Saturday, September 24, 2022

जीवकान्त की दो मैथिली कविताएँ : हिंदी अनुवाद- तारानन्द वियोगी

जीवकान्त की दो मैथिली कविताएं

जीवन के रास्ते                        

नहीं, ज्यादा रंग नहीं
बहुत थोड़ा-सा रंग लेना
रंग लेना जैसे बेली का फूल लेता है शाम को
रंग लेना बस जितना जरूरी हो जीवन के लिए
रंग लेते हैं जितना आम के पत्ते
नए कलश में ।

नहीं, ज्यादा गंध नहीं
गंध लेना बहुत थोड़ी-सी
बहुत थोड़ी-सी गंध जितनी नीम-चमेली के फूल लेते हैं
गंध उतनी ही ठीक जितना जरूरी हो जीवन के लिए
गंध जितनी आम के मंजर लेते हैं।

नही, बहुत शब्द नहीं
जोरदार आवाज नहीं
आवाज लेना जितनी गौरैया लेती हैं अपने प्रियतम के लिए
जरूरी हो जितनी जीवन के लिए
आवाज उतनी ही जिसमें बात करते हैं पीपल के पत्ते हवा से
थोड़ी-सी आवाज लेना
जितनी कि असंगन का जांता गेहूँ के लिए लेता है।

जीवन के रास्ते हैं बड़े सीधे
दिखावा नहीं, बिल्कुल दिखावा नहीं
बरसता-भिंगोता बादल होता है जीवन
बरसते बादल में लेकिन रंग होते हैं बहुत थोड़े
ध्वनि भी होती है उसमें
विरल गंध।
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लौट-लौटकर आऊंगा फिर फिर

धुंध को पीया मैंने श्वास में
और अपने रक्त में मिला लिया
छोड़ा जो मैंने श्वास
वह जा बसा वनस्पतियों के उदर में
अड़हुल की लाल-लाल पंखुड़ियों में व्यक्त हो
खिलखिलाकर हंस पड़ा,
क्षण-क्षण बदला मैं
पाकड़ की टुस्सी में ।

दूब की मूंडी परिवर्तित होती है भेंड़ में
और मिमियाती है
बहती है कभी काली गाय के दूध में ।

देहान्त के बाद कोई खड़ा नहीं मिलता धरती पर
नारंगी के रस में
और बादलों के झुण्ड में
झहरकर बिलाती है उसके शोणित के धार।

हजार फूलों से अदला-बदली करते अंततः हुआ हूँ शब्द
मेरे हजार शब्द आए हैं जाने कितने दर्जन भाषाओं से
बीसियों-पचासों देशों से
श्रमजीवियों के श्वेद से,
मैं जो हूँ वह
अनेक शताब्दियों को थोड़ा-थोड़ा अंश हूँ
अनेक भू-भागों से तराश-तराश तिल-तिल
मैंने भरी है अपने प्राणों में सामर्थ्य ।

प्रत्येक क्षण होता है जाने कितनी भाषाओँ में विलीन
कितने-कितने वृक्षों के पत्तों में, नदियों के जल में
होता हूँ उत्सर्जित
और फिर पुनर्सृजित।
घूमता हूँ परिक्रमा में पृथ्वी के संग
एक पल के लिए भी कभी
होता नहीं बाहर उसकी चौहद्दी से।

पृथ्वी की गोद में स्थित हुआ मैं
खिलता रहूंगा कभी गेंदे के फूल में
कभी पीपल की टुस्सी में
लौट-लौटकर आऊंगा फिर फिर
दर्जन-दर्जन भाषाओं के
छोटे-छोटे शब्दों में ।
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मैथिली से अनुवाद : तारानन्द वियोगी

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