Thursday, September 29, 2022

मौगियाह (मैथिली कथा)- प्रदीप बिहारी


कथा

मौगियाह

प्रदीप बिहारी   

तरकारीक दोकान पर पहिने बेर देखने रहियै ओकरा। हमरे पार्श्वमे ठाढ़ भऽ तरकारी किनैत रहय। हमरासँ पहिने पहुँचल रहय, तें पहिने ओकरे भेटैत रहै तरकारी। हम प्रतीक्षारत रही।
       तरकारीक पाइ देबाक कला हमरा आकृष्ट कयलक। ओ उपरका जबीसँ पाइ बाहर कयलक। एक आइटमक भुगतान कयलक आ घुरती पाइ लेलक। पुनः बटुआसँ पाइ बहार कयलक। लुंगीक फाँड़सँ। आइटम सभक भिन्न-भिन्न ढंगसँ भुगतान कयलक।
        हमरा बूझि पड़ल जे अपना गामक हाट पर ठाढ छी।
        हम तरकारी लेब छोड़ि ओकरा निहारऽ लगलहुँ। भुगतान कयलाक बाद दोकान परसँ चलि गेल। हम ओकर चालि देखैत रहलहुँ। देखिते रहलहुँ।
        हमरा किछु भेटि गेल मने। एहने पात्र तकैत छलहुँ। मोन हल्लुक भेल।
        '‘की सब दिअऽ?’’ परिचित तरकारीबला टोकलक। साकांक्ष भेलहुँ।
        ‘‘ओकरा हिबै छलियै?’’ तरकारिएबला पुछलक।
        '‘हँ! देखलहक नहि। कोना माउगि सन गप्प करैत छलै। मुँह, आँखि, हाथ...सभ ओहिना चलैत छलै। चालि सेहो ओहिना। डाँड़ कोना लचकै छलै।’’ हम बजैत रहलहुँ।
        '‘से अपने आइ देखलियै हन। ई बड़गाड़ी मौगियाह हेबे करै।’’ बाजल तरकारीबाला, ‘‘की दू अपने के?’’
        हम तरकारी लेबऽ लगलहुँ। हमर मोन तरकारी लेबऽसँ बेसो ओकरे पर रहय।
        हम तरकारी लेलहुँ। बिदा होमऽ काल तरकारी बलासँ पुछलियै, ‘‘तोरा ओहिठाम बरोबरि अबैत छह?’’
       ‘‘हँ।’’ रहस्यमय मुस्की पसारैत बाजल तरकारीबला, ‘‘कोनो काम हय? बोला दू। एनही घुमब करै होतै बड़गाही।’’
       '‘नहि, छोड़ह।’’ हम मना कयलियै, ‘‘दोसर दिन भेंट करबै। कतऽ रहै छै?’’
        अचरज लगलैक तरकारीबलाकें, ‘‘अपने नञि जनै छिकियै?’’
        ‘‘अहंऽ।’’ 
        ‘'हमे बुझली जे अपने जनै छिकियै आ ओही जग के काम हय।’’ बाजल तरकारीबला, ‘‘इंडियन आयलमे रहै हइ। नाम हइ- मिरदंगी। काल्हि औते। अपने अइथिन, तऽ भेंट करा देबनि।’’
       हम बिदा भऽ गेलहुँ।
       मिरदंगी। ओकर नाम।
       इंडियन आयल।
       एहि शहरमे एकटा देह व्यापार केन्द्र छैक। इंडियन आयलक पेट्रोल पम्पसँ सटले कातमे। तें एहि केन्द्रकें लोक -'इंडियन आयल’ कहैत छैक। किछु गोटे 'पेट्रोल पम्प' सेहो। बेसी लोक ‘इंडियन आयल’ कहैत छैक।
       मिरदंगी माने ओही केन्द्रक टहला।
       राति भरि मिरदंगी हमरा मोनमे ढोल पीटैत रहल। ठीक एहने चरित्र छै प्रस्तावित नाटकमे। निर्देशन हमरे करबाक अछि। दोसर कलाकारकें सीखाबऽ पड़त। ई तँ प्राकृतिके अछि।
