भोजनक प्लेट छैक आ दुनू खा रहल अछि।  भोजन समाप्त क' ब'र सुतबाक उपक्रम क' रहल अछि। मुदा, कनियाकें निन्न नहि भ' रहल छैक। ओ ब'रकें कहैत अछि, “टेनमे कोना निन्न होइत अछि अहांकें?”
             “ओहिना, जेना घरमे होइत अछि।“ ब'र जेबीसं किछु बहार क' कनियाकें दैत अछि, “ई राखू। हमरा जेबीमे मोड़ा जायत।“
        कनिया समान देखैत अछि। दू हजार आ पांच सयक एकहकटा नोट। बजैत अछि, “कार्ड सभ तं घुरा देब मुदा, ….।
        “से किएक?” ब'र कहैत अछि, “अहांकें तं देने रही टाका। दैते रहै छी, तखन ई…”
.       कनिया उपराग दैत सन बजैत अछि, “कोन धरानिए अहां हमरा टाका दैत छी, से बुझिते छी अहां। ओहि दिन जे देने रही से ओ पनसोइया हेरा गेल।“
      “से कोना?”
     “टाका दै सं पहिने जतेक ने तमसाइत छी, जे हेरा जाइत अछि।“ कनिया बजैत अछि, “जहिया-जहिया अहां तमसा क' टाका दैत छी, सभ बेर किछु ने किछु हेरा जाइए।“
      ब'र चुप अछि। कनिया कहैत छैक, “प्रेमसं तं किछु नहिए देल भेल अहां बुतें।“
.     ब'र चुप अछि। सुतबाक प्रयास करैत अछि। मुदा फेर कनिया टोकैत अछि, “अही‌ बर्थ पर आउ ने।“
      “से किएक? दुनू गोटें कोना अंटब एक्के बर्थ पर? दोसर बात ई जे लोक देखत तं की कहत?”
      “अहूं हद करै छी।‌ सूत' बेर ओहि बर्थ पर चलि जायब। एखनि एत' आबि क' बैसू ने।“
      ब'र कनियाक बर्थ पर चलि जाइत अछि। दुनू एक-दोसराक पार्श्व मे सटि क' बैसि जाइत अछि। 
      हम सोचैत छी, अबस्से ऋंगारिक गप कर' दुनू एकठाम बैसल अछि। दुनूक स्वर पहिने कने-कने सुनाइत छैक, फेर मद्धिम भ' जाइत छैक। 
     हमर कान ओम्हरे पाथल अछि।
     कनिया चाहैत छैक जे ब'र किछु-किछु बतिआय, मुदा ब'र चुप। कनिये टोकैत छै, "एत' अबिते मौनी बाबा भ' गेलियै?"
     ब'र चुप।
     "की सोचै छी? बाजू ने।‌ अहां चुप छी, त' हम बोर होइ छी।"
     "सोचै छी, की रही आ की भ' गेलहुं। गामघरक लोक सभ हमरा स' बहुत रास उमेद पोसने अछि।"
      "अनेरे ने। जे उधबा उठलै से सभ के बुझले छनि। जहिया रहय तहिया सभ के सहयोग कयनहि रहियनि।"
      "सैह कहै छी। सोचनहु ने रही जे काज बन्न भ' जायत। ठेला गुड़का क' एहन खाधि मे फेकि देत जे..."
       "सैह ने। करय केओ आ भरय केओ।"
       "एहिना होइ छै। अनचोके आगि लागि गेलै। ककरा, के आ की कहलकै? किनसाइत केओ ने देखलकै। सभ सुनते उपास पर चालू। जानि नहि, कत'-कत' नुकायल छलै बम-पेस्तौल-भाला-पजेबाक टुकड़ी आ पाथर सभ। लगलै जेना भारत-पाकिस्तानक लड़ाइ शुरू भ' गेल होइ। ठेला परक कपड़ा सभ जा-जा झांपि क' पड़ाइ, ताबते तीन-चारि टा पहुंचल आ ठेला के ठेलैत बाजल, "जान बेसी भ' गेलौए? खरच क' दियौ? भाग साला। हम त' पड़ेलहुं। ठेला कत', हम कत' आ कपड़ा सभ कत'? के जानय? तकर कनिये कालक बाद त' धधक' लगलै।"
       जहियासं ई घटना भेलैए, कनिया कतोक बेर ई बात सूनि चुकल अछि।‌ओकर बुझल छैक जे बजैत-बजैत ब'र असहज‌ भ' जाइत छैक। ओ टोकैत अछि, "ओह, कत' बहल जाइ छी? जे अहां लग नहि अछि, ओ अहांक नहि अछि। हम अहां लग छी, से सोहे ने आ कत'-कहांदन बौआइ छी।"
