Saturday, September 24, 2022

बेल सं बबूर तर (मैथिली कथा) - प्रदीप बिहारी


कथा

बेल सं बबूर तर

प्रदीप बिहारी                


मोबाइल बजलै, तं निन्न टुटलै। आंखि बन्ने छलै। के भ' सकै छै? हलदिली पैसि गेलै मोनमे। जानि नहि ककरा की भेलै? सिरमा दिस हाथ बढ़ौलक, मोबाइल नहि ठेकनयलैक। सूतलमे कोम्हरो घुसकि गेल होयतैक। पत्नी मनाही करैत रहैत छथिन जे सिरमामे मोबाइल नहि राखू। अपने रहैत छथिन तं राखहि ने दैत छथिन। मुदा, पत्नीकें नहि रहने से ओकरा बुतें पार नहि लगैत छैक।

       मोबाइल बन्न भ' गेलै आ लगले फेर बाज' लगलैक। एहिबेर ओ कम्मल तरसं बहरायल। बौल बाड़लक। इजोतमे मोबाइल ताकलक। मोबाइल दोसर गेरुआक खोलमे घोसिआयल छलै जे सुतबाक क्रममे ओछाएने पर कोम्हरो ससरि गेल रहैक। ओ मोबाइल हाथमे लेलक। पत्नी छलखिन। सोचलक, ओ एतेक राति क' किएक फोन कयलखिन? हड़बड़ायल। जाबत कौल रिसिव करितय, मोबाइल फेर बन्न भ' गेलै। 

       वैह फोन कर' चाहलक आ कि मोबाइल बजलै। सावधान भ' रिसिव कयलक।

       "एतेक राति क'?"

        पत्नीक स्वरमे भय आ क्रोध मिझरायल छलनि। बाजलि, "डर होइए, तें फोन कयलहुं।"

       तकर बाद जाबत ओ किछु बजितय, पत्नी पुछलखिन, "फोन ने किए उठबैत रही?"

       "कथीक डर होइए? की भेल?"

       "से नहि बुझै छियै जे कथीक डर होइए, मुदा डर होइए।"

         "आहि रे बा! बुझब कथीक डर होइए तखन ने..."

        ओकर नजरि देबाल घड़ी दिस गेलै। दू बाजि रहल छलैक। जनवरीक जाड़। ओ कम्मल ओढ़ि लेलक। 

        "एत्तेकटा घरमे हम कतोक बेर असगर रहलहुं अछि, मुदा आइ डर होइए। एखनि धरि आंखि नहि मोड़ायल-ए। पिपनी नहि सटल-ए।"

        "मुदा, डर किएक होइए। घरक गेट सभ बन्ने होयत।" ओ पुछलक, "कोनो खट-खूट सुनलैए? कोनो चाल-चूल?"

        "नहि यौ। एतेक निशाभाग रातिमे...। सेहो जाड़क अन्हरिया राति। डर कोना ने हएत?" पत्नी बजलीह, "अहां के डिस्टर्ब नहि कर' चाहैत छलौं, मुदा डरे रहल नहि गेल, तं फोन कयलौं।"

        "से, डिस्टर्ब तं कइए देलहुं। मुदा बाजब जे कथीक डर होइए तखन ने..." ओ बाजल, "आ, जं डरे होइए तं हम एहि दू बजे रातिमे दू सय किलोमीटर उड़ि क' तं नहि चलि आयब। अपने हिम्मति राखू। कोनो अनट-सनट सपना देखलहुंए?"

          "नहि। आंखि मोरेबे ने कयल तं सपना की देखब?"

         "तखन? एतेक रातिमे हमरासं गप करबाक मोन भेलए? सांझखन तं गप भेले छल।"

        "दुर जाउ...हम डर सं एहि जाड़मे घामे-पसेने नहायल सन छी आ अहां के ठठ्ठा सुझैए।" पत्नी बजलीह, "ओ घटना मोन अछि?"

        "कोन?"