       दोसर दिन संस्थाक किछु वरिष्ठ कलाकार आ सहायक निर्देशकसँ मिरदंगीक मादे गप्प कयल। ओ लोकनि पहिने प्रतिवाद कयलनि। किछु प्रश्न ठाढ़ भेलै। ‘इडियन आयल’ मे रहै छै, तँ कोनो-ने-कोनो रोग होयतैक। अन्य कलाकार सभ सेहो प्रभावित भऽ सकैछ। आदि-आदि...।
       अंततः निस्तुकी ई भेलैक जे मिरदंगीक डाक्टरी परीक्षण कराओल जाय। जँ ठीक-ठाक रहल, तँ ओकरा आनल जाय। एकटा आर शर्त रहैक जे मिरदंगीक कोनो दोसर ठेकान कहल जाय- आन कलाकार सभकें।
       मुदा ई सभ मिरदंगी मानय तखन ने।
       मिरदंगी मानलक। मुदा हमरा पानि पिया कऽ। ठेकानक मादे फुसि बाजऽ लेल तैयारे ने रहय। बहुत रास गप्प आ तर्कक छान-पगहासँ मानलक।
       डाक्टरी परीक्षणकें अपन संस्थाक बीध कहि ओकरा लग रखने रही तं ओ गंभीर होइत बाजल रहल, ‘‘बूझि गेली। हमे आर जइ ठाँ रहै छिकियै, ओइ ठाँ के लोक के कोनो...। अपने जे बहन्ना बनबियौ। हमे बुझै छिकियै।’’
       मिरदंगी मानि गेलि। ओ नाटक करत।
       मिरदंगीक डाक्टरी परीक्षण भेलै। पूर्वाभ्यासमे आबऽ लागल।
       ओकर शर्तक अनुसार रिहर्सलक समय बदलऽ पड़ल। साँझक बदला भिनसर नओ बजेसँ।
       रिहर्सल चलऽ लगलैक। संवाद याद करबाक आ बजबाक अभ्यास चलैत रहैक।
       एकदिन, रिहर्सल समाप्त भेलाक बादो ओ बैसले रहय। आर-आर कलाकार सभ चलि गेल रहैक। जयबाकाल हम ओकरा बैसल देखलियै।
       ‘‘की मिरदंगी। आइ एखनि धरि?’’ हम पुछलियै।
       ‘‘अपने सऽ एगो काम रहै।’’ मिरदंगी बाजल।
       ‘‘की?’’
        '‘काम ई रहै जे...एगो काम रहै।’’
       मिरदंगीकें बाजऽ मे असुविधा होइत रहैक।
       ‘‘साफ-साफ बाजऽ ने। संकोच किए करै छह?’’
       ‘‘बात ई हइ जे ऊ कतेक दिन सऽ बोलब करै छलै किताब दऽ।’’
      ‘‘के ऊ?’’
       '‘उहे।’’
       ‘‘के?’’
       ‘‘आर के? हमरे जऽरे जे रहै हइ- मालती।’’
       ‘‘के मालती?’’
       ‘‘हम जहाँ रहै छिकियै, ओतै एगो छौड़ी हइ।’’ बाजल मिरदंगी, ‘‘सुन्दर हइ। सब सऽ सुन्दर! ड्राइवर, खलासी आउर के अपना भीरू बैठैयो ने दै हइ। ओकरा भिरू खाली साहेबे सन लोक आर अबै हइ।’’
       ‘‘हँ तँ की बात छै?’’
       ‘‘ओकरा पढ़ऽ के सऽख हइ। हमे जब इहाँ अयलियै, तऽ हमरा दिस खूब ताकब करै आ एक दिन...।’’
       मिरदंगीक खिस्सा हमरा रुचिगर लागऽ लागल।
       ‘‘हम तऽ पहिने ओकरा सऽ कोनो मतलब नञि रखियै। उहे हमरा पोल्हाबऽ लगलै। बरोबरि अपन हिस्सा सऽ दू-चारि गो रूपा देब करै।’’
       मिरदंगीक बजबाक शिल्प हमरा बेसो नीक लागय। हम ओकरासँ आगाँक खिस्सा पुछैत गेलहुँ। मिरदंगी बजैत रहल।
       ‘‘रूपा देबऽ सऽ मना केलकै ओकरा संगी, तऽ मालती बोललै जे कंजूसी कऽ कऽ की होतै? हमे बलू नीक लगै छिकैय मालती के। अपना संगी के कहलकै जे रूपा घटऽ लगतै तऽ हमरा लेल एगो गहिंकी आर बढ़ा लेतै। एत्ते गोरे भिरू सुतब करै हइ, तऽ एगो आर। की फरक पड़तै?’’