        ब'र साकांक्ष होइत अछि, "सौरी। अहां के कहने रही जे ओ स्थिति के मोन नहि पाड़ब। मुदा की कहू? बिसराइतो नहि अछि।  एहि स' नीक त'...।"
       "की?"
       "फेरिए बला काज नीक रहय। मोहल्ले-मोहल्ला घुमि-घुमि क' स्त्रिगणक कपड़ा सभ बेची। कुर्ता-सलवार, साड़ी, नाईटी, प्लाजो.."
       कनिया विनोद करैत अछि, "आ ताहि मे मोनो लागय। नहि यौ।"
      "मोन की लागय? साइकिल पर ओत्ते-ओत्ते समान ऊघब। बौआएब आ चिकड़ैत रहब...।"
      "तें छोड़ि क' ठेला ल' लेलियै?"
      "नहि, दोकनदारिए कम होम' लगलै। लोक सभ आनलाइने मंगाब' लगलै।‌ समान केहनो होइ, कमो दाम मे चमक-दमक भेटि जाइक।"
      "से त' भेलै।‌ आब बेसी लोक...ओना आनलाइन मे ठीके एक्के बेर मे पसिन पड़' बला समान सभ भेटि जाइ छै।"
      "चुप रहू। एकरे कारण हमरा सन-सन फेरीबला सभ मारल गेल।" ब'र बजैत अछि, "ओना मौगी सभ भुकबितो बड़ छल।"
      "माने?"
      "मोल-मोलाइ बड़ करैत छल। जत्ते दाम कहियै, तकर आधा स' शुरू करय।"
      "त' अहूं तेहने दाम कहियै ने- अढ़ाइ-तीन गुणा।"
      "नहि धरबितियै त' पार लगितै?"
      कनेकाल दुनू चुप।
      फेर कनियां पुछैत छैक, "अएं यौ! अपना सभक बियाह भेल तखन अहां‌ यैह काज करैत रही ने?"
      "हं।"
      "आ अहांक बाबू आ घटक कहलथि जे लड़का के रेडिमेडक बिजनेस छै। सखी सभ हमरा खौंझाबय, "जो ने रंग-बिरंगक, नया-नया डिजाइनक पहिरिहें। जखन अपने बिजनेस त' बाते की?"
      "त' अहां के हम तकर अभाव रह' देलहुं?"
      "से हम कहां कहै छी।" कनिया बजैत अछि, "खाली नगद नराएन दै मे हनछिन करैत रहै छी।"
      "हम संगे रहिते छी त' किए चाही...?" ब'र बजैत अछि, "लोक‌ जे कहने होअए, मुदा पहिले भेंट मे हम कहि देने रही ने जे हमर रेडिमेडक बिजनेस नहि अछि। हम फेरीबला काज करै छी।"
     "अहांक यैह ईमानदारी पहिले गप मे मोहि लेलक हमरा। बान्हि लेलक अपना संग।" कनियां बजैत अछि, "अएं यौ! एकटा बात पुछू।"
     "कहू।"
     "अहां के संगी सभ वा भाउजि सभ सिखौने नहि रहथि जे सुहागराति मे की सभ बतिएबाक चाही?"
      "से किए?"
      "अहां जे अपन व्यवसाय, आमदनी कीदन-कहांदन सभ बतिआएल रही, तें पुछलहुं। मोन अछि ने....।" बजैत कनियां कने आर सटि जाइत अछि।
      "ई सभ की बजै छी। लोक सभ सुनैत होयत।"
      "लोक की सुनत? सभ फोंफ काटि रहल अछि।" कनियां बजैत अछि, "दोसर बात जे हम सभ बतिआइतो छी कोबरे घर सन ने।"
      "बेस, छोडू ई गप। हम सोचै छी जे..."
      "आब फेर फेरिए बला काज करी।"
      "आब से चलत? आब त' आर..."
      "महानगर मे नहि, गाम मे।" ब'र बजैत अछि, "गाम मे ऑनलाइनक चलनसारि घनगर नहि भेलैए।"
       "बात त' नीक सोचै छी। मुदा, गाम मे कीननिहारि कत्ते भेटत? गाम मे आब लोके कत्ते रहै छै।"
       "जतबे छै ततबे। गामो मे रेडिमेडक दोकनदारी बांचल छै। स्त्रिगणक संग धीयापूताक कपड़ा सभ सेहो राखबै।"
       "तैयो, एक बेर सोचि लिअ'। दोकनदारी ग्राहकक अनुसार होमक चाही। बजार जेना बदलै छै, तहिना बिजनेसो बदलबाक चाही।"
      ब'रकें कनियांक बात नीक नहि लगैत छैक। तुरुछैत बजैत अछि, "से सभ बात बूझै छियै महरानी! ई सभ ओकरा लेल छै, जकरा लग अहगर स' पूंजी छै। हमरा सन के की? सभ दिन क' इनार खुनू आ पानि पीबू।" कने थम्हैत पुन: बजैत अछि, "भने कहैत रहय झलीन्दर।"