        "टाउनशिप मे जे अपना सभ संग घटल छल।"

        "हं। मुदा तकर आब नओ बर्ख भ' गेल। ताहि घटनाकें मोन पाड़बाक कोन प्रयोजन?"

        "प्रयोजन ई जे अहां मोन पाड़ू। रिक्शासं दुनू प्राणी घर अबैत रही। बीच टाउनशिप मे हमर बेग झपटि क' मोटरसाइकिलसं फुर्र भ' गेल। जाधरि हल्ला करी, रिक्शासं उतरि क' कात-करोटक लोककें चिचिया क' कहियै कि एकटा मोटरसाइकिल बला हितैषी बनि बाट छेकि लेलक।" पत्नी बजलीह।

         "हं, ओ मोटरसाइकिल बला ओकरे गुटक रहैक।"

         "से भोगनहि छी। एफ आइ आर पांच दिनक बाद भेल। भेटल किछु नहि।" पत्नी बजैत छलीह, "एखनो ओहि बेगक समान मोन पड़ैए, तं कोंढ़-करेज उनट' लगैए। बेटाक देल एकैस हजार टाका... हमर मोबाइल... अहांक टैब...दूटा कानक टाप्स सेहो छल। सभ चलि गेल। सेहो भरल दुपहरियामे। टेनेसं पछुऔने रहय। झपटि क' जाइ बला दृश्य आ ओकर अदंक बहुत मास धरि फिरीसान करैत रहल।"

          "से तं हमरो भेल रहय। हमहूं ओहि घटनाकें बिसरि नहि पाओल रही।" ओ बाजल, "मुदा, एखनि ओहि घटनाक चर्च किएक कर' चाहै छी? सुति रहू ने।"

         "ओ घटना तं अहांसं गप करैत काल मोन पड़ल। डर तं पहिने सं होइए।"

         "डर कथीक होइए से बाजब कि डर होयबाक घाटि फेनैत रहब। के कहलक ओत' रह' लेल? भने तं संगे जाइत रही आ अबैत रही। किएक रहि गेलहुं? रहि गेलहुं तं हिम्मत करू। अपनो जागल छी आ हमरो जगौने छी। बूझै नहि छियै जे काल्हि हमरा आफिसो जयबाक अछि।"

          "यौ, एना गोधनाइ किए छी? लगैए जेना सुतलोमे अहांक नाके पर तामस होअय ।" पत्नी बजलीह, "हम कोनो अपना लेल एत' एहि गेलहुंए?"

          "तं ककरा लेल? हमरा लेल? अपने ने कहलियै जे मोहल्लाक लोक सभसं भेंट-घांट कयला बहुत दिन भ' गेल। महिला-संसदक संध्याकालीन सत्रक सभापतित्व कयला बहुत दिन भ' गेल छल। तें ने रहि गेलहुं ।"

         "ओतबे किए कहै छी? अगिला मास जे बेटा-पुतौहु आ पोता-पोती सभ आओत, तकरो तैयारी करबाक अछि ने। ओ सभ की हमरे अछि, अहांक नहि?"

          "हमर किएक ने? मुदा से तैयारी तं बादोमे होइतै। आ तैयारिए की? कोन..."

         "चुप रहू। ताहि लेल कहियो तं एसगरे रह' पड़ितै। अहां छुट्टी ल' क' रहिते कते छी?"

         "हमरा छुट्टी भेटिते कहां अछि?"

         "तें ने कहलहुं जे...बुझल नहि अछि जे अदौरी-कुम्हरौरी पाड़बाक छल। कनियां कें बड़ पसिन छनि। पाड़ि नहि पबै छथि।"

        "पाड़ि नहि पबै छथि कि पाड़' नहि अबैत छनि?"

        "से, जे बुझियौ। नव-नौतार मे बेसी के नहिए अबै छै। ई सभ सीख' बेरमे आब अंगरेजिए पढ़' सं पलखति नहि भेटै छै, तं की करय ओ सभ? आ जं अबितो रहितनि तं महानगरक पड़बाक खोप सनक अपार्टमेन्ट मे कत' सरंजाम करती एते? कत' खोंटती? कत' सुखौती? आ कखन?"