       हमरा कोनादन लगल। हम बुझयलियैक मिरदंगीकें। नीक लोकसँ सम्पर्क भऽ रहल छै। एहि तरहें नहि बाजक चाही।
       मिरदंगी मानि गेल। ओकरा गलतीक आभास भलैक। ओ बाजल, ‘‘मालती के किताब पढ़ऽ के आदति छइ। हमे बजार सऽ किताब लाबि दै छिकियै। आइ बोललै जे अहीं सऽ किताब लाबि देबऽ।’’ पढ़ि कऽ घुरा देत। हमहीं लाइ देब।’’
       ‘‘हमरा कोना चिन्हैत अछि ओ?’’ हम पुछलियैक।
       ‘‘अपने के बारे मे हमहीं बोललियै हन। किरिया खा कऽ बोलै छिकी जे ओकरा छोड़ि आर कोइ ने जनै हइ नाटक के बारे मे।’’ मिरदंगी बाजल, ‘‘मालती सेहो औतै नाटक देखऽ।’’
       हम चुप रहलहुँ।
       ‘‘किताब देबै ने?’’
       हमरा एकटा गपक जिज्ञासा भेल। हम कहलियै, ‘‘किताब देबौ मुदा एकटा गप कहऽ पड़तौ।’
       ‘‘की?’’
       ‘‘तोरा बड़ मानै छौ मालती?’’
       ‘‘बुझाइ हइ तहिना।’’
       ‘‘तों?’’
       ‘‘हमे ई गलती फेरो नञि करऽ चाहै छिकियै।’’ गंभीर होइत बाजल मिरदंगी, ‘‘मुदा आब एगो बात होइ हइ। पहिने मालती गहिंकी भिरू बन्द रहब करै छलै, तऽ हमरा कुच्छो नञि होइ रहय आ आब जे ऊ गहिंगी के लऽ कऽ कोठरी मे जाइ छै आ केबारी बन्द करै छै तखने हमरा मोन मे किछ कचकि जाइ हय।’’
       हम मिरदंगीक बात बुझलहुँ।
       दोसर दिन रिहर्सलमे ओकरा लेल एकटा साहित्यक पोथी नेने आयल रहियै। उपन्यास।
       ई क्रम चलैत रहलैक। प्रत्येक दू दिन पर पोथी घुरि कऽ आबि जाइक। कहाँ दन भरि दिन मालती उपन्यासे पढ़ैत रहैत छैक।
       रिहर्सल चलैत रहैक। संवाद यादि करबाक आ बजबाक अभ्यास पूरा भऽ गेल रहै।    
       कम्पोजिशन शुरू कयने रही। आंगिक अभिनय।
       एकदिन एकटा घटना घटि गेलै।
       नाटकमे एकटा दृश्य रहैक। नायिकाकें प्रेम करबाक अपराधमे ओकर माय भयंकर सजाय दऽ रहल छलैक। अभ्यास होइत रहैक।
       मिरदंगी एक कोनमे बैसल देखैत छल।
       दुनू महिला कलाकार अभ्यास कऽ रहलि छलि।
       अभ्यास होइत रहलैक।  एक...दू...तीन...           आ कि तखनहिं मिरदंगी बिजुली जकाँ अयलैक आ नायिकाक मायक भूमिका कयनिहारिकें गरदनि दबैत चिकरऽ लागलैक, ‘‘तोंए हमरा इन्दू के मारलही हन। हमे जीबय नञि देबौ...।’’
       सभ ‘हाँ-हाँ’ करैत मिरदंगीकें घीचलक। मिरदंगी हकमि रहल छल। ओ वर्तमान आबि गेल छल। माथ झुकि गेल छलैक।
       महिला कलाकारक प्राथमिक उपचार भेलैक। कने कालमे ओहो सामान्य भेलि।
       कलाकार सभ हमरे दोष देबऽ लागल। हमरे कारण ई घटना घटलै। ने हम मिरदगीकें अनितियैक आ ने एहन घटना घटितैक। एहिना स्थितिमे केओ अपन बेटीकें सस्थामे नहि आबऽ दतैक।
      बड़ी कालक बाद सभ एहि गपकें मानलक जे मिरदंगी कोनो-ने-कोनो असामान्य परिस्थितिमे एहन काज कयने होयत।