      "की?"
      "नहि जो बिहार। एत' जमल छौ दोकनदारी। ई उधबा जल्दीए थम्हि जेतै। दुनू दिसक नेतबा सभक मोन भरतै त' शान्त बन' जेतै। एकरा सभक एके क्षणक तामस सुड्डाह क' देलकै।"
       "से भाइ, तामस होइते छै तेहने। एहि एके क्षणक तामसक कारणे राजा सभक राज-पाट बोहा जाइ छै।"
        "तें कहै छिअ' भाइ। नहि जो बिहार। एतहि रह। हम सभ फेर स' जोड़ब ठेलाक पहिया।‌"
       ताहि पर हम कहलियै, "बात तं ठीके कहै छें भाइ। मुदा, देखलही नहि, बुलडोजर सं ढाहि देलकै रोडक काते कात। आब सभ टा नव हेतै। ठीकेदार नव, प्रशासन नव, पुलिस नव, हफ्ता नव। मुदा, व्यवस्था तं पुराने रहतै ने।"
      "ठीके कहलियै अहां।‌ मुदा एही व्यवस्था मे रह' पड़त ने। कोनो-ने-कोनो रूपमे सभ ठाम एक्के बात छै। एहि सं भागब ठीक नहि। अपने ठीक रहब जरूरी ।"
     "तं हम बेठीक कहिया भेलहुं? तैयो..."
      "से, त' मानै छी हम। मुदा, हमरा लागल जे अहांक जे स्थिति छल, ताहि‌ मे गाम दिस आयब जरूरी छल। जगह बदलि गेने मोन दोसर रंगक होयत। तें हम पप्पा के कहलियनि।" कनियां बजैत अछि, "चलू ने, किछ मास रहब। एम्हरो अजमा क' देखब।‌ ओना हमहूं किछ कर' चाहै छी।"
       ब'र बजैत अछि, "अरे वाह! की करब अहां?"
      "मिथिला पेंटिंग जे सिखने रही, तकरा आर मांजब। तकर बाद..."
      "बेस, बड़ भेल। आब सूति रहू।"
      "किए? अहां के ओंगही लगैए।"
      "लागत नहि त'?"
      "कने आर बैसू ने।' कनिया गप बदलैत छैक, “जखन-जखन भौजीक फोन अबैए, त' एतबे पुछैत छथि जे गुड न्यूज कहिया धरि सुनायब? आइ कहि देलियनि जे जाधरि नीक काज-रोजगार नहि हैत, ‘गुड न्यूज' नहि सुनब अहां।“
      ब'र चुप।
      "ठीक कहलियनि ने भौजी के? बेरोजगारक घर मे बच्चा? हम सभ त' दुखधनिया मे रहिते छी, पहिने नीक समय बनाबी, तखन ने गुड न्यूज।" 
     ब'र चुप।
     "अहां किछु बजै ने किए छी? हमर बात स' तामस उठैए?"  
      ब'रकें किछु मोन पड़ैत छैक, “समान सभ जे राख' देलहुं-ए, से ठीकसं राखू। कतहु…”
       “एखनि तमसा क' नहि ने देलहुंए। निश्चिन्त रहू। नहि हेरायत।
      कने काल दुनू फुसफुसाइत रहैत अछि। बूझ'मे नहि आबि रहल अछि हमरा।
      फेर ब'र अपन बर्थ पर चलि जाइत अछि। 
     कनेकालक बाद कनियाक स्वर सुनैत छी, “तखनसं सुतबा लेल हड़बड़ायल रही। आब की भेल?”
     “निन्न नहि भ' रहल अछि।“
     हम ब'र दिस तकैत छी। ओ बेर-बेर करोट फेरि रहल अछि। ओकर कछमछीक अनुभव भ' रहल अछि हमरा। 
     लगैए, जेना हमरो निन्न हेरा गेल होअय।

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4 comments:

  1. बहुत सुन्दर कथा।

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  2. बहुत सुन्दर कथा।

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  3. समसामयिक कथा। भाषा आ प्रस्तुति उत्तम।

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  4. नीक कथाअछि।ओना अहां नीक लिखतो छी।

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