        "हं, मोन पड़ल। कुम्हर ताक' मे सभ दशा भ' गेल छल हमर।"

        "से मोन छल आ सभटा बुझल छल तं भकुआयल सनक गप किएक करैत रही?"

        "अहूं हद करै छी। अइ हालतिमे गप करैत-करैत ककर भक लागल रहतै?"

         "तं तुरुछि क' किएक बजलहुं?"

         "तं की करितहुं? अहां अपन डरक कारण कहबे ने करै छी। अनेरे जगौने छी, तं की करी?"

        "वाह। हम डरे पानि भेल जाइ छी आ अहां..."

        "बेस। सौरी। एत्तेक काल गप कयलहुं, आब डर पड़ा गेल होयत? आंखि मोड़ि लिअ'।'

        "हमरा एखनो डर भ' रहल अछि। ई बात बुझियौ। बैंक बला पंडित जीक घरमे चोरि भेलै से बुझल अछि? आइ चारिए दिन भेलैए।'

         "हं, अहीं कहने रही ने। एके दिन लेल दरभंगा गेलाह। घर बन्न रहलनि आ हंसोथि लेलकनि। थाना-पुलिस किछु केलकै?"

        "की करतै? थाना-पुलिस नीक लोक लेल होइ छै? अखबारमे पढ़लियैए नहि?"

        "की?"

        "दरभंगा मे कहांदन थाना के बगले बला घर के बुलडोजर सं ढाहि देलकै आ घरक लोक के पेट्रोल ढारि  डाहि देलकै। से, दिना दिस्टी।"

        "हं, दू गोटे तं मरियो गेलै। भाइ आ एक बहिन।"

        "दुइएटा नहि मरलै। ओहि महिलाक पेटक बच्चा सेहो। ओहि परिवारक वर्तमान आ भविष्य के डाहि देलकै।"

        "चिन्ताक बात तं छैके, मुदा ई सभ किएक मोन पाड़ै छी? सुतबाक प्रयास करू।"

        "मोन किएक पाड़ब? मोन पड़ि जाइए। अहांके नहि कहने रही। सोचलहुं जे चिन्ता हएत। पंडित जीक घरमे‌ चोरि भेलनि तकर दोसरे दि‌न..."

        "की?"

        "फुलिया हमरा सं पुछलक।"

       "की पुछलक?

        "एत गो घर छिक'। नीचामे पांच गो कोठरी। ऊपरो मे, तकरो ऊपर। भरैतो (किरायादार) आर नइं छिक'। अकेले घर मे डर नइं लागब करै छ'।"

         क्षण भरिक चुप्पी।

         "तं अहां की कहलियै?"

         "कहलियै- डर किए होतै? अपना घर मे डर कथी के? ताहि पर पुछलक जे कोठरी बदलि-बदलि के सुतैत होबहो?"

         "की भेलै तं? फुलिया के जिज्ञासा हेतै तें पुछलक।"

         "हमरो छगुन्ता भेल जे फुलियाक मोन मे एहन बात किए उठलै। पनरह बरख सं अपना ओहिठाम‌ काज करैए। कहियो एहन प्रश्न नहि कयने छल।"

         "प्रश्न उठब उचित। मुदा हमर मोन कहैए जे फुलिया अपन परिवार सन बुझैए अपना सभकें। ओकरा मोनमे दोसर भाव किएक रहयै, जाहिसं लोक डेरायत।"

        "सैह तं। तैयो...। आ हमहीं की कम देने छियै आ एखनो दै छियै।"

        "हम सभ लाकडाउनमे ओकरा मासे-मास पाइ दैत रहलियै। एखनो मासमे चारि-पांच दिन रहै छियै आ पाइ पूरा दै छियै। एखनि एक सप्ताह सं अहां छी, सैह ने। हमरा विश्वास नहि होइए जे अपना सभक प्रति ओकरा आंखिक पानि सुखा जेतै।"

        "विश्वास तं हमरो नहि होइए। अपना घरसं एतेक समान भेटै छै, जे मोहल्लाक मौगी सभ कहैत रहैए- 'फुलिया को बहुत देते हैं आप। दाइ-नौरी को इतना दिया जाता है?' मुदा की करियै? जहिया पंडित जीक घरमे चोरि भेलनि ताहि सं एक दिन पहिने कहलक जे..."