       सामान्य भेलाक बाद मिरदंगी ओहि महिला कलाकारक पयर छानि लेलक, ‘‘बहिन, हमरा से गल्ती होइ गेलऽ। माफ कऽ दहो। अनबुझमे हमरा सऽ गलती होइ गेलऽ। आब नञि होतऽ एना।’’
       मिरदंगीकें माफ कऽ देल गेलै। रिहर्सल ओहि दिन ओत्तहि समाप्त भऽ गेलैक।
       हम मिरदंगीकें अपना डेरा अनलहुँ। चाह पान भेलकै। स्थिर होइत ओहि घटनाक कारण पुछलियैक।
       ओ बाजल, ‘‘इहाँ सऽ पहिले हमे मुंगेर सरबन बजार मे रहियै। इहाँ तऽ तीन-चारि महिना पहिले अएलियै हन। उहाँ बहुत दिन रहलियै। एगो सऽ परेम होइ गेल रहै। बड़ सुन्नरि रहै। उहो हमरा बड़ मानै। हमरा लेल जान दै लेल तैयार। हमहूँ...।
       ओहिठाम के मलिकिनी सी नम्मर के बदमास रहै मौगी। हमरा दुनू के बारे मे ओकरा पता लगि गेल। बड़गाही हमरा आर के देखय नञि चाहै। कुभेला करय लगलै। ओकरा बेसी-सऽ-बेसी गंहिकी देबय लगलै। कतबो ऊ बोलै जे आब सहाज नञि होइ हय, तैयो...। सोलह-सतरह घंटा रहय पड़ै गहिंकी भिरू। कते सहाज करितै?
       हमे मना करियै ओकरा। ऊ कहब करय हमरा जे अइ जग सऽ भागि जो तऽ उगरास भेटत। मुदा, से होलै नञि।
       हमे उहाँ के छौंड़ी आर के बोललियै जे कम-सँ-कम गहिंकी भिरू जो। छौंड़ियो आर मानलकै। मलिकिनी भिरू बोलब शुरू कऽ देने रहै।
       मलकिनी डँटलकै। आर-आर छौंड़ी सभ चुप्प होइ गेलै। मुदा हमर ऊ नहि मानलकै। ओकरा हमरे बोली के निसाँ लागल रहै। मलिकिनी के हमरे पर शंका  होलै। हमरो मारलक आ ओकरो। ओकरा तऽ बोलै बलू ऐसन ठाम मे फाड़ धिपा कऽ दागि देबौ जे डागदरो जल्दी नञि देखतौ।
       करीब पनरह दिन के बाद हमे आर ठीक होलियै। ओकरा ठीक होइते जोतय लगलै। विदेशी टुरिस्ट सभ आयल रहै। सब के ओकरे भिरू पठबै। हमे एक दिन ओकरो आ मलिकिनियो के बोललियै, ‘‘ई गोरा आर बीमारी लऽ कऽ अबै छइ। मुदा मलिकिनी नञि मानलकै। ओकरा बोललियै तऽ हमरे दोष देलकै। बोलब करै, ‘‘हटा कऽ लऽ जो हमरा। तोरा सऽ बाहर हमे नञि ने छिकियौ।
       जे हमरा शंका छलै, उहे होलै। ऊ मरि गेलै। अखबार मे अपने आर पढ़ने होबै। सरबन बजार के दूगो वेश्या मरलै, जकरा बारे मे पटना के डागदर आर बोललै जे ’एड्स’ से मरलै हन। ओइ मे एगो उहो रहै।’’
       मिरदंगी कानऽ लागल। पुनः किछु कालक बाद स्थिर होइत बाजल, ‘‘हमरा गोस्सा उठि गेलै। हमे उठलौं आ मलिकाइन के गरदनि चापि देलियै। जा लोक आउर अइलै, मौगी अधमरू होइ गेलै। मरि नञि सकलै। लोक आउर बचा लेलकै। हमरा बहुत मारलक आ भगा देलक। नहियो भगाबितै तेयो हमे उहाँ नञि रहितियै।’’ किछु थम्हैत पुनः बाजल मिरदंगी, ‘‘आइ रिहल-सिहल बेरू उहे यादि आइ गेलै, तें...। आब ऐसन गलती नञि होतै।’’
       किछु काल धरि वातावरण शान्त रहल।
       मौन भंग करैत हमहीं पुछलियै, ‘‘मालतीकें बुझल छैक ई सभ?’’
       ‘‘नञि।’’ मिरदंगी बाजल, ‘‘ओकरा ई बात आर नञि छिकै बूझल।’’
       ‘‘तें ओ तोरासँ...।’’
       ‘‘से जे होइ। हमे नञि चाहै छिकियै जे ओकरा सऽ हेम-छेम बढ़बियै। मुदा ऊ कहाँ मानै छै। हमरा पर...।’’ किछु थम्हैत बाजल मिरदंगी, ‘‘असल बात ई हइ जे पढ़ल-लिखल लड़िकी हमरा निम्मन लागब करै हय। मालती पढ़ै-लिखै छै। काबिल छै। तें हमे ओकरा किताब लऽ जा कऽ दै छिकियै। ओ बूझै हय जे हमे ओकरा परेम...।’’
       ‘‘से बात तोरा कहि देबाक चाही। ओकरा अन्हारमे नहि राखक चाही।’’
       ‘‘सोचै तऽ हमहूँ छिकियै, मुदा कहि नञि पाबि रहलियै हन।’’
       हम मिरदंगीक चेहराक भाव पढ़लहुँ। हमरा लागल जेना एकटा नमहर बोझ उतरि गेल होइक ओकरा माथ परसँ।
       रिहर्सल चलैत रहलैक। प्रदर्शनक तिथिक घोषणा भऽ गेल रहैक।
       मिरदंगी रिहसलमे नहि आयल। एक दिन...दू दिन...।
       हमरा चिन्ता भेल। हम तरकारीबला लग गेलहुँ। पुछलियै। तरकारीबाला बाजल, ‘‘के? मौगियाहा? दू दिन पर आइ आयल हन। अपने अही जग रहियै। बोलि कऽ गेल हन।
       मिरदंगीकें ‘मौगियाहा’ कहैत छै, तँ हमरो बेजाय लगैत अछि आब।
       मिरदंगी आयल। हालचाल भेलै। दोसरे समस्या बाजल।
       मालती लग एकटा साहेब अबैत छैक। तीन-चारि बर्ख पहनहि ओकर पत्नी स्वर्गीय भऽ गेलै। ओ बरोबरिक ग्राहक छैक। सप्ताहमे दू दिन तँ अबस्से। एहिठामक मलिकिनीकें ओ ‘लाइसेंस’ लेबऽ कहलकैक।
       मुदा लाइसेंस तँ मात्र मोजराक लेल भेटतैक।    
       मलिकिनीकें नीक लगलैक। सोचलकि- मोजराक लाइसेंस भेटि गेने ओकर बिजनेस आओर बढ़तैक। एखनि जकाँ पुलिसक दमन एत्तेक नहि रहतैक। संभ्रान्त लोक सभकें सेहो कोनो असोकर्य नहि होयतैक।
       ड्राइवर आ खलासी सन ग्राहककें सेहो कोनो उपराग नहि रहतैक। कहयो काल तँ सिपहिया मलिकिनीयोसँ पाइ लैत छैक आ घूरऽकाल गहिंकियोसँ।
       यैह सभ विचार भेल रहैक। मिरदंगी एकर विरोध कयने रहय। मालती सेहो। ई दुनू कहलकै जे संगीत सन पवित्र बात एतऽ नहि होयतैक। जँ होयतैक तँ आन काज नहि होयतैक। मोजराक नाम नहि बिकयतैक। संगीतक अपमान नहि होयतैक। कसि कऽ विरोध कयने रहै दुनू।
       मिरदंगी किताब घुरा देलक आ बाजल, ‘‘हमे आइ मालती के सब बात बोलि देलियै।’’
       ‘‘कोन बात?’’