       "की?"

       "भौजी! पछिला दा जे बिछौना देलहो, तइ पर बेटबा आ पुतहुआ घरमे सुतब करै छै। हम्मे पोतबा जौरे बरंडा पर एक दिस सुतै छिकियै। बरंडे पर दोसर दिस बुढ़बा सुतब करै छै। देह गरमेबे ने करै छै।नीचा स' सलकी मारब करै छै।"

        "ठीके कहलक । एसबेस्टस बला एकटा कोठरी आ तकर बरंडा। हेबे करतै कत्तेटा? नमहर कोठरी रहितै त' पोता माइए-बाप संग सुतितै ने? से, फुलिया के बेटा बंगलौरसं आबि गेलै।"

        "हं यौ। लौकडाउनमे एलै से घुरि क' कहां गेलैए। काजो नहिए सन करै छै। एकबाही बैसले बुझियौ। बुढ़बो रिक्शा चला क' कते कमाइत हेतै। बैटरी बला रिक्शा लग पैडिल बला रिक्शा तं मरहन्ने ने। सभ भार फुलिये पर छै। सैह कहैत रही जे ओही दिन फुलिया के छत पर ठाढ़ क' राखल दुजनिया चौकी द' देलियै।"

        "भने द' देलियै।"

        "प्रात भेने फुलिया कहलक- भौजी! तोएं जे चौकी देलहो, से बरंडा पर नइं अंटलै। ओकरा खड़ा कए देलियै। बुढ़बो के कहलियै जे ओही अ'ढ़ मे सुति रहय ले'। बीचमे पोतबा के सुताय लेलियै। से, भौजी राति खूब निन्न होल' हन।"

         "तें ने कहै छी जे फुलिया अपना सभक अनिष्ट सोचिए ने सकैए। ओकर बातकें शंका सन नहि मानू। शंकाकें मोनसं काछू।"

        "कोना काछि दिअ'। आइ सांझमे जे पुछलक से...।" 

        "की पुछलक? सांझखन हमरासं गप भेल छल तं नहि कहलहुं अहां।'

        "सोचलहुं नहि कहब। अहांकें चिन्ता होयत। मुदा राति ओछाएन पर ओकर बात मोन पड़ल तं डरे कंठ सुखा गेल। तखनसं जगले छी। डर बर्दासि नहि भेल तं अहांकें फोन कयलहुं। सोचलहुं, मोबाइले पर सही, एसगर नहि ने छी। दोसराइत तं छथि संग मे।"

        "से, फुलिया पुछलक की?"

        " काज क' क' जाइत काल बहरिया गेट लग चुपचाप पुछलक- भौजी! आइ राति कोन कोठरीमे सुतबहो? हम‌ ने उतारा द' सकलियै आ ने डांटिए सकलियै।

         चुप्पी।

         बड़ी काल धरि दुनू चुप। ओकरा बुझयलैक जे पत्नी अपन डरक कारण कहि निचैन भ' गेलीह अछि। निन्न पड़ि गेलीह अछि।

         ओ घड़ी देखलक। भोर भ' गेल रहैक। लोक कहै छै जे भोरमे नीक निन्न होइ छै, मुदा ओकरा निन्न नहि भेलै। डरे दुनू पिपनी दुनू दिस रहै।

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1 comment:

  1. आजुक भयाक्रान्त समय कें नीक जकां उकेरल गेल अछि। लोक अपनो घर मे सुरक्षित नहि अछि।

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