       ‘‘सरबन बजार बला बात।’’ बाजल मिरदंगी, ‘‘लाइसिंस बला बात के हमे आर जखन खूब विरोध केलियै, तऽ मारय-मारय कऽ दौगल हमरा आर के। मुदा मारलक नञि। किछ काल के बाद मालती बोलल जे बलू हमे ओकरा लऽ कऽ कतौ भागि जइयै। हमे सोचलौं- सरबने बजार बला कांड ने होइ जाइ, तैं हम ओकरा सब बात खुलस्ता बोलि देलियै। बोलि देलियै जे हम तोरा पियार नञि करै छिकियौ।’’
       हम चुप रही। मात्र निहारैत रही मिरदंगीकें।
       ‘‘ओकरा तऽ बुझयलै जेना कोइ अनचोके मे थप्पर मारने होइ।’’ बाजल मिरदंगी, ‘‘अहीं सोचियौ। ई संभव छै जे हम ओकरा लऽ कऽ कहीं इज्जति-परतिष्ठा सऽ रहि सकै छिकियै? दुनू तऽ ओइसने छिकियै- एकटा रंडी, दोसरा भरुआ।’’
       हमरा किछु नहि फुरायल। स्तब्ध रही। अन्तमे, दोसर दिन रिहर्सलमे अयबाक निश्चय कऽ मिरदंगी चलि गेल।
       दोसर दिन समय पर मरंदगी रिहर्सलमे आयल। मोनसँ काज कयलक। जयबाकाल हमरा एकटा कोनमे लऽ जा कऽ कहलक, ‘‘मालती अहाँ सऽ भेंट करऽ चाहै हय।’’
       ‘‘ई कोना संभव छै?’’ हम बजलहुँ।
       ‘‘सेहे तऽ हमहूँ बोललियै ओकरा, तऽ ऊ कहलक जे नाटक दिन अपने कने समय देबै ओकरा। कुछो बतिआइ के छै। ओकरा बड़ सऽख छै हमरा इस्टेज पर देखय के...नाटक देखय के...।’’
       ‘‘बेस। हेतै।’’ हम बजलहुँ, '‘लाइसेंस बला बात के की भेलौ?’’
       मिरदंगी बाजल, ‘‘बात बड़ अगाड़ी बढ़ल जाइ छै। हमे चुपचाप रहै छिकियै, मुदा सहाज नञि होइ हय। मालती के कहलकै जे नाच सीखय पड़तौ। मालती नञि मानलकै, तऽ राति खन लोहाक छड़ लऽ कऽ दुनू तरबामे मारलकै ओकरा। पयर फुलि गेलै हन। तैयो गहिंकी भिरू ठेलिये देलकै।’’
       मिरदंगी घुरि गेल। हम दोसर काजमे लागि गेलहुँ।
       रिहर्सल चलैत रहलै। मिरदंगी अबैत रहल। अभ्यास करैत रहल। जेना-जेना प्रदर्शनक तिथि लऽग आबऽ लगलैक, हमर व्यस्तता बढ़ैत गेल। मिरदंगीसँ कोनो नोक-बेजाय गप नहि भऽ सकल।
       प्रदर्शनसँ तीन दिन पहिने।
       चारि बजे साँझमे चौक पर गेलहुँ। चौक कोनो घटना विशेषक चर्चमे डूबल छल। जिज्ञासा कयलहुँ। तरकारीबला अभरल। पुछलियैक।
       तरकारीबाला बाजल, ‘‘पेट्रोल पम्प के मलिकिनी के मारि देलकै।’’
       "कोन पेट्रोल पम्प?
       "उहे, जकरा बगली मे मौगियाहा रहै हय।"
       हम प्रश्न दृष्टिएँ तकलहुँ, ‘‘केे?’’
       ‘‘आर के? मौगियाहा।’’ बाजल तरकारीबला।
       ‘‘नहि, मिरदंगी नहि मारने होयतैक।’’ हम बजलहुँ।
       ‘‘नञि मालिक।’’ तरकारीबला बाजल, ‘‘पुलिस भिरू अपने कबूल केलकै हन मौगियाहा।’’
                            .....

लेखन: बेगूसराय/ 30.10.1991 ई. 
 प्रकाशन: पूर्वाचल-3/1992



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